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बाइकिंग क्वीन्स, बाइक से दुनिया घूम आईं चार लड़कियां प्रधानमंत्री से मिलीं

गुजरात में रहने वाली डॉ सारिका ने एक ग्रुप बनाया था. ये ग्रुप दुनिया को मेसेज दे रहा है, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ.

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'हम लोग एक दिन में 9 घंटे बाइक चलाते थे. रास्ते पहाड़ी थे, घने जंगल थे और खतरनाक ब्रिज थे. वहां बाइक चलाना बहुत मुश्किल होता था. अक्सर हम रात में भी गाड़ी चलाते थे. क्योंकि उस वक़्त ट्रैफिक कम होता था. लेकिन खतरा कई गुना बढ़ भी जाता था. खाने की भी बहुत प्रॉब्लम होती थी क्योंकि हममें से ज़्यादातर लोग वेजीटेरियन ही हैं.'
चार लड़कियां. बाइकिंग क्वीन्स. डॉ. सारिका मेहता, युग्मा देसाई, ख्याति देसाई और दुर्रिया टापिया. 10 देशों की जर्नी. 10,000 किलोमीटर. एक ख़ास मेसेज. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ.  ऑफ़ सूरत.  22 जनवरी 2015 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' स्कीम की शुरुआत की. सूरत में रहने वाली डॉ. सारिका मेहता को लगा कि उनको भी लड़कियों और औरतों को इंडिपेंडेंट बनाने के लिए कुछ करना चाहिए. सारिका एक साइकोलॉजिस्ट हैं. जो कई सारे NGOs के साथ काम करती रही हैं.
अब ये चारों अपनी जर्नी पूरी करके अपने देश इंडिया आ गई हैं. 19 जुलाई को उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. और अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अपने एक्सपीरियंस शेयर किए. चारों प्रधानमंत्री नरेंद मोदी से मिलीं. इस बाइक जर्नी के लिए इन चारों का नाम एशिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में शामिल हो गया है.  उसके अलावा गिनीज़ बुक में भी उनका नाम शामिल हुआ. जब 500 लोग 10 मिनट तक उनको टाटा करते रहे.
'म्यांमार, सिंगापुर और थाईलैंड के बॉर्डर क्रॉस करने में भी प्रॉब्लम आई. क्योंकि वहां की पॉलिसी बदल गई थी. लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी. और फाइनली हमने अपनी जर्नी पूरी कर ली.'
2015 में सारिका ने एक ग्रुप बनाया. बाइकिंग क्वीन्स. एक साल से भी कम समय में इस ग्रुप से 45 औरतें जुड़ गईं. हर उम्र की. हर फॅमिली बैकग्राउंड की. सारिका कहती हैं कि जो भी औरतें सेल्ड डिपेंडेंट होना चाहती हैं. बाइक चलाना चाहती हैं. या फिर बाइक चलाना सीखना चाहती हैं. वो इस ग्रुप को जॉइन कर सकती हैं. ये ग्रुप समाज में जेंडर इक्वॉलिटी लाने के लिए हर तरह के भेदभाव के खिलाफ लड़ता रहा है.

Photo credit: Biking queens Facebook Page
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'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ'
सरकार की एक स्कीम है. देश में लड़कियों की संख्या हर साल कम होती जा रही है. देश में बहुत जगह अभी भी लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मार डाला जाता है. 2011 के सेंसस के हिसाब से हर 1000 लड़के की तुलना में केवल 918 ही लड़कियां हैं. सेक्स रेशियो हर साल गड़बड़ाता जा रहा है. इसलिए सरकार ने लड़कियों की हेल्थ और उनकी पढ़ाई को प्रमोट करना बहुत ज़रूरी है. ये इस स्कीम का हिस्सा है.
Image Credit: Facebook Page, Biking Queens
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जून 2016 की 5 तारीख थी. बाइकिंग क्वीन्स ने तय किया. वो लोग लड़कियों की पढ़ाई और स्वास्थ की तरफ दुनियाभर के लोगों को जागरूक करेंगी.  बस, वो चारों बाइकिंग क्वीन्स एक बहुत लम्बी जर्नी पर निकल पड़ीं. 40 दिनों की जर्नी. इंडिया में मुंबई से चल पड़ीं नेपाल. 6 जून 2016 को काठमांडू से अपनी जर्नी शुरू की. फिर भूटान, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया होते हुए 15 जुलाई को ये जर्नी सिंगापुर में ख़त्म हुई. 
जिस दिन ये 10,000 किलोमीटर लम्बी जर्नी शुरू होने वाली थी. इन चार लड़कियों को विदा करने करीब 15,000 बाइकर्स आये थे. गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल भी आई थीं. उन्होंने भी इन लड़कियों को जर्नी और उनके मिशन के लिए शुभकामनाएं दीं.
सारिका ने कहा कि इंडिया में आज भी कई जगहों पर लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मार डाला जाता है. लड़कियों के साथ भेदभाव सिर्फ इंडिया में ही नहीं है. ये एक ग्लोबल समस्या है. इसलिए वो और उनकी ग्रुप मेंबर्स अपनी जर्नी के दौरान बहुत लोगों से मिलीं. स्कूल, कॉलेज और NGOs में गईं. लोगों से बातचीत की. उसकी बातें सुनी, समझीं.
भूटान के प्रधानमंत्री के साथ बाइकिंग क्वीन्स
भूटान के प्रधानमंत्री के साथ बाइकिंग क्वीन्स
20 जनवरी को इनको अपने शहर सूरत लौटना है. सूरत में अभी से इनके वेलकम की तैयारियां चल रही हैं.