मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने खंडवा में 31 जनवरी को सामने आए गोहत्या के एक मामले में NSA की धाराएं लगा दी हैं. कारण बताया कि तीन में से एक अपराधी आदतन अपराधी है. लेकिन फिर भी NSA लगाना बड़ी बात है. क्यों. क्योंकि मध्यप्रदेश में गोकशी पर पहले से प्रतिबंध है. स्थापित नियमों के हिसाब से तो कार्रवाई होनी ही थी.
होता क्या है NSA NSA 1980 में इंदिरा गांधी लेकर आई थीं. ये एक बहुत ताकतवर कानून है. आमतौर पर अपराध होने के बाद कार्रवाई होती है. लेकिन इस कानून के तहत प्रिवेंटिव डिटेंशन हो सकता है. माने अपराध करने से पहले हिरासत में लेना. केंद्र या राज्य सरकार को शक हो कि आप देश की सुरक्षा या हित के खिलाफ कोई भी काम कर रहे हैं, तो आप हिरासत में लिए जा सकते हैं. पुलिस को आरोपी को हिरासत में लेने की जानकारी 5 से 10 के अंदर राज्य सरकार को देनी होती है. अगर राज्य सरकार हिरासत शुरू होने के दिन से 12 दिन के भीतर एनएसए लगाने को स्वीकृत कर ले, तो उसे केंद्र सरकार को 7 दिन के अंदर बताना होता है कि आरोपी को हिरासत में लेने की वजह क्या है. केंद्र की इजाज़त के बाद हिरासत 3 महीने तक बढ़ सकती है. तीन-तीन महीने करते हुए हिरासत एक साल तक बढ़ सकती है. याद रखिए हम हिरासत की बात कर रहे हैं. गिरफ्तारियों की नहीं.

यह पहली बार है कि किसी कांग्रेस शासित राज्य में गो हत्या के मामले में NSA के अंतर्गत कार्रवाई की गई हो.
NSA आतंकवादियों और शातिर अपराधियों को वारादात करने से पहले रोकने के काम आता है. इसकी धाराएं लगाकर एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में भी गिरफ्तारी कर सकती है. इसके 16 वें क्लाज़ के तहत NSA की तामील के वक्त केंद्र या राज्य द्वारा 'नेक नीयत' से उठाए किसी कदम को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती. तो ये एक बेहद ताकतवर कानून है. लेकिन ये ताकत ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल करने के लिए है. जैसा कि कहा ही जाता है, तलवार से पतलून नहीं सिलनी चाहिए. NSA के ज़रिए आप एक पॉलिटिकल मैसेज देने की कोशिश करें, ये कतई जायज़ नहीं.
गोकशी पर NSA पहली बार नहीं लोग इस बात का ज़िक्र ढूंढ लाए हैं कि 2016 में खुद शिवराज ने गोकशी के मामले में भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष अनवर मेव पर NSA लगाया था. योगी भी इस साल उप्र में गोकशी पर NSA लगा चुके हैं. लेकिन हमारी बात अतिशयोक्ति लगे तो इन तथ्यों पर नज़र डालें -
कमलनाथ सरकारें 1000 गोशालाएं बनाने का ऐलान कर चुकी है.
इनके लिए पैसे की कमी न हो, इसके लिए लग्ज़री कारों पर सेस की बात हो रही है.
निराश्रित गौवंश को आश्रय का हवाला देते हुए सरकार शिवराज का वो फैसला पलट चुकी है, जिसमें भोपाल के बुल फार्म की जगह पर आईएएस अफसरों के लिए गोल्फ कोर्स बनना था.
और ये सब हुआ है सरकार बनने के बमुश्किल दो महीनों में. इसीलिए पॉलिटिकल मैसेज की बात की हमने. बाकी कमल नाथ घाघ नेता है. खूब जानते होंगे कि कौनसा मैसेज कितना देना है.