The Lallantop

स्किन कैंसर से 'बचाने' वाले 16 टॉप सनस्क्रीन ब्रांड टेस्ट में फेल, ऑस्ट्रेलिया में हंगामा मचा

ऑस्ट्रेलिया की कंज्यूमर राइट्स संस्था ‘चॉइस ऑस्ट्रेलिया’ ने 20 सनस्क्रीन ब्रांड्स के टेस्ट का रिजल्ट जारी किया. और नतीजों ने सबके होश उड़ा दिए. 20 में से 16 सनस्क्रीन अपने वादों पर खरी नहीं उतरे.

Advertisement
post-main-image
न्यूट्रोजेना, बनाना बोट, बॉन्डी सैंड्स और कैंसर काउंसिल के प्रोडक्ट्स भी SPF के अपने क्लेम पर फेल हुए. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Unsplash.com)

ऑस्ट्रेलिया. ये नाम सुनते ही दिमाग में कंगारू, कोआला, सिडनी का ओपेरा हाउस याद आता है. क्रिकेट के फैन होंगे तो 2003 वर्ल्ड कप से लेकर 2023 वर्ल्ड कप की बुरी याद भी दिमाग चकरा देगी. घुमक्कड़ होंगे तो इस देश की चटख धूप और नीला समंदर नॉस्टैल्जिया दे जाएगा. लेकिन ऑस्ट्रेलिया की एक और खासियत है, जो वहां के लोगों के लिए जिंदगी का हिस्सा है. सनस्क्रीन. जी हां, सनस्क्रीन. क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में सूरज बस रोमांटिक सूर्यास्त के लिए नहीं, बल्कि स्किन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का खतरा भी लाता है. और हाल ही में एक खुलासे ने ऑस्ट्रेलिया के लोगों को सकते में डाल दिया है. यहां के कई मशहूर सनस्क्रीन ब्रांड्स टेस्ट में फेल हो गए हैं. या कहें कि जो सनस्क्रीन आपको धूप से बचाने का वादा करती है, वो खुद ही ‘बर्न’ हो जा रही है. और आपकी स्किन को भी बर्न कर रही है. इसे यहां स्कैंडल भी कहा जा रहा है.

Add Lallantop as a Trusted Sourcegoogle-icon
Advertisement
‘स्लिप, स्लॉप, स्लैप’ (Slip, slop, slap) स्लोगन

ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले सूरज से प्यार भी करते हैं और डरते भी हैं. यहां सूरज की तपिश इतनी ज्यादा है कि स्किन कैंसर की दर दुनिया में सबसे ज्यादा यहीं की है. BBC की एक रिपोर्ट बताती है कि ऑस्ट्रेलिया में स्किन कैंसर के मामले इतने ज्यादा हैं कि ऐसा माना जाता है कि हर 3 में से 2 ऑस्ट्रेलियाई लोगों को अपने जीवन में कम से कम एक बार कैंसर ऑपरेशन करवाना पड़ सकता है.

यही वजह है कि 80 के दशक से ऑस्ट्रेलिया में एक कैंपेन चला. नाम दिया गया, ‘स्लिप, स्लॉप, स्लैप’. मतलब? स्लिप माने, कपड़े पहनो. स्लॉप का मतलब, सनस्क्रीन लगाओ. और स्लैप का मतलब, टोपी पहनो. इस कैंपेन में बाद में seek (shade) और slide भी जोड़ा गया. Seek का मतलब छांव देखो. और Slide का मतलब सनग्लास लगाओ.

Advertisement

ये कैंपेन इतना हिट हुआ कि ऑस्ट्रेलिया की संस्कृति का हिस्सा बन गया. स्कूलों में बच्चे ‘नो हैट, नो प्ले’ के नियम से बड़े होते हैं. यानी टोपी नहीं, तो खेलने की इजाजत नहीं. हर घर में सनस्क्रीन की ट्यूब दरवाजे पर खड़ी रहती, जैसे कोई चौकीदार. लेकिन अब ये चौकीदार ही सवालों के घेरे में है.

