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ब्लैक फंगस के इलाज का ये कौन सा इंजेक्शन है जो मार्केट से गायब हो गया है?

भयानक ब्लैक हो रहा है

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कोरोना के कुछ मरीज खतरनाक ब्लैक फंगस नाम के इंफेक्शन के शिकार हो रहे हैं. इसके इलाज में काम आने वाले इंजेक्शन को लोगों ने जमा कर ना शुरू कर दिया है. जिससे इसकी उपलब्धता घट गई है. कौन सा है ये इंजेक्शन.
अभी लोग कोरोनावायरस (Coronavirus) की बीमारी से लड़ ही रहे थे कि ब्लैक फंगस (Black Fungus) नाम के फंगल इंफेक्शन ने सिर उठाना शुरू कर दिया है. कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में एक खास तरीके का फंगल इंफेक्शन देखा जा रहा है. यह नाक के रास्ते मष्तिष्क तक पहुंच जाता है. कई मामलों में तो इसे ठीक करने के लिए आंख तक निकालनी पड़ रही है. लोग इस इंफेक्शन से इतने डरे हुए हैं कि इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाई दुकानों से गायब होने लगी है. आइए जानते हैं कौन सी है यह दवाई, क्या इसे घर पर स्टोर करना सुरक्षित है. पहले जानिए कि ब्लैक फंगस क्या है? ब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस (Mucormycosis) एक रेयर फंगल इन्फेक्शन है. हालांकि कोविड के समय इसके कई केसेस देखने को मिले रहे हैं. सारे कोविड पेशेंट्स में ये बीमारी नहीं होती है. दिल्ली में ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर मनीष आर्या का कहना है कि
वैसे तो इस फंगस के कण हमारे वातावरण में पहले से मौजूद होते हैं. यह खाने पर लगी फंगस की तरह ही होती है. लेकिन आपने देखा होगा कि फंगस ताजे खाने पर नहीं लगती. शरीर के साथ भी ऐसा ही होता है. जब शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इस फंगस से मुकाबला नहीं कर पाती तो यह फंगस शरीर पर असर दिखाती है. इस फंगस के कण हमारे शरीर में सांस के जरिए घुसते हैं. जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत है उनमें ये फंगस नहीं पनपने पाती. कोरोना के मरीजों में दी गई दवाइयों की वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और ऐसे में यह फंगल दिक्कत पैदा कर देती है.
ये फंगल इंफेक्शन अक्सर उन कोरोना मरीजों में होता है जिन्हें गंभीर डायबिटीज है या उन्हें स्टेरॉइड और टोसिलिजुमैब जैसी दवाइयों पर रखा गया. कहां बढ़ रहे हैं मामले अभी तक इसके सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में सामने आए हैं. यहां इसके 2000 मरीजों का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है. महाराष्ट्र में 8 लोगों की इससे मौत हो चुकी है. महाराष्ट्र के अलावा गुजरात में भी तकरीबन 70 और ओडिशा, दिल्ली, मध्य प्रदेश और यूपी से तकरीबन 40 मरीजों में ऐसी शिकायत देखी गई है. इसका इलाज क्या है? ब्लैक फंगस एक इनवेसिव फंगस है यानी शरीर को चीरते हुए जाता है, ये ब्लड वेसेल्स यानी धमनियों को क्रॉस करता है और उसे खत्म कर देता है. जहां-जहां ये फैलता है, उस एरिया में काला निशान पड़ जाता है. इसलिए इसे ब्लैक फंगस कहते हैं. एक बार ऐसा होने पर वहां पर ब्लड सप्लाई खत्म हो चुकी होती है. ऐसे में कोई दवा काम नहीं करती. ऐसी कंडीशन में सर्जरी के जरिए उस एरिया को हटाया जाता है. एडवांस केसेज़ में आंखों को निकालना भी पड़ सकता है. क्योंकि अगर उसे नहीं निकाला गया तो यह फैल कर मरीज़ के मष्तिष्क तक पहुंच सकता है और इससे जान भी जा सकती है.
