अहमदाबाद में हुए भयानक विमान हादसे ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है (Ahmedabad Plane Crash). टेकऑफ करते वक्त प्लेन सीधे एक इमारत में जा घुसा. 265 लोगों की जान चली गई. इस हादसे के पीछे की वजह क्या है? इस पर अब तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं आई है. लेकिन एक सवाल जो सबके जेहन में इस वक्त घूम रहा है वो ये कि ज्यादातर प्लेन हादसे लैंडिंग और टेकऑफ के वक्त ही क्यों होते हैं?
लैंडिंग और टेकऑफ के वक्त ही क्यों होते हैं ज्यादातर प्लेन हादसे?
Ahmedabad Plane Crash के पीछे की वजह क्या है? इस पर अब तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं आई है. लेकिन एक सवाल जो सबके जेहन में इस वक्त घूम रहा है वो ये कि ज्यादातर प्लेन हादसे Landing और Takeoff के वक्त ही क्यों होते हैं? अलग-अलग स्टडी में क्या पता चला है?
_(1).webp?width=360)
इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 से 2023 तक हुए सभी प्लेन हादसों में से आधे से ज्यादा (53%) लैंडिंग के वक्त हुए. टेकऑफ के दौरान होने वाले हादसे दूसरे नंबर पर हैं. हालांकि, ये कुल हादसों का केवल 8.5% ही हैं.

बोइंग की वेबसाइट पर जो डेटा उपलब्ध है, उसके मुताबिक 2015 से 2024 तक जो कॉमर्शियल जेट हादसे हुए. उनमें टेकऑफ फेज में 20% हादसे हुए. वहीं इस दौरान लैंडिंग फेज में 47% हादसे हुए. इस तरह देखा जाए तो सबसे सुरक्षित क्रूज फेज होता है, जिसमें केवल 10% हादसे ही हुए हैं.

ये भी पढ़ें: हवाई जहाज में ये सीट है सबसे सुरक्षित, फ्लाइट से यात्रा करने जा रहे हैं तो ये जानना बहुत जरूरी है.
टेकऑफ और लैंडिंग सबसे घातक क्यों हैं?
ऊपर दिखाए गए दोनों डेटासेट से एक बात तो स्पष्ट है. वो है ये कि प्लेन के उड़ान की शुरुआत और आखिर में हादसा होने का सबसे ज्यादा जोखिम होता है. लेकिन क्यों? इसका सबसे बुनियादी जवाब यह है कि इन चरणों के दौरान पायलट के पास स्थिति से निपटने के लिए बहुत कम समय होता है. आसान शब्दों में कहें तो इन दोनों चरणों में प्लेन कम ऊंचाई पर होता है, इसलिए पायलट के पास दुर्घटना की स्थिति से बचने के लिए बहुत कम वक्त होता है.
बिजनेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के मुताबिक,
जब 36,000 फीट की ऊंचाई पर प्लेन उड़ान भरता है, यानी जब वो क्रूज फेज में होता है तो पायलट के पास सही रास्ता तय करने के लिए पर्याप्त समय और स्थान होता है. अगर दोनों इंजन बंद भी हो जाएं, तो भी प्लेन अचानक आसमान से नीचे नहीं गिरेगा. यह एक ग्लाइडर बन जाता है. इस स्थिति में पायलट के पास प्लेन उतारने के लिए लगभग आठ मिनट तक का समय होता है. वहीं, अगर लैंडिंग या टेकऑफ के दौरान ऐसा होता है तो पायलट के पास समय काफी कम होता है.
दूसरी तरफ, पायलट लैंडिंग के दौरान सबसे ज्यादा तनाव में होता है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह उड़ान का सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू है. जिसमें पायलट को हवा की स्पीड और दिशा से लेकर, प्लेन कितना भारी है, ये भी ध्यान में रखना पड़ता है. साथ ही उसे स्पीड के बारे में लगातार निर्णय लेने पड़ते हैं. माना जाता है कि ज्यादातर प्लेन हादसे, खासकर लैंडिंग फेज के दौरान, पायलट की गलती के चलते होते हैं. वहीं, जब प्लेन कम ऊंचाई पर होते हैं तो इनके पक्षियों से टकराने और खराब मौसम का सामना करने की आशंका भी ज्यादा होती है.
वीडियो: मणिपुर की एयर होस्टेस की जिन्होंने अहमदाबाद प्लेन क्रैश में जान गंवा दी