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पीपल का पेड़ रात में ऑक्सीजन नहीं छोड़ता, मगर उतना ही अच्छा दूसरा काम कर देता है

हिंट: अंग्रेजी की एक कहावत है,'एक रुपया बचाने का मतलब, एक रुपया कमाना है.'

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फोटो - thelallantop
स्कंद शुक्ल
22 सितम्बर, 1979 को राजापुर, बांदा में जन्मे स्कंद शुक्ल वर्तमान में लखनऊ में गठिया-रोग-विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं. वृत्ति से चिकित्सक होने के कारण लोक-कष्ट और उसके निवारण से उनका सहज ही एक जुड़ाव है. इसके साथ ही साहित्य के प्रति उनका आरंभ से ही गहन अनुराग रहा है. अनेक कविताएं-कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं और साथ ही दो उपन्यास ‘परमारथ के कारने’ और ‘अधूरी औरत’ भी. सामाजिक मीडिया पर भी अनेकानेक वैज्ञानिक-स्वास्थ्य-समाज-सम्बन्धी लेखों-जानकारियों के माध्यम से सक्रिय हैं. उन्हें shuklaskand@yahoo.co.in
 पर ई-मेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है. तो आइए उनसे पीपल से जुड़े एक 'मिथ' के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं. जानकारी डायलॉग  यानी बातचीत के फॉर्मेट में है.



‘पीपल के पेड़ के विषय में यह भ्रामक बात कैसे फैल गयी कि वह रात में ऑक्सीजन छोड़ता है?’
‘इसका कारण ऑक्सीजन और पीपल, दोनों को ढंग से न समझना है.’
‘कैसे समझा जाए?’
‘पेड़-पौधे जानवरों की ही तरह सांस चौबीस घंटे लेते हैं. इस क्रिया में वे ऑक्सीजन वायुमण्डल से लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं. लेकिन वे सूर्य के प्रकाश में एक और महत्त्वपूर्ण क्रिया करते हैं, जिसे प्रकाश-संश्लेषण कहा जाता है.
इस क्रिया में वे अपना ग्लूकोज़ स्वयं बनाते हैं वायुमण्डल की कार्बन डाई ऑक्साइड और जल-वाष्प को लेकर. इस काम में उनका हरा रंजक (क्लोरोफ़िल) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सूर्य का प्रकाश भी. इसी प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज़ के साथ ऑक्सीजन बनती है, जिसे वायुमंडल में वापस छोड़ दिया जाता है.’
‘यानी अगर पौधा या पेड़ हरा न हो और प्रकाश न हो, तो प्रकाश-संश्लेषण होगा नहीं.’
‘बिलकुल नहीं.’
‘तो ग्लूकोज़ और ऑक्सीजन बनेंगे नहीं.’
‘नहीं. ज़ाहिर है रात में जब प्रकाश न के बराबर रहता है, तो यह काम प्रचुरता से होने से रहा. पीपल और उस जैसे कई अन्य पेड़-पौधे कुछ और काम करते हैं, जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाए.’
‘क्या?’
PEEPAL LEAVES
‘पीपल का पेड़ शुष्क वातावरण में पनपता है और इसके लिए उसकी देह में पर्याप्त तैयारियां हैं. पेड़-पौधों की सतह पर स्टोमेटा नामक नन्हे छिद्र होते हैं जिनसे गैसों और जल-वाष्प का लेन-देन होता है. सूखे गर्म माहौल में पेड़ का पानी न निचुड़ जाए, इसलिए पीपल दिन में अपेक्षाकृत अपने स्टोमेटा बन्द करके रखता है.’
‘इससे दिन में पानी की कमी से वह लड़ पाता है.’
‘बिलकुल. लेकिन इसका नुकसान यह है कि फिर दिन में प्रकाश-संश्लेषण के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड उसकी पत्तियों में कैसे प्रवेश करे? स्टोमेटा तो बन्द हैं. तो फिर प्रकाश-संश्लेषण कैसे हो? ग्लूकोज़ कैसे बने?’
‘तो?’
‘तो पीपल व उसके जैसे कई पेड़-पौधे रात को अपने स्टोमेटा खोलते हैं और हवा से कार्बन-डायऑक्साइड बटोरते हैं. उससे मैलेट नामक एक रसायन बनाकर रख लेते हैं. ताकि फिर आगे दिन में जब सूरज चमके और प्रकाश मिले, तो प्रकाश-संश्लेषण में सीधे वायुमण्डलीय कार्बन डाई ऑक्साइड की जगह इस मैलेट का प्रयोग कर सकें.’
‘यानी पीपल का पेड़ रात को भी कार्बन डाई ऑक्साइड-शोषक है.’
‘बिलकुल है. और वह अकेला नहीं है. कई हैं उस जैसे. ज़्यादातर रेगिस्तानी पौधे यही करते हैं...
...अरीका पाम, नीम, स्नेक प्लांट, ऑर्किड, तुलसी और कई अन्य. रात को कार्बनडायऑक्साइड लेकर उसे मैलेट बनाकर आगे प्रकाश-संश्लेषण के लिए इस्तेमाल करने की यह प्रक्रिया CAM मार्ग (क्रासुलेसियन पाथवे) के नाम से पादप-विज्ञान में जानी जाती है.’
 
‘तो पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ता, वह वायुमण्डल से कार्बन डाई ऑक्साइड बटोरता है ताकि दिन में अपनी जल-हानि से बच सके.’
‘यही.’


 

और जो हिंट दिया था उसे इस अंतिम हरे रंग से लिखी लाइन से साथ जोड़कर देखिएगा.

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