2002 नरोदा गाम दंगा मामले में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी (Maya Kodnani) बरी हो गईं. अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने इस मामले में सभी 69 आरोपियों को बरी कर दिया. 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोदा गांव में 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया था. मामले में कोडनानी मुख्य आरोपी थीं. कोर्ट के फैसले के बाद माया कोडनानी ने मीडिया से कहा कि आज उनका न्याय तंत्र पर विश्वास बढ़ गया है. 67 साल की कोडनानी ने परमात्मा का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि आज सही मायने में सत्य की जीत हुई है.
नरोदा दंगों में बरी होने के बाद माया कोडनानी अब क्या करने वाली हैं?
बरी होने के बाद कोडनानी ने कहा कि सत्य की जीत हुई है.

माया कोडनानी राजनीति में आने से पहले डॉक्टर थी. गाइनकॉलजिस्ट. माया का परिवार आजादी से पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रहता था. जो कि बंटवारे के बाद गुजरात में आकर बस गया. दीसा में उनके पिता गुजराती मीडियम स्कूल चलाते थे. उसी स्कूल में शुरुआती पढ़ाई हुई. फिर बड़ौदा मेडिकल कॉलेज से MBBS करके गाइनकॉलजिस्ट बन गईं. नरोदा में अपना मटर्निटी क्लीनिक चलाने वाली माया पहले RSS की महिला विंग राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ गईं. फिर स्थानीय राजनीति में सक्रिय हुईं और अपने भाषणों की वजह से तेजी से लोकप्रिय हुईं. 1995 में BJP ने कोडनानी को अहमदाबाद नगर निगम के चुनाव में टिकट दिया. जीत गईं. उन्हें नगर निगम की हेल्थ कमिटी का डिप्टी चेयरपर्सन बनाया गया.
1998 में बीजेपी ने माया कोडनानी को नरोदा विधानसभा से टिकट दिया और यहीं से चुनाव जीतकर माया बेन कोडनानी पहली बार विधायक बनीं. 2002 में दंगे हुए और दंगों के बाद चुनाव भी. माया कोडनानी दोबारा विधायक बनीं. 2007 में तीसरी बार फिर से विधायक बनीं और इस बार मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में मंत्री भी. महिला एवं बाल विकास विभाग और उच्च शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी मिली. लेकिन 2009 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष टीम ने उन्हें गुजरात दंगों के मामले में गिरफ्तार किया. जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
नरोदा गाम और नरोदा पाटिया दंगों में नाम आने के बाद कोडनानी का पॉलिटिकल ग्राफ गिर गया. दोनों केस में कोडनानी पर मर्डर, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश, आगजनी करने जैसे आरोप थे. इन दो मामलों में फंसने के बाद एक्टिव पॉलिटिक्स से दूर होना पड़ा. हालांकि पिछले साल हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते देखा गया था.
बीजेपी नेताओं का मानना है कि वो दोबारा राजनीति में आती हैं तो उनके सामने कोई रुकावट नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए एक सीनियर बीजेपी नेता ने कहा,
"मुझे नहीं लगता कि वो अब चुनाव लड़ेंगी. लेकिन अगर वो चुनाव लड़ने का फैसला करती हैं तो क्यों नहीं. उन्होंने दोनों केस में मुकदमे का सामना किया और कोर्ट ने उन्हें बरी किया है. वो पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच काफी सम्मानित और लोकप्रिय हैं."
28 फरवरी 2002 की सुबह अहमदाबाद के नरोदा गांव में भीड़ ने कई घरों को आग के हवाले कर दिया था, जिसमें मुस्लिम समुदाय के 11 लोगों की मौत हुई थी. माया कोडनानी नरोदा की विधायक थीं. उन पर आरोप लगा कि उन्होंने हजारों लोगों की भीड़ को नरोदा गाम में हिंसा के लिए उकसाया.
साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित SIT ने चार्जशीट फाइल की थी. माया कोडनानी के अलावा बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी, विश्व हिंदू परिषद (VHP) के नेता जयदीप पटेल और नरोदा पुलिस थाने के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर वी एस गोहिल समेत 86 लोगों को आरोपी बनाया गया था.
अगस्त 2018 में SIT ने स्पेशल कोर्ट को बताया कि कोडनानी घटनास्थल पर करीब 10 मिनट के लिए मौजूद थीं. और 'भीड़ को उकसाने' के बाद वहां से चली गईं. SIT ने ये भी कहा था कि कोडनानी के बचाव में दिया गया अमित शाह का बयान भरोसा करने लायक नहीं है. अमित शाह ने कोर्ट में कहा था कि उन्होंने 28 फरवरी को सुबह 8 बजकर 40 मिनट पर माया कोडनानी को गुजरात विधानसभा में देखा था.
एक और केस, नरोदा पाटिया नरसंहार में 97 लोग मारे गए थे. इस मामले में, अगस्त 2012 में स्पेशल कोर्ट ने माया कोडनानी को मुख्य आरोपी बताते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. 20 अप्रैल 2018 को गुजरात हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोडनानी को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली. उन्हें कोर्ट ने निर्दोष बताया और संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.
हाई कोर्ट ने था कहा कि पुलिस ने कोई ऐसा गवाह पेश नहीं किया जिसने माया कोडनानी को कार से बाहर निकलकर भीड़ को उकसाते देखा हो. जिन 11 लोगों ने बयान दिए, उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता.
माया कोडनानी के खिलाफ यही दो केस थे. जिनमें अब वो बरी हो चुकी हैं.
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