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'लव मैरिज करने पर रिश्ते जल्दी बिगड़ते हैं'- इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी से तलाक के लिए अर्जी डाली थी. कोर्ट ने तलाक की मंजूरी तो दी, लेकिन साथ में लव मैरिज पर भी टिप्पणी कर दी.

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एक डॉक्टर पति को अलग रह रही अपनी डॉक्टर पत्नी से तलाक चाहिए था. (सांकेतिक फोटो: आजतक)

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले की सुनवाई के दौरान पति-पत्नी के बीच विवादों के कई कारण गिनाए. इस दौरान हाई कोर्ट ने लव मैरिज पर भी टिप्पणी की. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक हाई कोर्ट ने कहा कि लव मैरिज वाले रिश्ते 'आसानी से' कपल के बीच वैवाहिक विवादों का कारण बन रहे हैं. लव मैरिज पर ये टिप्पणी गुरुवार, 29 फरवरी को जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस डोनाडी रमेश की डिविजन बेंच ने की.

तलाक दिए जाने के ‘आधार’ पर टिप्पणी

इसके साथ ही हाई कोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक के आधार में संशोधन करने की जरूरत पर भी जोर दिया. कोर्ट ने कहा कि नए दौर के हालातों को देखते हुए तलाक को मंजूरी दिए जाने के आधार में भी बदलाव किया जाना चाहिए. हाई कोर्ट ने कहा कि जब 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट लागू किया गया था, तब वैवाहिक संबंधों से जुड़ी भावनाएं और सम्मान अलग थे. जिस तरह से अब विवाह हो रहे हैं, ऐसे हालात तब नहीं थे. 

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हाई कोर्ट ने 'शिक्षा, वित्तीय स्वतंत्रता, जाति बाधाओं को तोड़ना, आधुनिकीकरण, पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव' का जिक्र किया. कोर्ट ने कहा कि समाज अधिक से अधिक खुला और व्यक्तिवादी होता जा रहा है, जिससे इमोशनल सपोर्ट की जरूरत में भी कमी आती जा रही है.

कोर्ट ने टिप्पणी की,

“चाहे लव मैरिज हो या अरेंज मैरिज, ऐसे सभी कारक दो लोगों के बीच रिश्ते को प्रभावित करते हैं. हालांकि, ये कहने की जरूरत नहीं है कि हर क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है. लव मैरिज की तरह आसानी से होने वाली शादियां भी आसानी से वैवाहिक विवाद का कारण बन रही हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है.”

जजों ने कहा कि ऐसे विवादों से निपटने के दौरान उनके अनुभवों से ये 'तथ्य' स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं.

किस मामले की सुनवाई चल रही थी?

इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई चल रही थी. 30 साल तक भारतीय सेना में डॉक्टर रहे इस व्यक्ति को अपनी डॉक्टर पत्नी से तलाक चाहिए था. इस जोड़े ने साल 2007 में शादी की थी. ये उनकी दूसरी शादी थी. 2015 में तलाक की अर्जी डालने से 6 साल पहले पत्नी ने कथित तौर पर पति को छोड़ दिया था. इस केस में क्रूरता के आधार पर भी तलाक मांगा गया था. हालांकि, फैमिली कोर्ट ने पति के केस को स्वीकार नहीं किया. इसके कारण 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील दायर की गई.

रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर की पत्नी मामले में उपस्थित नहीं हुई. हाई कोर्ट के समक्ष पति की मुख्य दलील ये थी कि पत्नी लंबे समय से उससे अलग रह रही है. कहा गया कि ये मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है. हाई कोर्ट ने कहा कि शादी टूटने को सुप्रीम कोर्ट द्वारा लंबे समय से तलाक का एक आधार माना है.

कोर्ट ने विशेष रूप से ‘नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली’ के केस का जिक्र किया. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 में पूरी तरह से शादी टूटने (irretrievable breakdown of marriage ) को तलाक के आधार के तौर पर शामिल करने की बात कही थी. हालांकि, हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि करीब 18 साल बाद भी इस संबंध में कुछ नहीं किया गया है.

कोर्ट ने आगे कहा कि कई मामलों में, दोनों पक्षों के बीच शादीशुदा जिंदगी केवल नाममात्र की रह जाती है. इसी कारण से सुप्रीम कोर्ट ने लगातार महसूस किया है कि ऐसे अव्यावहारिक वैवाहिक संबंधों को जारी रखना किसी पक्ष पर मानसिक क्रूरता के अलावा कुछ नहीं है.

डॉक्टर के तलाक की अर्जी पर हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि डॉक्टर की पत्नी काफी लंबे समय से पति से अलग रह रही हैं. इससे साफ होता है कि पत्नी को अपनी शादी जारी रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है. ये पाते हुए कि शादी पूरी तरह से टूट गई है, कोर्ट ने कहा कि इस मामले को पति पर 'मानसिक क्रूरता' का मामला माना जाना चाहिए. और तलाक की मंजूरी दे दी गई.

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