सनस्क्रीन का टेस्ट, रिजल्ट ने डराया

जून 2025 में, ऑस्ट्रेलिया की कंज्यूमर राइट्स संस्था ‘चॉइस ऑस्ट्रेलिया’ ने 20 सनस्क्रीन ब्रांड्स के टेस्ट का रिजल्ट जारी किया. टेस्ट ऑस्ट्रेलिया की एक स्वतंत्र लैब में हुआ. और नतीजों ने सबके होश उड़ा दिए. 20 में से 16 सनस्क्रीन अपने वादों पर खरी नहीं उतरे. यानी, जिस SPF (सन प्रोटेक्शन फैक्टर) का दावा ब्रांड्स करते थे, वो असल में उसे पूरा नहीं करते थे.

अब यहां, SPF को भी समझ लेते हैं? आसान भाषा में, ये बताता है कि सनस्क्रीन आपकी त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों (यानी, UV Rays) से कितनी देर तक बचा सकती है. मिसाल के तौर पर, SPF 50 का मतलब है कि आप सामान्य से 50 गुना ज्यादा देर तक धूप में रह सकते हैं. वो भी बिना जलन या नुकसान के. लेकिन टेस्ट में 16 सनस्क्रीन में से कुछ का SPF तो इतना कम था कि वो बस नाम के लिए सनस्क्रीन थीं.

Advertisement

सबसे बड़ा झटका थी Ultra Violette की Lean Screen SPF 50+ Mattifying Zinc Skinscreen. ये प्रोडक्ट टेस्ट में सिर्फ SPF 4 निकला. यानी, 50+ का दावा और असल में सिर्फ 4. चॉइस ऑस्ट्रेलिया को ये नतीजा इतना चौंकाने वाला लगा कि उन्होंने इसका टेस्ट दोबारा करवाया. लेकिन दूसरा रिजल्ट भी वैसा ही था. माने, जिस सनस्क्रीन पर लोग भरोसा करके अपनी त्वचा को सूरज की मार से बचाने की कोशिश कर रहे थे, वो तो उन्हें खुश-फहमी दे रही थी.

इसके अलावा, न्यूट्रोजेना, बनाना बोट, बॉन्डी सैंड्स और कैंसर काउंसिल के प्रोडक्ट्स भी SPF के अपने क्लेम पर फेल हुए. लेकिन इन सभी ब्रांड्स ने चॉइस की रिपोर्ट को खारिज कर दिया, और कहा कि उनके खुद के टेस्ट में पता चला है कि ये सनस्क्रीन वादे के मुताबिक काम करते हैं.

Image
अलग-अलग ब्रांड्स के दावे.
जब सनस्क्रीन ने दिया धोखा

इस खबर ने ऑस्ट्रेलिया में हंगामा मचा दिया है. इसका असर उन लोगों पर सबसे ज्यादा हुआ जो सनस्क्रीन को अपनी जिंदगी का हिस्सा मानते हैं. न्यूकैसल की रहने वाली कैच बताती हैं कि वो सनस्क्रीन के बिना घर से बाहर कदम नहीं रखतीं. बचपन से उन्हें सिखाया गया कि सूरज से बचना है. ‘स्लिप, स्लॉप, स्लैप’ उनके लिए बस नारा नहीं, जिंदगी का नियम था. वो दिन में कई बार सनस्क्रीन लगाती थीं, टोपी पहनती थीं, और धूप से बचने की पूरी कोशिश करती थीं. फिर भी, पिछले साल नवंबर में उनकी नाक पर स्किन कैंसर डिटेक्ट हुआ. ये सुन वो हैरान रह गईं.

रैच को बेसल सेल कार्सिनोमा (BCC) हुआ, जो स्किन कैंसर का एक कम खतरनाक प्रकार है. लेकिन फिर भी सर्जरी करवानी पड़ी. सर्जरी के बाद उनके चेहरे पर, आंख के ठीक नीचे एक निशान हो गया है. रैच को गुस्सा था, क्योंकि वो तो अल्ट्रा वायलेट की उस सनस्क्रीन का इस्तेमाल करती थीं, जो टेस्ट में सबसे ज्यादा फेल हुई थी. उन्होंने BBC से कहा,

“मैं हैरान थी. गुस्सा भी आया. मैंने तो हर वो सावधानी बरती, जो मुझे सिखाई गई थी. ये सब क्या मजाक है?”

