सरकार एक तरफ हर घर में शौचालय बनाने के लिए प्रेरित कर रही है, वहीं एक सरकारी दफ्तर में ही इसका इंतजाम नहीं होना चौंकाता है. (प्रतीकात्मक फोटो- इंडिया टुडे)
तमिलनाडु में एक सरकारी दफ्तर में टॉयलेट न होने से एक महिला कर्मचारी की जान चली गई. बात थोड़ी सुनने में अटपटी लग सकती है, लेकिन सच है. घटना कांचीपुरम के कालाकट्टूर इलाके की है.
क्या है पूरा मामला?
24 साल की सरन्या, कांचीपुरम में तमिलनाडु सरकार के एग्रीकल्चरल डिपो में काम करती थीं. डिपो में शौचालय की सुविधा नहीं थी. इसकी वजह से वहां के कर्मचारियों को बाहर जाना पड़ता था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शनिवार 5 दिसंबर को सरन्या शौचालय के लिए बाहर निकली थीं. जब बहुत देर तक नहीं लौटीं तो सहकर्मियों ने उन्हें ढूंढने की कोशिश की. दफ्तर से थोड़ा ही आगे जाने पर उन्होंने देखा कि सरन्या बेहोशी की हालत में पास के एक टैंक में गिरी पड़ी हैं. टैंक को बनाया जा रहा था, लेकिन काम पूरा नहीं हुआ था इसलिए उसे एक पतले परदे से ढका हुआ था. अंदाजा लगाया जा रहा है कि जाते वक़्त सरन्या का पैर फिसला होगा और टैंक में गिरने से उनकी मौत हुई होगी.
माता-पिता ने बॉडी लेने से किया इनकार
सरन्या की मौत के बाद उनके माता-पिता ने डेडबॉडी को लेने से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि जब तक उनकी बेटी को न्याय नहीं मिल जाता, वो बॉडी एक्सेप्ट नहीं करेंगे. सरन्या की मां ने मीडिया से कहा कि वह कभी नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटी इस दफ्तर में काम करे क्योंकि यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव था.
सरकारी दफ्तर में ही शौचालय क्यों नहीं?
चाहे टीवी पर ऐड हो या गांव की दीवारें, हर जगह दिख जाएगा कि सरकार कैसे आम नागरिकों को शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित कर रही है. सिर्फ कह ही नहीं रही, स्वच्छ भारत मिशन में कई स्कीमें हैं, जिनके तहत अपने घर में शौचालय बनवाने के लिए पैसे भी दिए जाते हैं. सरकार प्रचार करती है कि शौचालय सिर्फ शौच के लिए ही नहीं बल्कि सही सोच के लिए भी ज़रूरी है. इतना सब करने के बावजूद सरकार अपने ही एक दफ़्तर, चाहे उसे जो भी संचालित करता हो, में शौचालय क्यों नहीं बनवा सकी.