दिमागी बुखार से पीड़ित एक बच्चा.
60 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई, तब जाकर गोरखपुर का ज़िक्र देश-भर के मीडिया में 'योगी आदित्यनाथ का गृह ज़िला' से हटकर हो पाया. जिस बौखलाहट में प्रशासन बयान जारी कर रहा है, मुख्यमंत्री बाइट दे रहे हैं, विपक्ष इस्तीफा मांग रहा है और खबरें लगाई जा रही हैं, उस से एक बार के लिए लगता है कि जैसे कोई बम था जो अचानक फट गया; इसलिए सब इतने असहाय हैं. लेकिन गोरखपुर और दिमागी बुखार का रिश्ता पुराना है. इलाके में इस बीमारी का प्रकोप 4 दशक से है. इस बीमारी का पहला केस गोरखपुर में 1978 में दर्ज किया गया था.
क्या है दिमागी बुखार? इस बीमारी का असल नाम एन्सेफेलाइटिस है. इसमें दिमाग में सूजन आ जाती है. ये बहुत तेज़ी से असर करती है और तुरंत इलाज न होने पर जान भी चली जाती है. गोरखपुर और पास के इलाकों में ज़्यादातर लोग इसकी दो किस्मों के शिकार होते हैं - एक्यूट एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम और जैपनीज़ इन्सेफेलाइटिस. इसीलिए इसे दिमागी बुखार के अलावा जापानी बुखार भी कह दिया जाता है.
कैसे होता है? दिमागी बुखार कई तरह से हो सकता है. कभी-कभी दिमाग का अपना इम्यून सिस्टम दिमाग के टिशू पर हमला कर देता है. इसके अलावा बैक्टीरिया और पैरासाइट के शरीर में जाने या किसी और बीमारी की वजह से भी दिमाग में सूजन आ सकती है. जैपनीज़ इन्सेफेलाइटिस एक तरह का वायरल इंफेक्शन है. डेंगू की ही तरह जैपनीज़ इन्सेफेलाइटिस वायरस मच्छरों के काटने से फैलता है. ये वायरस शरीर में घुसने पर सीधे दिमाग पर हमला करता है. आमतौर पर 15 साल तक के बच्चों को ये बीमारी होने की संभावना ज़्यादा रहती है. यूपी और बिहार में भी बच्चे ही इसके सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं, लेकिन पूर्वांचल में देखा गया है कि हर उम्र के लोगों को ये बीमारी हुई.
लक्षण क्या होते हैं? इस बीमारी के सबसे आम लक्षण बुखार और सिर में दर्द हैं. इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस बीमारी के हर 250 में से एक मामले में तबीयत एकदम से बिगड़ जाती है. तब बुखार तेज़ी से बढ़ता है, सिरदर्द के साथ जकड़न होने लगती है और मरीज़ को भ्रम होने लगता है. ऐसे मामलों में मरीज़ को दौरा पड़ सकता है और वो कोमा में जा सकता है. 30 फीसदी मामलों में मरीज़ की जान चली जाती है.
इलाज कैसे होता है दिमागी बुखार जिस भी वजह से हो, उसके लक्षण लगभग एक जैसे होते हैं. बीमारी होने पर उसका कारण पता करना थोड़ा मुश्किल होता है. इलाज के दौरान डॉक्टरों की प्राथमिकता ये पता करना होती है कि बीमारी वायरल इंफेक्शन से तो नहीं हुई है. वायरल इंफेक्शन का इलाज मौजूद नहीं है, इसलिए डॉक्टर लक्षणों का इलाज करते हैं. बुखार और दिमाग में सूजन से पैदा होने वाले दबाव को कम करने की कोशिश की जाती है. इस बीमारी के मरीज़ों को ऑक्सीजन की बहुत ज़रूरत होती है.
कैसे बचें? जापानी बुखार से बचने के लिए टीका मौजूद है. इस साल मई में उत्तर प्रदेश सरकार ने 38 ज़िलों में एक कैंपेन चलाया भी था. चूंकि वायरस मच्छर के काटने से फैलता है, तो इस बीमारी के प्रकोप वाले इलाकों में जाने पर पूरे कपड़े पहनकर रहना बेहतर होता है. अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में इस बीमारी का प्रकोप ज़्यादा रहता है. इन महीनों में बारिश से नमी बनी रहती है, जिसमें मच्छर खूब पनपते हैं इसलिए साफ-सफाई का खूब ध्यान रखें.
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