गुवाहाटी हाई कोर्ट (Gauhati High Court) ने सोमवार, 2 सितंबर को एक नोटिस जारी किया है. नोटिस एक जनहित याचिका के बाद जारी किया गया है. जो ट्रैफिक पुलिस द्वारा जारी एक ई-चालान के मामले में दायर की गई थी.
क्या ई चालान पर खुद सजा सुना सकती है ट्रैफिक पुलिस? अब हाई कोर्ट इसका फैसला करेगी
हमारे देश में एक न्याय व्यवस्था है. जिसमें अगर कोई आरोपी हो, तो उस पर बाकायदा मुकदमा चलाया जाता है. अदालत में उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है. लेकिन हाल ही में Gauhati High court में एक PIL दाखिल की गई है. जिसमें e-challan के नियमों को असंवैधानिक बताया गया है.

सामाचार एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, गाड़ी मालिक को ये ई-चालान मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और मोटर वाहन नियमों का उल्लंघन करने के लिए जारी किया गया था.
किसने दाखिल की याचिकाइस ई-चालान मामले में एक PIL दाखिल की गई. जो गुवाहाटी हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील बेनु धार दास ने दाखिल की है. PIL में मोटर अधिनियम के इन नियमों को असंवैधानिक और निष्पक्ष सुनवाई के खिलाफ बताया गया. मामले को चीफ जस्टिस विजय बिशनोई और जस्टिस सुमन श्याम की डिविजन बेंच सुन रही थी.
रिपोर्ट के मुताबिक ई-चालान याचिका में याची ने चालान व्यवस्था पर सवाल उठाए. कहा कि इस मामले में पुलिस ही आरोप लगाती है और खुद ही फैसला देती है. जो कि संविधान के मूलों के खिलाफ है, साथ ही न्याय व्यवस्था के मूल्यों पर भी खरा नहीं उतरता.
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PIL में आगे कहा गया कि कानून यह तो तय किया जा चुका है कि कोई भी एक ही केस में जज और वकील दोनों नहीं हो सकता है. आगे जोड़ा कि गाड़ी मालिक को पुलिस के सामने साबित करना पड़ता है कि वह निर्दोष है.
मामले को सुनने के बाद कोर्ट ने मामले से जुड़े राज्य के अधिकारियों को एक नोटिस जारी किया. साथ ही सुनवाई के लिए 24 सितंबर की तारीख तय की गई है.
खैर इससे इतर एक और मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक टिप्पणी की है. जो पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन से जुड़ी है.
अमर उजाला की खबर के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ एक पारिवारिक विवाद मामले की सुनवाई कर रही थी. बताया जा रहा है, फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पत्नी अपने पति को अपने कमरे में रहने से मना करती है. और उसे अगर कमरे में रहने में मजबूर करती है. तो यह पति को वैवाहिक अधिकारों से वंचित करता है. और एक तरह से क्रूरता है.
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