क्यों गिराई जा ही है यह आइकॉनिक बिल्डिंग
विरोध करने वाले स्टूडेट्स का कहना है कि 1960 में अमेरिकी आर्किटेक्ट लुइस काह्न द्वारा बनाई पुरानी बिल्डिंग कैंपस की प्रतिष्ठा हैं और इन्हें गिराने का फैसला वापस होना चाहिए.आईआईएम प्रशासन का कहना है कि इन पुरानी बिल्डिंग को गिराने की सबसे बड़ी वजह कुछ सालों में बिल्डिंग को हुआ भारी नुकसान है. 2001 के भूकंप के बाद बिल्डिंगों के ढांचे भी कमजोरी आई है. इसके अलावा जो नई बिल्डिंग बनाई जाएंगी वहां ज्यादा स्टूडेंट्स रह सकेंगे. पुराने हॉस्टल कॉम्प्लेक्स में जहां सिर्फ 500 स्टूडेंट्स ही रह सकते थे, वहीं नए कॉम्प्लेक्स में 800 स्टूडेंट्स रूम बनाए जाएंगे.
सोमाया एंड कलप्पा कंसल्टेंट्स बनाएंगे नई बिल्डिंग इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक प्रतिष्ठित इमारतों को तोड़ कर फिर बनाने की जिम्मेदारी मुंबई की एक कंपनी- सोमाया एंड कलप्पा कंसल्टेंट्स (SNK) को दी गई है. यह कंपनी पहले ही पुराने डॉर्म्स, कैंपस की विक्रम साराभाई लाइब्रेरी और फैकल्टी-प्रशासनिक ब्लॉक्स की मरम्मत का काम कर रही है. 2014 में एक प्रतियोगिता के बाद इस कंपनी को कैंपस के रेनोवेशन का काम सौंपा गया था. पिछले साल ही इस कंपनी को लाइब्रेरी की मरम्मत के लिए UNESCO अवॉर्ड से नवाजा गया था.

आईआईएम अहमदाबाद की पुरानी बिल्डिंग को गिराकर नई बिल्डिंग बनाने के लिए नई कंपनी को भी चुन लिया है.
डायरेक्टरों ने समझाने के लिए 11 पन्नों की चिट्ठी लिखी
IIM-A के इस फैसले पर उपजे विवाद के बाद इंस्टिट्यूट्स के डायरेक्टर प्रोफेसर एरल डिसूजा ने पुराने स्टूडेंट्स को 11 पन्नों की चिट्ठी लिखी है. इसमें उन्होंने पुरानी बिल्डिंग को तोड़ने की वजहें बताई हैं. चिट्ठी में कहा गया है कि पुराने ढांचों में रहना मुश्किल हो रहा था, क्योंकि इसके कंक्रीट और स्लैब लगातार गिरते रहते हैं और इससे लोगों की जान पर खतरा हो सकता है.
हालांकि, आर्किटेक्चर एक्सपर्ट, छात्र और फैकल्टी इस फैसले से खुश नहीं हैं. दरअसल, 20वीं सदी के कुछ बेहतरीन आर्किटेक्चरल नमूनों में आईआईएम-ए की बिल्डिंग भी एक है. इस बिल्डिंग को अमेरिका के लोकप्रिय आर्किटेक्ट लुइस काह्न ने डिजाइन किया था, जो कि 1962 में संस्था के संस्थापक-निदेशक विक्रम साराभाई के न्योते पर भारत आए थे. काह्न को यहां नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन में सलाहकार बनाया गया था और वे लगातार IIM-A का बिल्डिंगों पर काम करते रहे.