आज कहानी की शुरुआत एक पहेली से करते हैं. दुबई में दो भाईयों की गिरफ़्तारी होती हैं. हलचल 11 हज़ार किलोमीटर दूर साउथ अफ़्रीका में मच जाती है. गिरफ़्तारी हुई, ये ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट नहीं है. किनकी गिरफ़्तारी हुई, ये ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है. कितना इम्पोर्टेन्ट? ये समझने के लिए कुछ तथ्य सुनिए;
- सहारनपुर से साउथ अफ़्रीका पहुंचे तीन भाई, जिन्होंने पूरे मुल्क़ को ऊंगलियों पर नचा दिया.
- इन भाईयों के इशारे पर दक्षिण अफ़्रीका की सरकार में मंत्री कपड़े की तरह बदल दिए जाते थे.
- कहा तो ये भी जाता था कि सरकार प्रेसिडेंशियल ऑफ़िस में नहीं, बल्कि उनकी जेब में रहती थी.
- जिनकी लूट का घड़ा भरा तो तेज़ बहाव आया. इस बहाव ने एक राष्ट्रपति का पोलिटिकल कैरियर डुबो दिया.
साउथ अफ्रीका को नाचने वाले गुप्ता ब्रदर्स के दिन पूरे हो गए, UAE से गिरफ्तार
जानिए सहारनपुर से साउथ अफ्रीका पहुंचे गुप्ता ब्रदर्स की पूरी कहानी, जिनके एक इशारे पर कपड़ों की तरह बदल दिए जाते थे मंत्री.

अभी तक आपको अंदाज़ा हो चुका होगा कि हम गुप्ता ब्रदर्स की बात कर रहे हैं. अजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और राजेश गुप्ता. 06 जून को इनमें से दो, अतुल और राजेश को दुबई में गिरफ़्तार किया गया है. साउथ अफ़्रीका सरकार उनके प्रत्यर्पण को लेकर बातचीत कर रही है.
क्या है गुप्ता ब्रदर्स की पूरी कहानी?पूरा मामला जानने के लिए पहले बैकग्राउंड समझ लेते हैं. इस बैकग्राउंड की पटकथा उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में लिखी गई थी. लगभग चार दशक पहले. सहारनपुर के रहने वाले शिवकुमार गुप्ता सोपस्टोन पाउडर का कारोबार करते थे. शिवकुमार गुप्ता के चार बेटे थे. अतुल, अजय, राजेश और वरुण. इस कहानी में पहले तीन का नाम याद रखिएगा. क्योंकि पूरी कहानी इन्हीं के इर्द-गिर्द बुनी हुई है.
गुप्ता बंधु अपने पिता के कारोबार को विस्तार देना चाहते थे. इसलिए, उन्होंने SKG ग्रुप की स्थापना रखी. SKG का फ़ुल फ़ॉर्म निकालेंगे तो शिव कुमार गुप्ता बनता है. ये कंपनी मसालों के बिजनेस में उतरी. वे मेडागास्कर और जंज़ीबार जैसी जगहों से मसाले मंगवाते थे. इसी बिजनेस के सिलसिले में उनका अक्सर दिल्ली आना पड़ता था. दिल्ली यानी भारत की सत्ता का केंद्र. 1990 के दशक में इस केंद्र में भारी उथल-पुथल मची थी. भारत उदारीकरण के लिए तैयार हो रहा था. यहां का बाज़ार दुनिया के लिए खोला जा रहा था. भारत में नए अवसर पैदा हो रहे थे. लेकिन गुप्ता परिवार इसके आगे की सोच रहा था.
जिस समय भारत में आर्थिक आज़ादी की नींव रखी जा रही थी, उसी समय साउथ अफ़्रीका में सामाजिक क्रांति का सबसे बड़ा अध्याय लिखा जा रहा था. लंबे संघर्ष के बाद ये देश आखिरकार रंगभेद से आजाद होने जा रहा था. अश्वेतों को उनके अधिकार मिल रहे थे. मुल्क में बराबरी आ रही थी. इस बदलाव पर गुप्ता परिवार की भी नज़र थी. शिव कुमार गुप्ता ने अपने बेटों को बुलाकर कहा, साउथ अफ़्रीका नया अमेरिका बनने जा रहा है. वहां जाकर अपना कारोबार जमाओ. सुनहरा भविष्य तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है. अमेरिका को ‘अवसरों की धरती’ कहा जाता है. साउथ अफ़्रीका ऐसा था या नहीं, ये अनुमानों के आईने में बंद था. लेकिन अपने पिता की बात पर भरोसा किया, मंझले बेटे अतुल गुप्ता ने. 1993 के साल में वो साउथ अफ़्रीका पहुंचे. वहां उन्होंने जूते की दुकान खोली. सबसे बड़े राजेश गुप्ता रूस गए. जबकि छोटे भाई अजय चीन पहुंच गए.