अगर शुरुआत में ही इसका पता चल जाए तो इंट्रावेनस एंटीफंगल ड्रग्स से इसका इलाज किया जा सकता है. यह एक तरह का इंजेक्शन होता है जिसे ब्लैक फंगस इंफेक्शन की शुरुआत होने के वक्त दिए जाना फायदेमंद होता है. कोरोना के जिन मरीजों में चेहरे के आसपास सुन्न हो जाना या चेहरे का सूज जाना, आंखों के आसपास सूजन होना, पलकों का नीचे बैठ जाना, दोहरी चीज़ें दिखाई देना, सिर-नाक या आंख में तेज़ दर्द होना जैसे लक्षण दिखते हैं, तो ये ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण हैं. ये कौन सा इंजेक्शन है जो मार्केट से गायब हो रहा है? ब्लैक फंगस का इलाज करने के लिए एंटीफंगल इंजेशन दिया जाता है . ऐसा ही एक इंजेक्शन है एम्फोटेरिसिन बी (Amphotericin B). इस पीले रंग के इंजेक्शन की डिमांड इतनी ज्यादा है कि लोगों ने इसे जमा करना शुरू कर दिया है. इसकी वजह से मार्केट में इस दवाई की कमी आ गई है. अब सरकार ने दवा कंपनियों से इसका प्रोडक्शन बढ़ाने को कहा है. नेशनल फार्मास्यूटिक प्राइसिंग अथॉरिटी के अनुसार भारत में यह दवा भारत सीरम एंड वैक्सीन, वैक्हार्ड्ट (Wockhardt), एबट हेल्थकेयर (Abbott Healthcare), यूनाइटेड बायोटेक, सन फार्मा और सिप्ला जैसी कंपनियां बनाती हैं. वेबएमडी नाम की वेबसाइट पर साफ बताया गया है कि इस इंजेक्शन का इस्तेमाल सिर्फ गंभीर तरह के फंगल इंफेक्शन के लिए ही किया जाना चाहिए. इसे अलावा इसे साधारण तरह के फंगल इंफेक्शन के लिए इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है.
अगर ब्लैक फंगस के लक्षण शुरुआत में ही पकड़ लिए जाएं तो एंटी फंगल दवा के इंजेक्शन से इसका इलाज हो सकता है. - सांकेतिक चित्र
अगर ब्लैक फंगस के लक्षण शुरुआत में ही पकड़ लिए जाएं तो एंटी फंगल दवा के इंजेक्शन से इसका इलाज हो सकता है. - सांकेतिक चित्र
कितने का है ये इंजेक्शन इस दवा की कीमत कंपनियों के हिसाब से अलग-अलग है. इसकी कीमत 200 रुपए से शुरू होकर 5 हजार रुपए तक जाती है. लेकिन दवा की कमी की वजह से दिल्ली में मुंह मांगे दाम में मिल रही है. दिल्ली में एक मेडिकल स्टोर चलाने वाले योगेंद्र चहल ने बताया कि
दवा की सप्लाई पीछे से ही कम है इसलिए लोग मुंह मांगी कीमत दे रहे हैं. हमारे पास स्टॉक खत्म हो चुका है. अगले कुछ हफ्तों में आने की संभावना है
इंजेक्शन खरीदकर रखना कितना सेफ जब लोग दवा स्टोर करने में लगे हैं लेकिन एक्पर्ट्स का मानना है कि दवा को ट्वीट करना किसी समस्या का निदान नहीं है. दिल्ली में ईएनटी सर्जन पीएस गुडवानी कहते हैं कि
वैसे तो किसी भी तरह के इंजेक्शन आदि को स्टोर नहीं करना चाहिए. लेकिन इस तरह का खास इंजेक्शन तो कतई स्टोर नहीं करना चाहिए. इन्हें एक खास तापमान पर स्टोर किया जाता है. जिससे इसका असर बना रहता है. ऐसे में घर पर स्टोर किया हुआ इंजेक्शन फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. यह इंजेक्शन बहुत गंभीर फंगल इंफेक्शन के मामलों में ही दिया जाता है. ऐसे में यह कोई सामान्य सर्दी-जुकाम की दवा नहीं है, जिसे स्टोर करके रखा जाए.
ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. रुचि मदान कहती हैं कि
यह इंजेक्शन गंभीर पेशेंट्स को ही दिया जाता है. इसे स्पेशलिस्ट डॉक्टर की सलाह पर ही लिया जाना चाहिए. यह ब्लैक फंगस जैसी जानलेवा बीमारी में काम जरूर आता है लेकिन इसके तगड़े साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं. जिन लोगों को पहले ही कोई बीमारी है वह तो और भी ज्यादा सावधानी रखें.
फिलहाल भारत कोरोना की दूसरी लहर में एक और दवा की कमी से जूझ रहा है. भारत सरकार ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि इस दवाई के वितरण का एक सिस्टम बनाया जाए. इसे पहले उस अस्पताल में उपलब्ध कराया जाए जहां कोरोना के मरीजों का इलाज चल रहा है. लोगों के बीच प्रचार करके बताएं कि कोरोना का इलाज कर रहे अस्पतालों में इसे किससे लिया जाए. इस दवाई की सप्लाई पर NPPA नजर रखेगा. लेकिन अब तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि मनमानी कीमत पर उपलब्ध दवाई पर लगाम लगाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

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