कंपनियों का जवाब और जांच

जिन सनस्क्रीन ब्रांड्स को टेस्ट में फेल पाया गया, उनमें से कुछ का जवाब सामने आया. Ultra Violette ने कहा कि वो चॉइस के टेस्ट से सहमत नहीं हैं और उनके अपने टेस्ट में प्रोडक्ट SPF 50+ ही था. ब्रांड ने कहा कि उन्हें "विश्वास है कि लीन स्क्रीन सुरक्षित और प्रभावी है". कंपनी ने ये भी बताया कि Lean Screen यूनाइटेड किंगडम (UK) के साथ-साथ लगभग 30 देशों में बेची जाती है. 

BBC की रिपोर्ट के मुताबिक इस सूचना के लगभग दो महीने बाद कंपनी ने घोषणा की कि लीन स्क्रीन को वापस लिया जाएगा. सनस्क्रीन के 8 सेट अलग-अलग टेस्ट में फेल पाए गए थे. ब्रांड ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक बयान में कहा,

"हमें इस बात का गहरा खेद है कि हमारा एक प्रोडक्ट उन स्टैंडर्ड पर खरा नहीं उतरा जिन पर हमें गर्व है, और जिनकी आप हमसे अपेक्षा करते हैं."

कंपनी के एक प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया कि अल्ट्रा वायलेट ने अपने सभी प्रोडक्ट्स का फिर से टेस्ट किया है. कंपनी ने इनके SPF रेटिंग की पुष्टि की है. एक बयान में कहा गया,

"16 ब्रांड्स में हम पहले थे जिसने चॉइस के टेस्ट के बाद न केवल सेल पर रोक लगाई, बल्कि प्रोडक्ट्स को पूरी तरह से वापस ले लिया. हमने सुरक्षा को प्राथमिकता और कस्टमर्स को रिफंड और वाउचर भी दिए."

लेकिन ये सारे जवाब लोगों को संतुष्ट करने के लिए काफी नहीं हैं. ऑस्ट्रेलिया की दवा नियामक संस्था, TGA (Therapeutic Goods Administration) ने अब इस मामले की जांच शुरू कर दी है. उसने साफ कर दिया है कि वो नियमों के अनुसार कार्रवाई करेगा.

उधर, चॉइस ने TGA से सनस्क्रीन मार्केट में आगे की जांच करने का आग्रह किया है. चॉइस की डायरेक्टर कैंपेन रोजी थॉमस ने बीबीसी को एक बयान में कहा,

“ये स्पष्ट है कि ऑस्ट्रेलिया की सनस्क्रीन इंडस्ट्री में एक गंभीर समस्या है, जिसका तत्काल समाधान किया जाना आवश्यक है.”

इस खबर का असर सिर्फ ऑस्ट्रेलिया तक सीमित नहीं है. इससे दुनिया भर में सनस्क्रीन के नियमों पर सवाल उठ सकते हैं. खासकर उन देशों में, जहां ऑस्ट्रेलियाई ब्रांड्स की सनस्क्रीन बिकती हैं. भारत जैसे देश, जहां धूप तेज होती है और स्किन कैंसर का खतरा भी बढ़ रहा है, वहां भी लोग अब सनस्क्रीन के लेबल को दोबारा चेक करने पर मजबूर होंगे.

तो अब सवाल ये है कि सूरज से बचने के लिए क्या करें? एक्सपर्ट्स का कहना है कि सनस्क्रीन अकेले काफी नहीं होती है. आपको कपड़े, कैप, और छांव का सहारा लेना होगा. साथ ही, सनस्क्रीन चुनते वक्त उन ब्रांड्स पर भरोसा करें जिनका टेस्टिंग रिकॉर्ड अच्छा हो. और हां, लेबल पर लिखे SPF को आंख मूंदकर सच न मानें. अगर मुमकिन हो, तो थोड़ा रिसर्च कर लें.

वीडियो: सेहत: गर्मी में टैनिंग से बचने के लिए इस्तेमाल हो रही सनस्क्रीन सूट नहीं कर रही?

Advertisement