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मां-बाप से दूर रखने के लिए पति को पत्नी बोलती थी 'पालतू चूहा', कोर्ट ने कहा- 'ये मानसिक क्रूरता'

पति का आरोप था कि पत्नी ने उस पर अपने माता-पिता को छोड़ने का दबाव बनाया और उसे “पालतू चूहा” कहकर अपमानित किया.

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यह फैसला छत्तीसगढ़ कोर्ट ने सुनाया. (सांकेतिक तस्वीर- आजतक)

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले पर कहा है कि पत्नी का ‘पति पर माता-पिता को छोड़ने का दबाव डालना और ताना कसना मानसिक क्रूरता’ है. हाई कोर्ट ने मामले में निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और पति की तलाक की मांग को वाजिब माना. पति का आरोप था कि पत्नी ने उस पर अपने माता-पिता को छोड़ने का दबाव बनाया और उसे 'पालतू चूहा' कहकर अपमानित किया. अदालत ने इसे पति पर मानसिक क्रूरता करार देते हुए तलाक की मंजूरी दे दी. पत्नी ने पारिवारिक अदालत के 23 अगस्त 2019 के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी.

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मामले से जुड़े दंपती की शादी 2009 में हुई थी और 2010 में उनका एक बेटा हुआ. पति ने अदालत में कहा कि पत्नी बार-बार उसे अपने माता-पिता के खिलाफ भड़काती थी और चाहती थी कि वह अपने माता-पिता से अलग होकर रहे. इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पति ने कोर्ट में कहा कि जब उन्होंने घर छोड़ने से इनकार किया तो पत्नी ने गुस्से में उस पर शारीरिक हमला भी किया. पति ने यह भी कहा कि पत्नी अक्सर उसे गालियां देती थी और उसे ‘पालतू चूहा’ कहती थी क्योंकि वह अपने माता-पिता की बात मानता था.

पति ने दावा किया कि 24 अगस्त 2010 को पत्नी तीज के त्योहार के लिए अपने मायके चली गई और फिर कभी वापस नहीं लौटी. उसने यह भी कहा कि बेटे के जन्म और उससे जुड़े किसी भी समारोह की जानकारी उसे नहीं दी गई और न ही उसे बुलाया गया.

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वहीं, पत्नी ने इन सभी आरोपों को नकार दिया. उसका कहना था कि ससुराल वालों ने उन्हें कभी परिवार का हिस्सा नहीं माना. उसने आरोप लगाया कि पति उसे भावनात्मक तौर पर नज़रअंदाज़ करता था और आर्थिक मदद नहीं करता था. पत्नी ने आरोप लगाया पति गाली-गलौज करता था और अक्सर शराब पीकर आता था. महिला ने कहा कि उसने पति के साथ वैवाहिक संबंध फिर से बनाने की कोशिश की, लेकिन पति ने साफ इनकार कर दिया और तलाक लेने की जिद पर अड़ा रहा.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद, जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की बेंच ने पारिवारिक अदालत का फैसला सही ठहराया और पत्नी की अपील खारिज कर दी. अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह छह महीने के भीतर पत्नी को पांच लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता दे. इसके अलावा, उसे हर महीने पत्नी को 1,000 रुपये और बेटे के लिए 6,000 रुपये भरण-पोषण के रूप में देने होंगे.

वीडियो: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में कॉल रिकॉर्डिंग मांगने पर क्या फैसला सुनाया है?

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