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दिल्ली यूनिवर्सिटी के सिलेबस में 'ब्राह्मणीकरण', असमानता के चैप्टर हटे, किसने किया ये फैसला?

इससे पहले गांधी की जगह सावरकर का चैप्टर जोड़ा गया था.

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यूनिवर्सिटी ने ‘ब्राह्मणीकरण’ से जुड़ा चैप्टर चौथे और पांचवें सेमेस्टर के इतिहास के सब्जेक्ट से हटा दिया है. (फोटो- PTI)

दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के तहत अपने सिलेबस में बदलाव किया है. खबरों के मुताबिक ये बदलाव इतिहास के सब्जेक्ट में किए गए हैं. इनमें यूनिवर्सिटी ने ‘ब्राह्मणीकरण’ और असमानता से जुड़े चैप्टर को हटा दिया है.

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इंडिया टुडे में छपी मिलन शर्मा की रिपोर्ट के मुताबिक यूनिवर्सिटी ने ‘ब्राह्मणीकरण’ से जुड़ा चैप्टर चौथे और पांचवें सेमेस्टर के इतिहास के सब्जेक्ट से हटा दिया है. ब्राह्मणीकरण को ब्राह्मणवादी विचारधारा से जोड़ा जाता है, जिसे कई इतिहासकार, समाज सुधारक, धार्मिक-आध्यात्मिक गुरु, राजनीतिक जानकार आदि ‘आपत्तिजनक’ मानते हुए विरोध करते रहे हैं.

वहीं असमानता से जुड़े चैप्टर को भी हटाया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक अभी ये साफ नहीं है कि इस चैप्टर की जगह कौन सा नया टॉपिक जोड़ा गया है. 

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इन चैप्टर्स को हटाने के साथ-साथ यूनिवर्सिटी ने ‘मातृसत्तात्मकता’ से जुड़े कॉन्सेप्ट को ‘पितृसत्ता’ से जुड़े चैप्टर में जोड़ा है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ कैंपस के डीन प्रकाश सिंह इन बदलावों पर फैसला लेने वाली कमेटी का हिस्सा थे. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि रचनात्मक सुझाव भी दिए गए हैं, अब अधिक विविधता और जानकारी मौजूद है. 

उन्होंने बताया,

“ये निर्णय सभी की सहमति से लिया गया है. इसकी जानकारी अकादमिक काउंसिल को पहले ही दे दी गई थी. इसके लिए स्टैंडिंग कमेटी की तरफ से भी सुझाव दिए गए थे.”

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गांधी की जगह सावरकर

इससे पहले मई 2023 में DU की एकेडमिक काउंसिल ने 5वें सेमेस्टर के सिलेबस में महात्मा गांधी की जगह सावरकर से जुड़ा चैप्टर जोड़ा था. तब मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बताया गया था कि DU में इससे पहले कभी भी सावरकर पर एक पूरा चैप्टर नहीं पढ़ाया गया. काउंसिल के इस फैसले का शिक्षकों के एक गुट ने विरोध भी किया था.

आजतक से बातचीत में एकेडमिक काउंसिल के मेंबर आलोक राजन पांडे ने कहा था,

"गांधी को अब सावरकर की जगह पर सातवें सेमेस्टर में रखा गया है. इसी बात पर समस्या है. सावरकर को हर हाल में पढ़ाएं, लेकिन जब यह गांधी की जगह पर किया जा रहा है तो हमने इस पर आपत्ति जताई है."

प्रोफेसर पांडे ने कहा था कि भारत के राष्ट्रीय आंदोलनों में, स्वाधीनता आंदोलनों में, जाति-प्रथा में महात्मा गांधी का योगदान अतुलनीय है. छुआछूत के उन्मूलन में उनके कार्यों को नकारा नहीं जा सकता है.

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