अमेरिका की जेल में 43 साल तक उम्रकैद की सजा काट चुके भारतीय मूल के सुब्रमण्यम 'सुबू' वेदम की कहानी सुनकर आप सोचेंगे 'ये फिल्म है या हकीकत?' लेकिन जनाब, ये एकदम असली कहानी है. एक ऐसी कहानी जो इंसाफ की जीत के बाद भी अधूरी लगती है.
43 साल की जेल के बाद बेकसूर साबित, रिहा होते ही अमेरिका ने भारतीय मूल के शख्स के साथ बहुत बुरा किया
64 साल के सुब्रमण्यम 'सुबू' वेदम सिर्फ 9 महीने की उम्र में India से America आए थे. 1980 की एक ऐसी हत्या के मामले में उन्हें उम्रकैद हुई, जो उन्होंने की ही नहीं थी. रिहा होने के बाद उनके लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है.


वेदम को ऐसे जुर्म के लिए चार दशक जेल में गुजारने पड़े, जो उन्होंने किया ही नहीं था. अब जब आजाद हुए तो नई मुसीबत सामने आ गई है. वेदम को 3 अक्टूबर, 2025 को पेंसिल्वेनिया के हंटिंगडन स्टेट करेक्शनल इंस्टीट्यूशन (जेल) से रिहा किया गया था.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अमेरिकी कोर्ट ने 43 साल जेल में गुजारने के बाद उनकी सजा पलट दी. लेकिन जैसे ही वे रिहा हुए, उन्हें तुरंत यूएस इमिग्रेशन और कस्टम एनफोर्समेंट (ICE) ने हिरासत में ले लिया. उन्हें भारत डिपोर्ट किया जाना है. वही ‘डिपोर्ट’, जिसका अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की डिपोर्टेशन पॉलिसी के तहत जमकर इस्तेमाल किया गया. लेकिन वेदम को डिपोर्ट क्यों किया जा रहा है? चलिए पूरी कहानी समझते हैं.
क्या है मामला?
64 साल के सुब्रमण्यम 'सुबू' वेदम सिर्फ 9 महीने की उम्र में भारत से अमेरिका आए थे. 1980 में पेंसिल्वेनिया में 19 साल के थॉमस किन्सर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उनका शव स्टेट कॉलेज के पास एक सिंकहोल में मिला था. इस मर्डर केस में पुलिस ने उनके पूर्व हाईस्कूल क्लासमेट वेदम पर शक जताया, क्योंकि वे आखिरी बार किन्सर के साथ देखे गए थे.
हालांकि, वेदम ने हमेशा कहा कि वे बेगुनाह हैं. लेकिन इस मामले में उन्हें फिर भी दो बार (1983 और 1988 में) बिना पैरोल के उम्रकैद की सजा सुनाई गई. वेदम को दो बार समझौते करने का ऑफर मिला. माने, अगर गुनाह कबूल कर लेते तो सजा कम हो जाती. लेकिन उनका मकसद इस केस से पाक-साफ होकर निकलना था.
इंसाफ मिला, लेकिन देर से
अगस्त 2025 में सेंटर काउंटी के एक जज ने उनके दोषी ठहराए जाने का मामला पलट दिया. कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अभियोजकों ने बचाव पक्ष के वकीलों से फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (FBI) की रिपोर्ट गैरकानूनी तरीके से छिपाई थी.
अदालती दस्तावेजों से पता चलता है कि रिपोर्ट में किन्सर की खोपड़ी में गोली के छेद का आकार विस्तार से बताया गया था. यह एक ऐसा सबूत था जिससे अभियोजन पक्ष के इस दावे पर शक हो सकता था कि हत्य में .25 कैलिबर की बंदूक का इस्तेमाल किया गया था.
जज जोनाथन ग्राइन ने लिखा,
"अगर ये सबूत पहले मिल जाता, तो इस बात की पूरी संभावना है कि जूरी का फैसला कुछ और होता."
इसके बाद सेंटर काउंटी के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी बर्नी कैंटोर्ना ने बहुत वक्त गुजरने, गवाहों के ना बचने और वेदम के पहले ही 43 साल जेल में काटने का हवाला देकर सभी आरोपों को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया.
लेकिन कहानी में आया नया ट्विस्ट
जेल से रिहा होते ही बाहर ICE वाले खड़े थे. ICE ने बताया कि वेदम के खिलाफ 'लीगेसी डिपोर्टेशन ऑर्डर' है. ये 1980 का डिपोर्टेशन ऑर्डर है. अब सोचिए, 43 साल जेल में रहने के बाद, एक बेगुनाह आदमी को अब देश निकाला दिया जा रहा है, उस देश में जहां से वो सिर्फ 9 महीने की उम्र में आया था.
