हर मर्द, हर औरत देखे कल्कि का ये वायरल वीडियो
कल्कि ने अपनी कविता 'द प्रिंटिंग मशीन' में कही है एक सच्चाई. एक खौफ. जिसके हम सब हिस्सेदार हैं.
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फोटो - thelallantop
इस वीडियो को देखिए. एक बार नहीं. बार बार. ईयरफोन लगाकर. स्पीकर तेजकर. अकेले. दोस्तों के साथ. तब तक. जब तक इसकी एक एक आवाज, एक एक शब्द, एक एक भाव रोएं रोएं से भीतर न पैठ जाए. ये कल्कि कोएचलिन हैं. ये उनकी लिखी कविता है. या कि एक सच्चाई. एक खौफ. जिसके हम सब जो पढ़ रहे हैं, हिस्सेदार हैं. कविता का शीर्षक है द प्रिटिंग मशीन. जो आवाज करती है- चर टक टक टाका डाका टक च्री. और फिर क्या होता है. एक चमकदार अखबार निकलता है. आयरन किया हुआ. या फिर एक ग्लॉसी शीट वाली मैगजीन. और क्या होता है इस दुनिया में. जिससे हमारी दुनिया की सुबह शुरू होती है. खबरें. अपनी पॉलिटिक्स के साथ आतीं. कि मासिक धर्म है गर औरतों को तो धर्म के घर मंदिर में नहीं जा सकती हैं वे. कि एक और बच्ची का गैंगरेप हो गया. ये आवाज जो याद दिलाती है. सिंड्रेला की स्टोरीज में खोई लड़कियों. अब घर जाओ. रात के 10 बज चुके हैं. राजकुमार नहीं राक्षस घूम रहे हैं. ये मशीन, जो गिनवाती है सर. बाजार भाव की तरह. और तय करती है. इतने सर में बदला और इतने में तो युद्ध ही होगा. इनमें कुछ खांचे भी होते हैं. औरतों की बोली लगाते. मगर बात बदलकर. कहीं टेलिफोन ऑपरेटर की जरूरत है तो कहीं सच्ची दोस्ती या मसाज के लिए लड़कियों की. और जो इनसे ऊपर हैं. जो ये अखबार पढ़ रहे हैं. उनके लिए क्या हैं. सॉफ्ट बेबी पिंक पसंद करवाया जाता है जिन्हें, वो लड़कियां. फेयर एंड लवली की तलबगार लड़कियां. उनके लिए बड़े बड़े हर्फों में सेल के ऐड छपे हैं. उन्हें सजना है. खुद को बनाकर रखना है. इन सबके इर्द गिर्द है भंवर. ट्वीट. स्टेटस अपडेट, व्हाट्सएप चैट से बना. स्माइली और चुम्मी वाले गोलुओं से लटपट. और फिर प्यार होता है. शादी भी. पर ये जरूरी नहीं. कि दोनों एक ही मुकाम पर पहुंचें. और औरत के लिए ऑप्शन भी कितने हैं. वो लड़ नहीं सकती. ब्रा और पैंटी में. उसे बिकिनी पहना दो. लुभाने दो. तभी बच पाएगी वो. वर्ना डार्विन की थ्योरी का क्या काम. जो फिटेस्ट के सरवाइवल की बात करती है. और आखिर में है खौफ के पार एक बात. जो आंख में भोथरे चाकू सी धंसती है. धीमे धीमे. कि इस महान मुल्क की महानता पर चौड़े रहने वालों. ये विरासत मासूमों की दया के लिए कदमों पर गिरेगी एक दिन. वीडियो अपनी संपूर्णता में भी एक असर पैदा करता है. शब्द हैं. बीच में आवाजें हैं. बदलती तस्वीरें हैं. अखबार की कतरने हैं. अंधेरा है. चीख है. जो कहीं पीछे से गूंजती आती रहती है. ये वीडियो कल्कि के ब्लश प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है. इसमें औरत होने का गर्व बताया जाता है. बिना किसी माफी और अगर मगर के. द प्रिंटिंग मशीन
https://www.youtube.com/watch?v=JF0_dGYeSEk&sns=tw इससे पहले इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में भी कल्कि ने ऐसी ही एक झकझोरने वाली परफॉर्मेंस दी थी अपनी कविता के जरिए
https://www.youtube.com/watch?v=dkaWQMo6fU4
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