कोलकाता का आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल. एक जूनियर डॉक्टर से रेप और उनकी हत्या के बाद से सुर्खियों में है. 14 अगस्त की देर रात अस्पताल में तोड़-फोड़ भी की गई. इस घटना के खिलाफ अस्पताल के डॉक्टर्स अब भी प्रदर्शन कर रहे हैं. 138 सालों के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि ये अस्पताल इतने लंबे समय तक विवादों में घिरा है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि अस्पताल पहले विवादों में नहीं रहा. पिछले दशकों में ये अस्पताल महिला डॉक्टरों के हॉस्टल नहीं होने, अस्पताल की खराब व्यवस्था को लेकर चर्चा में बना रहा.
138 साल पुराना है डॉक्टर रेप केस वाला आरजी कर अस्पताल, संस्थापक राधा गोविंद भी हुए थे गिरफ्तार
तमाम विवादों के बावजूद, ये अस्पताल लंबे समय तक कोलकाता की स्वास्थ्य व्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ रहा है. और ये देश के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में से एक है.

आज हालत ये है कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में CISF के 150 से ज्यादा जवान तैनात हैं. पिछले 12 दिनों से पुलिस छावनी में तब्दील है. तमाम विवादों के बावजूद, ये अस्पताल लंबे समय तक कोलकाता की स्वास्थ्य व्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ रहा है. और ये देश के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में से एक है. इस अस्पताल की स्थापना एक डॉक्टर राधा गोविंद कर ने साल 1886 में की थी. उन्हीं के नाम पर अभी अस्पताल का नाम 'आरजी कर' है. ये वो दौर था, जब कलकत्ता में कई बीमारियां फैल गई थीं लेकिन वहां ज्यादा अस्पताल नहीं थे.
राधा गोविंद कर एक धनाढ्य परिवार में पैदा हुए थे. साल था 1852. अंग्रेजों के खिलाफ पहले स्वतंत्रता संग्राम से पांच साल पहले. टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट बताती है कि राधा गोविंद के पिता दुर्गादास कर कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन पढ़ाते थे. दुर्गादास उन शुरुआती लोगों में हैं, जिन्होंने बांग्ला में मेडिकल की किताबें लिखीं.
पिता की तरह ही राधा गोविंद की दिलचस्पी मेडिसिन में जगी. वो भी स्कूली पढ़ाई के दौरान ही. रिपोर्ट्स बताती हैं कि गोविंद विदेश जाकर मेडिसिन पढ़ना चाहते थे. लेकिन उनके पिता की इसमें रजामंदी नहीं थी. इसलिए, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज (तब बंगाल मेडिकल कॉलेज) में एडमिशन लेना पड़ा. ये अस्पताल तब एशिया का सबसे पुराना मेडिकल कॉलेज था.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, राधा गोविंद कर की शादी बहुत जल्दी हो गई थी. पढ़ाई के दौरान ही उनकी पत्नी का निधन हो गया. उन्होंने दोबारा शादी की. इस बीच वे किसी घटना के कारण गिरफ्तार भी किए गए थे. घटना क्या थी, ये साफ नहीं है. इसके बाद, उनके जीवन की बड़ी घटना स्कॉटलैंड जाने की है. ये साल 1883 था. पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग गए थे.
1886 में वे पढ़ाई के बाद भारत वापस लौटे. कलकत्ता तब हैजा और प्लेग जैसी संक्रामक बीमारियों की चपेट में था. वापस लौटते ही उन्होंने कलकत्ता के कुछ डॉक्टरों के साथ मिलकर एक सोसायटी बनाई. इसी दौरान उन्हें एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खोलने का खयाल आया. उसी साल 'कलकत्ता स्कूल ऑफ मेडिसिन' की स्थापना हो गई. कोलकाता के बैठकखाना बाजार रोड के एक रेंट के मकान में ये मेडिकल कॉलेज खुला. जो एशिया में इस तरह का पहला इंस्टीट्यूट था.
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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, तब कॉलेज में तीन साल का मेडिकल कोर्स शुरू किया गया था. बांग्ला में पढ़ाई होती थी. स्थापना के तुरंत बाद कॉलेज चर्चित हो गया. फिर छात्रों के लिए जगह कम पड़ गई. इस कारण कॉलेज को बऊबाजार में एक दूसरी बिल्डिंग में शिफ्ट किया गया. हालांकि, तब वहां नजदीक में कोई अस्पताल नहीं था. छात्रों को ट्रेनिंग के लिए हावड़ा के मायो अस्पताल जाना पड़ता था.
कई बार बदल चुका नाममेडिकल कॉलेज चर्चित होने और छात्रों की संख्या बढ़ने के बाद कई जगहों पर शिफ्ट होता रहा. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1898 में कॉलेज बिल्डिंग के लिए बेलगछिया में 12 हजार रुपये से चार एकड़ जमीन खरीदी गई. चार साल बाद, 1902 में बिल्डिंग बनकर तैयार हुई. तब बंगाल के गवर्नर लॉर्ड वुडबर्न ने एक 30 बेड वाले अस्पताल का उद्घाटन किया. इसके बाद बिल्डिंग में दो फ्लोर और बनाए गए.
साल 1904 में कलकत्ता स्कूल ऑफ मेडिसिन का कॉलेज ऑफ फिजिशियन्स एंड सर्जन्स ऑफ बंगाल के साथ विलय हो गया. विलय के बाद संस्थान का नाम बदलकर बेलगछिया मेडिकल कॉलेज हो गया. 1916 में तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड कारमाइकल ने इसका उद्घाटन किया. बाद में उन्हीं के नाम पर इस मेडिकल कॉलेज का नाम कारमाइकल कॉलेज हो गया.
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इस बीच राधा गोविंद कर भी पिता की तरह मेडिसिन की किताबें लिखते रहे. साल 1918 में उनका निधन हो गया. लेकिन उनके निधन के बाद अस्पताल बड़ा होता गया. अलग-अलग डिपार्टमेंट खुलते गए. उनके निधन के 30 साल बाद, 1948 में बंगाल के तत्कालीन प्रीमियर बिधान चंद्र रॉय ने कारमाइकल कॉलेज का नाम बदलकर आरजी कर मेडिकल कॉलेज (राधा गोविंद के नाम पर) कर दिया. और फिर इसके एक दशक बाद, ये एक सरकारी मेडिकल कॉलेज बन गया.
राधा गोविंद के समकक्षों में कोलकाता के नील रत्न सरकार भी थे. उनका जन्म 1961 में हुआ था. उनके नाम पर भी सियालदह में NRS मेडिकल कॉलेज है. आज पश्चिम बंगाल में आरजी कर और एनआरएस अस्पताल को सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में गिना जाता है, जहां रोज हजारों मरीज आते हैं.
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