फिर आया साल 1994. साउथ अफ़्रीका में पहला लोकतांत्रिक चुनाव हुआ. पहली बार रंग, नस्ल, जाति, लिंग का भेदभाव खत्म हो रहा था. सबको समानता का अधिकार मिला था. चुनाव के नतीजे आए तो अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) विजेता बनकर उभरी थी. ANC के नेता नेल्सन मंडेला देश के राष्ट्रपति बने. उसके बाद से साउथ अफ़्रीका के हर चुनाव में ANC ही विजेता बनी है.
साउथ अफ़्रीका में रंगभेद की नीति पर लगाम लगा था, लेकिन चुनौतियां बरकरार थीं. उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा निवेश चाहिए था. रोजगार के अवसर पैदा करने थे. इस वजह से उन्होंने फ़ाइलों का प्रोसेस सिंपल रखा. बहुत लालफीताशाही नहीं थी. बिजनेस करना आसान था. अतुल गुप्ता को लगा कि ये काम चल निकलेगा. अतुल ने भारत में कंप्यूटर असेंबल, रिपेयर और मेंटेन करने का काम सीख रखा था. 1990 के दशक में आईटी इंडस्ट्री बूम पर थी. अतुल को लगा कि इस मिश्रण का फायदा उठाया जा सकता है. उन्होंने अपना प्लान डिस्कस किया. परिवार राज़ी हो गया. उन्होंने बिजनेस बढ़ाने के लिए 12 लाख रुपये भेजे. इन्हीं पैसों से अतुल गुप्ता ने 1994 में करेक्ट मार्केटिंग की नींव रखी. ये कंपनी कंप्यूटर और उसके स्पेयर पार्ट्स विदेशों से आयात करके बेचती थी. कुछ समय बाद इस कंपनी का नाम बदलकर सहारा कंप्यूटर्स कर दिया गया.
कंपनी चल निकली. इससे आया पैसा. पैसे से रसूख की आमद हुई. उधर, राजेश और अजय का बिजनेस ठप पड़ा हुआ था. अतुल गुप्ता को भरोसेमंद पार्टनर्स की ज़रूरत महसूस हो रही थी. भाईयों से ज़्यादा भरोसा किस पर दिखाया जा सकता था? अतुल ने दोनों को साउथ अफ़्रीका बुला लिया. धीरे-धीरे तीनों भाईयों ने मिलकर बिजनेस बढ़ाना शुरू किया. जूते और कंप्यूटर से शुरू हुआ बिजनेस माइनिंग, एयर ट्रैवल, एनर्जी, टेक्नोलॉजी और मीडिया तक पहुंच गया. सत्ताधारी पार्टी से उनकी नजदीकी काम आ रही थी.
जून 1999 में नेल्सन मंडेला सत्ता से बाहर चले गए. उनकी जगह राष्ट्रपति बने थाबो मबेकी. उन्हीं के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति बने जैकब जुमा. 2005 में थाबो ने जैकब को बर्खास्त कर दिया. उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. जैकब के सहयोगी को उनके लिए रिश्वत का इंतजाम करते हुए पकड़ा गया था. मगर जैकब की किस्मत अच्छी थी. इतने गंभीर आरोप के बावजूद 2007 में वो ANC के अध्यक्ष बन गए. दक्षिण अफ्रीका की हाई कोर्ट के जज ने थाबो के खिलाफ फैसला सुनाया. कहा गया कि उन्होंने जांच एजेंसी के काम में दखलंदाजी की. जैकब वाले मामले में भी जांच को प्रभावित करने की कोशिश की. इस हो-हल्ले के बीच थाबो को इस्तीफा देना पड़ा. 2009 में आम चुनाव हुए. जैकब के नेतृत्व में ANC ने चुनाव लड़ा. पार्टी जीत गई. जैकब ज़ुमा राष्ट्रपति बन गए.
यहां से गुप्ता ब्रदर्स की गाड़ी पर लगा हर तरह का ब्रेक हट गया. दरअसल, जैकब ज़ुमा सहारा ग्रुप की एक पार्टी में शिरकत करने आए थे. वहां उनकी मुलाक़ात गुप्ता ब्रदर्स से हुई. कहा जाता है कि ज़ुमा को इकॉनमी और मार्केट का बहुत अनुभव नहीं है. गुप्ता बंधुओं ने इसका पूरा फायदा उठाया. उन्होंने ज़ुमा को अपने शीशे में उतार लिया. ज़ुमा के कई करीबियों को गुप्ता ब्रदर्स की कंपनियों में बड़े पदों पर बिठाया गया. मसलन, ज़ुमा के एक बेटे ने इंटर्न के तौर पर कैरियर शुरू किया. वो बाद में उसी कंपनी का डायरेक्टर बन गया. ज़ुमा की एक पत्नी को गुप्ता ब्रदर्स की एक माइनिंग कंपनी में कम्युनिकेशन ऑफ़िसर बनाया गया. उनकी एक बेटी सहारा कंप्यूटर्स की डायरेक्टर बनाई गई थी. ज़ुमा ने इन अहसानों का बदला बखूबी चुकाया. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने गुप्ता ब्रदर्स को फ़्री हैंड दे दिया.
