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इस अफ़्रीकी देश में फ्रांस के झंडे क्यों जलाए जा रहे हैं?

क्या तख्तापलट के बाद नाइजर पर हमला भी हो सकता है?

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नाइजर मिलिटरी के सपोर्ट में निकले लोग

भारत से लगभग साढ़े सात हज़ार किलोमीटर की दूरी पर एक देश बसता है, नाइजर. वहां तख्तापलट हुआ है. सेना ने 26 जुलाई को राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ूम को हिरासत में लिया और फिर टीवी पर आकर तख्तापलट का ऐलान कर दिया. अमेरिका, फ्रांस ब्रिटेन समेत दूसरे मुमालिकों ने इसपर चिंता जताई है. इसलिए भी, क्योंकि नाइजर अफ्रीका में वेस्टर्न कंट्रीज़ का एक अहम साथी रहा है. वेस्टर्न कंट्रीज़ से इतर अफ्रीका के एक बड़े संगठन ECOWAS ने भी ताख्तापल्ट की मज़म्मत की है. कहा है कि अगर एक हफ्ते में सेना ने सत्ता नहीं छोड़ी, तो उसके खिलाफ सैनिक कार्रवाई की जाएगी. माने साफ-साफ धमकी दी है.  

ECOWAS का फुल-फॉर्म ‘इकनॉमिक कम्युनिटी ऑफ़ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स’ है. आइए जानते हैं ये संगठन क्या है, कैसे काम करता है और उसने तख्तापलट के 4 दिन बाद नाइजर को जो धमकी दी है, उसके क्या मायने हैं. 

सबसे पहले इकोवास की ही बात कर लेते हैं

इकोवास वेस्ट अफ्रीका के 15 देशों का एक समूह है. ये समूह अफ्रीकी देशों की राजनैतिक और आर्थिक उन्नति के लिए बनाया गया था. इसमें बुर्किना फासो, माली, नाइजर, घाना, गिनी और नाइजीरिया जैसे देश शामिल हैं. साल 2019 में इकोवास के आकार का आकलन किया गया तो पता चला इसके तहत 38 करोड़ से भी ज़्यादा की आबादी रहती है. इसका हेडक्वाटर नाइजीरिया की राजधानी अबुजा में मौजूद है. 

उद्देश्य क्या है समूह का?

एक बड़ा व्यापारिक ब्लॉक बनाना और सभी सदस्य देशों को ‘आर्थिक तौर पर आज़ाद’ करवाने की कोशिश में सहयोग देना.

कब स्थापना हुई थी समूह की?

28 मई, 1975 को अफ्रीका के 14 देशों ने संधि पर दस्तखत किए और समूह की नींव रखी. 2 साल बाद, 1977 में केप वर्डे ने अलग से समूह की सदस्यता ली थी. 

समूह के पास कौन-कौन से अधिकार हैं?

- समूह के पास एक पीसकीपिंग फ़ोर्स भी है. अगर किसी देश में राजनैतिक संकट पैदा होता है तो वो अपनी सेना भेजकर वहां शांति बहाल कर सकती है.

- अगर ज़रूरत पड़े तो समूह किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा सकता है. 

ये तो हुआ समूह का त'आरुफ़. अब आते हैं वर्तमान पर.

नाइजर में तख्तापलट के बाद इकोवास ने अपने हेडक्वाटर पर आपातकालीन मीटिंग बुलाई. अल जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक मीटिंग में नाइजर में सेना भेजने को लेकर भी चर्चा हुई. इस चर्चा की गूंज नाइजर भी पहुंची है, और वहां के मिलटरी लीडर्स परेशान हैं. इसके पहले साल 2017 में इस फ़ोर्स का इस्तेमाल किया गया था. जनवरी 2017 में गाम्बिया में तख्तापलट के बाद यहां सेना भेजी गई थी.

अब इकोवास इस सेना का इस्तेमाल कैसे करेगा? कब करेगा? इसकी कोई पुख्ता जानकारी निकलकर नहीं आई है. नाइजर में और क्या हो रहा है? अब वो भी जान लेते हैं-

- नाइजरिया के राष्ट्रपति बोला टीनुबू ने कहा है कि इलाके में लोकतंत्र की रक्षा के लिए सब कुछ किया जाएगा.

- ताख्तापलट के बाद फ्रांस और यूरोपियन यूनियन ने नाइजर को दी जाने वाली आर्थिक सहायता खत्म कर दी है. नाइजर एक वक्त फ्रांस की कॉलोनी था.  

- हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर थे. उनमें से कईयों ने फ्रांस के दूतावास पर हमला भी किया है. इसके साथ फ्रांस के झंडे झ्लाए गए हैं.

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