30 जून. कर्नाटक का मैसूर. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Siddaramaiah) और उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) की प्रेस कॉन्फ्रेंस. मीडिया ने सीएम से पूछा क्या दोनों के बीच सब ठीक है. सिद्धारमैया ने जवाब में मुस्कुराते हुए हामी भरी और डीके का हाथ पकड़कर समर्थन में ऊपर उठा दिया. फिर डीके ने भी उनकी बातों का समर्थन किया. कोशिश एकजुटता दिखाने की थी. जोकि पिछले कुछ दिनों से दिख नहीं रही है. जिसके चलते कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय आलाकमान ने रणदीप सुरजेवाला (Randeep Surjewala) के तौर पर अपना दूत भी भेजा है.
डीके शिवकुमार-सिद्धारमैया के बीच सब ठीक! फिर 'दूत' रणदीप सुरजेवाला कर्नाटक क्यों गए?
Karnataka में DK Shivkumar और Siddaramaiah गुट के बीच की खींचातानी एक बार फिर से सतह पर आ गई है. कांग्रेस आलाकमान ने इस विवाद को सुलझाने के लिए पार्टी महासचिव Randeep Surjewala को कर्नाटक भेजा है.

इस विवाद को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा.कर्नाटक में साल 2023 में पिछला विधानसभा चुनाव हुआ था. पार्टी के प्रचार अभियान की कमान डीके शिवकुमार के हाथों में थी. बहुमत आया तो उन्होंने सीएम पद की दावेदारी भी की. लेकिन रेस में वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया से मात खा गए.
तबसे रह रहकर उनकी महत्वकांक्षा उभार लेती रहती है. और उन्होंने इस चीज को छिपाने की भी कोशिश नहीं की है. उनके समर्थक तो सीएम की कुर्सी के लिए ढाई-ढाई साल के फार्मूले की भी बात करते हैं. लेकिन सिद्धारमैया कुर्सी पर जम गए हैं. और पांच साल से पहले इसमें ढील देने को कतई राजी नहीं हैं.
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन के सवाल पर कहा कि इस पर पार्टी हाईकमान कोई फैसला करेगा. जब भी बदलाव होगा, हाईकमान ही करेगा. अब कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि हाईकमान क्या फैसला लेगा. उन्होंने आगे कहा कि हाईकमान को आगे की कार्रवाई करने का अधिकार है लेकिन बेवजह किसी को समस्या नहीं खड़ी करनी चाहिए.
मल्लिकार्जुन खरगे के इस बयान का मतलब डीके और सिद्दारमैया दोनों गुटों ने अपने अपने तरह से निकाला है. राज्य में सहकारिता मंत्री और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के करीबी एन. राजन्ना ने सितंबर के बाद ‘क्रांतिकारी बदलाव’ का दावा कर दिया. उनका इशारा कांग्रेस के राज्य प्रमुख पद पर बदलाव को लेकर था, जिसकी जिम्मेदारी अभी डीके शिवकुमार के पास है. वहीं दूसरी तरफ डीके समर्थक विधायक एचए इकबाल हुसैन ने दावा कर दिया कि डीके शिवकुमार को अगले 2 से 3 महीनों के अंदर मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल सकता है.
असंतोष को खत्म करने पहुंचे रणदीप सुरजेवाला!डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया गुट में चल रहे खींचतान के बीच कांग्रेस आलाकमान सतर्क हो गई. और स्थिति का जायजा लेने के लिए पार्टी के महासचिव रणदीप सुरजेवाला को कर्नाटक रवाना किया गया.
सुरजेवाला सभी विधायकों और विधान पार्षदों, जिला कांग्रेस अध्यक्षों, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हारे सभी उम्मीदवारों से बातचीत की योजना बना रहे हैं. ताकि उनकी चिंताओं और मांगों को समझा जा सके.
विधायकों और विधान पार्षदों से मिलने के उनके फैसले को सिद्धारमैया मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल या फिर नेतृत्व परिवर्तन के बारे में विधायकों का मन टटोलने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है.
हालांकि सिद्धारमैया खेमे के एक करीबी नेता की मानें तो वो पांच सालों तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे. उन्होंने बताया कि पार्टी फिलहाल सिद्धारमैया जैसे बड़े कद के पिछड़े वर्ग के नेता को हटाने का जोखिम नहीं लेगी.
वहीं कांग्रेस आलाकमान से जुड़े सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
सुरजेवाला के दौरे का उद्देश्य नेतृत्व के एक वर्ग में पनप रही निराशा को दूर करना था. पार्टी के एक केंद्रीय नेता ने बताया कि कुछ विधायकों ने फंड आवंटन को लेकर शिकायत की थी. इसके अलावा पार्टी और सरकार दोनों में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर बयानबाजी हो रही है. इसलिए हमने तय किया कि प्रभारी महासचिव वहां जाएं, सभी स्तर पर नेताओं से मुलाकात करें. उनकी चिंताओं को समझें. और उन्हें विवादों को सार्वजनिक करने से बचने की सलाह दें.
रणदीप सुरजेवाला ने भी कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की बात से इनकार किया. उन्होंने कहा कि मीडिया में चल रही खबरें केवल कल्पना की उपज हैं. सुरजेवाला ने बताया,
मैं सभी कांग्रेस विधायकों से व्यक्तिगत तौर पर मिल रहा हूं. और इसके पीछे मेरा उद्देश्य विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी की पांच गारंटी योजनाओं का जायजा लेना है. क्योंकि सरकार ने अपने कार्यकाल के दो साल पूरे कर लिए हैं.
रणदीप सुरजेवाला भले ही नेतृत्व परिवर्तन की बात को खारिज करें. लेकिन उनके दौरे का मकसद कहीं न कहीं राज्य कांग्रेस में चल रहे अंदरुनी खींचतान को एड्रेस करना है. क्योंकि पार्टी को इस बात का इल्म है कि अगर इससे नहीं निपटा गया तो भविष्य में राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे नतीजे आ सकते हैं. जहां सचिन पायलट-अशोक गहलोत और भूपेश बघेल-टीएस सिंहदेव की बीच चल रहे सत्ता संघर्ष की कीमत पार्टी को सत्ता गंवाकर चुकानी पड़ी.
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