गुप्ता ब्रदर्स मंत्री बनाने और बर्ख़ास्त करने के खेल में शामिल हो गए. वे सरकारी अधिकारियों को खुलेआम धमकियां देने लगे. 2013 में उन्होंने अफ़्रीकन न्यूज़ नेटवर्क 7 (ANN 7) नाम से एक टीवी चैनल की स्थापना की. ये चैनल जैकब ज़ुमा और उनकी सरकार के लिए प्रोपेगैंडा फैलाने में शामिल था. टीवी से पहले उन्होंने एक अख़बार भी शुरू किया था. इस अख़बार में जैकब ज़ुमा नायक की तरह पेश किए जाते थे. ये उन्हें सत्ता के लिए फ़िट साबित करता था. कुछ समय बाद जैकब ज़ुमा और गुप्ता ब्रदर्स की राह एक-दूसरे से नत्थी हो चुकी थी.
आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि गुप्ता ब्रदर्स कितने ताक़तवर थे?
- रिपोर्ट्स हैं कि 2016 में अतुल गुप्ता दक्षिण अफ़्रीका के सबसे अमीर अश्वेत थे. उनके पास लगभग 55 अरब रुपये की संपत्ति थी. तीनों भाईयों की संपत्ति जोड़ने के बाद ये आंकड़ा कई गुणा ऊपर जा सकता था.
- गुप्ता ब्रदर्स ने कई नेताओं को मंत्री बनाने का ऑफ़र दिया था. बदले में उनसे कहा जाता था कि वे उनके इशारे पर काम करेंगे.
- गुप्ता ब्रदर्स ने एक दफ़ा डिप्लोमैटिक पासपोर्ट के लिए भी अप्लाई किया था. तर्क ये दिया गया था कि वे अक्सर राष्ट्रपति के साथ सफ़र करते हैं, इसलिए उन्हें डिप्लोमैटिक पासपोर्ट चाहिए. लेकिन उनका आवेदन रद्द कर दिया गया.
- 2013 में गुप्ता परिवार में एक शादी हुई. इसी शादी के दौरान एक चार्टर्ड प्लेन प्रिटोरिया के वाटरक्लूफ़ एयरपोर्ट पर उतरा. ये एयरपोर्ट राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी राजनीतिज्ञों के लिए आरक्षित है. शादी के लिए उतरे प्लेन में दो सौ से अधिक मेहमान थे. इन मेहमानों को लाल बत्ती वाली गाड़ियों के साथ ले जाया गया. पूरी सरकारी मशीनरी एक प्राइवेट फ़ंक्शन के लिए हाथ बांधकर खड़ी थी. इसने दक्षिण अफ़्रीका में बवाल खड़ा कर दिया. उस समय तक गुप्ता ब्रदर्स को बहुत कम लोग जानते थे. लेकिन उस प्लेन ने गुप्ता ब्रदर्स को कुख्यात और प्रख्यात, दोनों वर्गों में जगह दिला दी. इस घटना के बाद देशभर में गुप्ता ब्रदर्स और जैकब ज़ुमा का विरोध हुआ. आरोप लगे कि सत्ता का ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा है. इसपर गुप्ता परिवार को माफ़ी मांगनी पड़ी.
ये मामला उस समय तो शांत पड़ गया, लेकिन चिनगारी अभी बुझी नहीं थी. 2017 में गुप्ता ब्रदर्स से जुड़े हज़ारों ईमेल्स लीक हो गए. इनमें 2013 में हुई शादी का भी ज़िक़्र था. पता चला कि जिस शादी के लिए चार्टर्ड प्लेन और आलीशान रिज़ॉर्ट बुक किया गया था, उसके लिए पैसा ग़लत तरीके से उठाया गया था. दरअसल, ग़रीब किसानों की मदद के लिए जारी किए गए करोड़ों रुपये अतुल गुप्ता के निजी अकाउंट में ट्रांसफ़र किए गए थे. गुप्ता ब्रदर्स ने कहा कि शादी के लिए इस पैसे का इस्तेमाल नहीं किया गया. लेकिन वे इस रकम को लेकर कोई सफ़ाई नहीं दे पाए.