ICE ने एक बयान में कहा,
"इमिग्रेशन और नेशनलटी एक्ट के अनुसार, जिन व्यक्तियों ने आव्रजन राहत के सभी रास्ते बंद कर लिए हैं और जिनके पास स्थायी निष्कासन आदेश हैं, उन्हें प्रवर्तन के लिए तरजीह दी जानी चाहिए."
एजेंसी ने वेदम को 'एक पेशेवर अपराधी बताया है जिसका आपराधिक रिकॉर्ड 1980 से है'. ICE ने कहा कि वेदम एक दोषी ड्रग तस्कर हैं. उन पर LSD जैसे ड्रग्स बेचने का पुराना केस है.
लेकिन वेदम की वकील आवा बेनाच ने कहा कि ड्रग्स वाला केस जब वेदम टीनेजर थे, तब हुआ था. उन्होंने सवाल किया कि जो कत्ल उन्होंने किया नहीं, उसके लिए 43 साल जेल में रहने के बाद, अब कौन सा इंसाफ बचा है? बेनाच ने आगे कहा कि वेदम को एक ऐसे देश में भेजना बेहद गलत है, जहां उनके बहुत काम जानकार हैं.
वेदम के जेल के सफर की बात करें, तो उन्होंने जेल में लिटरेसी प्रोग्राम चलाए. उन्होंने जेल में खुद तीन डिग्रियां लीं. मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) किया, वो भी 4.0 GPA यानी टॉप क्लास नंबरों से. वेदम ने जेल में ही कैदियों को पढ़ाना शुरू किया, कई को डिप्लोमा दिलवाया. ये सब 150 साल की जेल की हिस्ट्री में पहली बार हुआ कि किसी ने जेल में रहते हुए ग्रेजुएट डिग्री ली.
वेदम के परिवार का दर्द
वेदम पर भारत डिपोर्ट होने की तलवार लटकी है. उनकी बहन सरस्वती वेदम ने कहा कि उनके भाई का जेल में बिताया जीवन कड़वाहट से नहीं, बल्कि मकसद से भरा था. उन्होंने मीडिया को बताया,
“मुश्किलों के आगे झुकने और अपनी किस्मत पर शोक मनाने के बजाय, उन्होंने अपनी गलत कैद को दूसरों की सेवा का जरिया बना लिया.”
उनकी भांजी जो मिलर वेदम ने उन्हें 'एक बेहद दयालु इंसान' बताया. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें भारत भेजना बहुत गलत होगा. जो ने कहा,
"उन्होंने 9 महीने की उम्र में भारत छोड़ दिया था. हममें से कोई भी 9 महीने की उम्र में अपनी जिंदगी को याद नहीं कर सकता. वे 44 साल से ज्यादा समय से वहां नहीं गए हैं, और जिन लोगों को वे बचपन में जानते थे, वे अब नहीं रहे. उनका पूरा परिवार- उनकी बहन, उनकी भांजियां, उनकी नातिनें- हम सभी अमेरिकी नागरिक हैं, और हम सब यहीं रहते हैं."
वेदम की मां हर हफ्ते उनसे मिलने जेल आती थीं, 34 साल तक. लेकिन 2016 में चल बसीं. उनके पिता डॉ. के वेदम एक फिजिक्स प्रोफेसर थे, जिनका सितंबर, 2009 में निधन हो गया था. वेदम के परिवार के लिए यह लड़ाई मानवता की गुहार बन गई है. वेदम की भांजी जो मिलर वेदम ने कहा,
"43 साल तक गलत दोषी साबित होने के कारण उनकी जिंदगी छीन लेने के बाद, उन्हें दुनिया के दूसरे छोर पर, एक ऐसी जगह, जिन्हें वे जानते ही नहीं, उन सभी से दूर भेज देना जो उनसे प्यार करते हैं, उस अन्याय को और बढ़ा देगा."
वेदम की लीगल टीम ने अब एक याचिका दाखिल की है. उनका तर्क है कि इमिग्रेशन कानून विवेकाधिकार की इजाजत देता है, खासकर दोषी ठहराने की उम्र और उनके पुनर्वास के रिकॉर्ड को देखते हुए.
बेनाच ने कहा कि अगर वेदम हत्या के केस में गलत दोषी ना ठहराए गए होते, तो दशकों पहले डिपोर्ट की कार्यवाही में अपना बचाव करने में कामयाब हो सकते थे. उन्होंने कहा कि तब वेदम एक परमानेंट रेजिडेंस के रूप में अपनी स्थिति बनाए रख सकते थे.
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