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नोटबंदी ने इस गांव को कैशलैस बना दिया, मगर ये खबर बिल्कुल अच्छी नहीं है

'सरकारें गरीबों का इस्तेमाल करती हैं और अमीरों के लिए काम.' जानिए कैसे.

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पहली आधार कार्ड महिला रंजना. source- aadhaar.news
नोटबंदी पर काफी बहस सुन चुके हो. कतारों में लोगों की मौत भी हुई. उसके फायदे भी उंगलियों पर गिने होंगे. ये रिपोर्ट उस औरत की है जिसे सबसे पहले आधार कार्ड दिया गया. महाराष्ट्र की रंजना सोनावने. आज वो पूरी तरह कैश लैस हैं. इसलिए नहीं कि पीएम मोदी ने नोटबंदी की और उन्होंने डिजिटल पेमेंट को अपना लिया. नहीं, नहीं ऐसा नहीं है. वो तो कैशलैस इसलिए हो गई हैं क्योंकि नोटबंदी से काम धंधे चौपट हो गए. एक तो पहले ही 500 और हजार के नोट नहीं थे. अब 50- और 100 रुपये भी जुटाने मुश्किल हो गए हैं.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए रंजना कहती हैं, 'जीना मुश्किल हो गया है. सरकारें गरीब लोगों को सिर्फ राजनीति में इस्तेमाल करती हैं और असल में काम अमीरों के लिए करती हैं.'
रंजना दिहाड़ी मजदूर हैं. गांव के मेले में खिलौने बेचकर पेट खर्च निकाल रही हैं. कहीं काम मिलना उनके लिए मुश्किल हो रहा है. किसान कहते हैं उन्हें बैंकों से कैश नहीं मिल रहा और उन्हें काम नहीं दे सकते. रंजना ने कहा, 'मैं सारंगखेड़ा जाकर खिलौनों की दुकान लगाना चाहती थी, लेकिन नहीं जा पाई. जाती भी कैसे? मेरे पास जाने के लिए पैसे ही नहीं हैं.'
8 नवंबर को नोटबंदी का ऐलान हुआ. उससे काला धन आया या नहीं, ये तो अभी तक कुछ नहीं पता. लेकिन रंजना का गांव उस कंडीशन में पहुंच गया है, जहां के लोगों की हालात बदतर हो गई है. कैश के नाम पर वहां किसी के पास कुछ नहीं है. उनके बैंक अकाउंट खाली पड़े हैं और रोजी-रोटी छिन गई है.
महाराष्ट्र में रंजना का गांव तेंभली पुणे से करीब 47 किलोमीटर की दूरी पर दूरदराज इलाके में है. नोटबंदी के फैसले पर उनके चेहरे पर एक थकान भरी मुस्कान आती है और खो जाती है. कहती हैं, 'हम तो पहले ही कैशलेस हैं.' नोटबंदी के बाद गांव में कोई नोट जमा करने के लिए लाइनों में नहीं लगा. क्योंकि उनके पास पहले से ही 500 या हजार के नोट नहीं हैं, जिन्हें बदला जाए या फिर जमा किया जाए. ज्यादातर लेनदेन कैश में होता है. और हां वो भी 50 या 100 के नोटों में.' गैस सब्सिडी गरीबों तक पहुंचाने के दावे भी आपने सुने होंगे. होर्डिंग लगे देखे होंगे. रैलियों में सुना होगा. पीएम कह रहे हैं हमने उन मांओ तक सब्सिडी बचाकर गैस पहुंचा दी, जिनकी धुएं से आंखें ख़राब हो रही थीं. मगर अफसोस रंजना उस फेहरिस्त में शामिल नहीं हैं. रंजना पहली आधार कार्डधारी होने के बावजूद वो महिला हैं, जो चूल्हे में लकड़ियां जला रही हैं और आंखें धुएं से अट जा रही हैं. उनके घर में न तो रसोई गैस है. न बिजली. और तो और, नोटबंदी ने काम छीन लिया है. बस वो एक तस्वीर हैं कि 'देश की पहली आधार कार्ड महिला.' ये सरकारी योजनाओं को आईना दिखाने वाली तस्वीर है. जो उनकी इस बात में वजन पैदा करती है कि सरकारें गरीबों का इस्तेमाल करती हैं और काम अमीरों के.
साल 2010 में जब यूपीए सरकार ने उन्हें आधार कार्ड थमाया था उस वक्त को याद करते हुए बताया, 'मुझे और गांव के कई लोगों को आधार कार्ड थमाया. फोटो खिंचवाए. और फिर चले गए. उसके बाद कोई नहीं आया. मेरा बिजली का मीटर निकाल लिया गया ओर आधार कार्ड से लिंक किया गया अकाउंट खाली पड़ा है. अब तक उसमें सब्सिडी का एक रुपया नहीं आया. पहले की सरकार ने हमें ये बिना काम का आधार कार्ड थमाया और मौजूदा सरकार ने नोटबंदी कर हमसे हमारी रोजी-रोटी छीन ली.'
रंजना बड़े ही दुखभरे लहजे में कहती हैं कि पहली सरकार ने हमें पहला आधार गांव घोषित किया. अब मौजूदा सरकार टेंभली को पहला कैशलैस गांव घोषित कर सकती है. रंजना के घर में एक एक फोटो फ्रेम टंगा है जिसमें आज भी तस्वीर लगी है जब 2010 में उन्हें आधार कार्ड दिया गया था. इस तस्वीर में प्रोजेक्ट को लांच करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य नेता हैं.
 

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