इस ऐपिसोड ने जैकब ज़ुमा को सवालों के घेरे में ला दिया. गुप्ता ब्रदर्स को लुटेरों के तौर पर देखा जाने लगा था. उनसे देश छोड़ने की मांग की जाने लगी. इस दौर में उन्होंने एक पीआर फ़र्म को हायर किया. बेल पोटिंगर. इस फ़र्म की स्थापना 1989 के साल में की गई थी. इसे यूके की प्रधानमंत्री रहीं मार्गरेट थैचर के पीआर गुरू लॉर्ड बेल ने बनाया था. इस कंपनी के क्लाइंट्स की लिस्ट में सीआईए से लेकर श्रीलंका सरकार तक शामिल थी. बेल पोटिंगर ने जैकब ज़ुमा को बचाने के लिए वाइट बनाम ब्लैक की बहस शुरू करवा दी. इस कंपनी का पेमेंट गुप्ता ब्रदर्स की कंपनी ओकबे ही करती थी. बेल पोटिंगर का कैंपेन इतना बिगड़ा कि इसने गुप्ता ब्रदर्स और जैकब ज़ुमा, दोनों का कैरियर बिगाड़ दिया. ख़ुद बेल पोटिंगर को दिवालिया होना पड़ा.
इस विवाद के बीच गुप्ता-ज़ुमा नेक्सस को लेकर रोज़ नए खुलासे हो रहे थे. उनके करप्शन की कोई सीमा नहीं थी. ज़ुमा का जाना तय था. फ़रवरी 2018 में अपने कार्यकाल के बीच में उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. सिरिल रामाफ़ोसा साउथ अफ़्रीका ने कार्यवाहक राष्ट्रपति बने. तब जाकर गुप्ता ब्रदर्स के ख़िलाफ़ न्यायिक जांच शुरू हुई. जांच के बीच में ही वे साउथ अफ़्रीका से भागकर दुबई आ गए. यूएई के साथ साउथ अफ़्रीका की किसी भी तरह की प्रत्यर्पण संधि नहीं थी. इसलिए, उन्हें उठाकर साउथ अफ़्रीका ले जाना मुश्किल था.
साउथ अफ़्रीका सरकार ने 2021 में इसका रास्ता निकाला. उन्होंने यूएई के साथ प्रत्यर्पण संधि कर ली. इसके बावजूद गुप्ता ब्रदर्स को अरेस्ट करने में एक साल का वक़्त लग गया.
दुबई पुलिस के मुताबिक, अतुल और राजेश गुप्ता को मनी लॉन्ड्रिंग और दूसरे आपराधिक चार्जेज में गिरफ़्तार किया गया है. साउथ अफ़्रीका सरकार उनके प्रत्यर्पण के लिए बातचीत कर रही है. जानकारों की मानें तो उन्हें साउथ अफ़्रीका ले जाना इतना आसान नहीं होगा.
हमने गुप्ता ब्रदर्स-जैकब ज़ुमा की मिलीभगत और उनके भविष्य के बारे में राजेश सुंदरम से बात की. राजेश सुंदरम बिजनेस टुडे के साथ बतौर कंसल्टेंट जुड़े हैं. उन्होंने गुप्ता ब्रदर्स के ऊपर एक किताब लिखी है. इंडेन्चर्ड: बिहाइंड द सींस एट गुप्ता टीवी. ये किताब दक्षिण अफ़्रीका में बेस्टसेलर है. इसके ऊपर जल्दी ही एक सीरीज़ भी आ रही है. उन्होंने बताया,
"साउथ अफ्रीका छोड़कर दुबई भागने के बाद उनके साथ तीन-चार चीजें हुईं. अमेरिका ने इनके ऊपर प्रतिबंध लगा दिए और वहां मौजूद उनकी संपत्तियों को फ्रीज़ कर दिया. साथ ही अमेरिकी कंपनियों को इनके साथ कारोबार करने से भी रोक दिया था. यही काम यूके ने भी किया. FATF ने UAE को ग्रे लिस्ट में डाल दिया, जिसके बाद UAE पर प्रेशर बना और उन्होंने साउथ अफ्रीका के साथ प्रत्यर्पण संधि की. गुप्ता ब्रदर्स का भविष्य अब ज्यादा उज्ज्वल तो नहीं है लेकिन वो हाथ-पैर जरूर मरेंगे. बेल के लिए भी अप्लाई कर सकते हैं."
राजेश सुंदरम ने आगे बताया कि फिलहाल दो भाइयों अतुल गुप्ता और राजेश गुप्ता की ही गिरफ्तारी हुई है, अभी सबसे बड़े भाई अजय गुप्ता की गिरफ्तारी नहीं हुई है. उनके खिलाफ भी केस चल रहे हैं, देर-सबेर उनकी भी गिरफ्तारी होगी.
वीडियो: क्या है दक्षिण अफ्रीका को चलाने वाले गुप्ता ब्रदर्स की पूरी कहानी?