‘मैं अपने प्रधानमंत्री को विश्व प्रसिद्ध कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड जीतने की बधाई देता हूं. यह इतना प्रसिद्ध है कि इसमें कोई जूरी नहीं है और पहले कभी किसी को नहीं दिया गया. इसको अलीगढ़ की कंपनी का समर्थन है, जिसका नाम पहले कभी नहीं सुना गया है. इवेंट पार्टनर हैं पतंजलि और रिपब्लिक टीवी.'

राहुल गांधी के इस ट्वीट के बाद हंगामा हो गया. सोशल मीडिया पर लोग मजे लेने लगे. अवार्ड पर सवाल उठे तो खुद फिलिप कोटलर सामने आए. उन्होंने ट्वीटर पर अवार्ड की पुष्टि की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी.


लेकिन असली विवाद तब हुआ जब इसमें स्मृति ईरानी भी आ गईं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुखिया का परिवार दूसरों से पुरस्कार पाने की बजाय खुद को ही देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देता रहा. फिर स्मृति ईरानी के आरोपों को दुहराने वालों की बाढ़ सी आ गई.

कोटलर के ट्वीट के बाद इस बात की तो पुष्टि हो गई है कि पीएम को मिला अवार्ड सही है. लेकिन सवाल है कि क्या वाकई प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने खुद को भारत रत्न दे दिया. सवाल इसलिए कि सोशल मीडिया पर बार-बार इस बात का जिक्र होता है कि पंडित नेहरू ने भारत रत्न के लिए खुद को नॉमिनेट किया था और 1955 में उन्हें ये अवार्ड मिल भी गया.


और इसका जवाब है नहीं. Facthunt.in में 18 नवंबर, 2018 को एक खबर छपी है. इसमें एक आरटीआई के हवाले से बताया गया है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने भारत रत्न के लिए खुद का नाम आगे नहीं बढ़ाया था. आरटीआई लगाने वाले थे अशोक, जिन्होंने अपनी आरटीआई का विस्तार से जिक्र किया है. अशोक ने 23 नवंबर, 2013 को राष्ट्रपति सेक्रेटरिएट में आरटीआई लगाई. उन्होंने पूछा था कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम भारत रत्न के लिए किसने प्रस्तावित किया था. आरटीआई के जवाब में सामने आया कि सरकार के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि भारत रत्न के लिए नेहरू का नाम किसने प्रस्तावित किया था.
तो फिर नेहरू को कैसे मिल गया भारत रत्न?

1955 की गर्मियों के दिन थे. प्रधानमंत्री नेहरू सोवियत संघ गए हुए थे. उनकी ये ट्रिप करीब एक महीने की थी, जो भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की अब तक की सबसे लंबी ट्रिप है. जब पंडित नेहरू इस ट्रिप से लौटे, तो भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 15 जुलाई 1955 को राष्ट्रपति भवन में एक कार्यक्रम आयोजित किया. ये कार्यक्रम प्रधानमंत्री की विदेश दौरे की कामयाबी के लिए था. अलाइड पब्लिशर्स लिमिटेड से छपी और वाल्मीकि चौधरी की संपादित 'डॉ राजेंद्र प्रसाद: करेसपोंडेंस एंड सेलेक्टेड डॉक्यूमेंट्स' के 17वें वॉल्यूम में पेज नंबर 456 पर इस कार्यक्रम के बारे में लिखा है कि राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा-
''मैं एक बार ऐसा कर रहा हूं. मुझे असंवैधानिक कहा जा सकता है, क्योकिं मैं बिना किसी की सिफारिश के या फिर बिना अपने प्रधानमंत्री की सलाह के खुद से ही प्रधानमंत्री नेहरू का नाम भारत रत्न के लिए प्रस्तावित करता हूं. लेकिन मैं जानता हूं कि इसे लोग बेहद उत्साह के साथ स्वीकार करेंगे.''

राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि वो बिना किसी की सिफारिश के प्रधानमंत्री नेहरू को भारत रत्न देने का प्रस्ताव रख रहे हैं.
उस वक्त के अखबारों ने भी लिखा है कि राष्ट्रपति ने माना था कि बिना किसी सिफारिश के, बिना प्रधानमंत्री या कैबिनेट की सलाह के उन्होंने सम्मान देने का फैसला किया है, जो असंवैधानिक है. अब इसका सीधा सा मतलब ये है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने खुद को भारत रत्न नहीं दिया था. ये फैसला अकेले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का था और इसके बारे में वो खुद मान चुके थे कि इसे असंवैधानिक कहा जा सकता है.
2 जनवरी, 1954 को नोटिफाई हुआ था भारत रत्न

2 जनवरी, 1954 को प्रकाशित गजट, जिसमें भारत रत्न की घोषणा हुई थी.
भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. कला, साहित्य, विज्ञान, खेल और सामाजिक कार्यों के लिए दिया जाता है. भारत रत्न का नोटिफिकेशन 2 जनवरी, 1954 को जारी हुआ था. इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया था. उस वक्त तक ये अवार्ड सिर्फ जिंदा लोगों को ही दिए जाने का प्रस्ताव था. 15 जनवरी, 1955 को एक नए गजट में पुरस्कार को मरणोपरांत भी दिए जाने की बात कही गई. आम तौर इस अवार्ड के लिए प्रधानमंत्री नाम का चयन करते हैं और उसे राष्ट्रपति को भेज देते हैं. एक साल में प्रधानमंत्री अधिकतम तीन लोगों का नाम राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं. ये एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन 2 जनवरी, 1954 या फिर 15 जनवरी, 1955 के गजट में इसका उल्लेख नहीं है. 10 जनवरी, 1996 को आउटलुक में छपी एक खबर के मुताबिक 1996 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने भारत रत्न को लेकर कुछ सुझाव दिए. इस पीठ में उस वक्त के चीफ जस्टिस एएम अहमदी, जस्टिस कुलदीप सिंह, जस्टिस बीपी जीवन, जस्टिस एनपी सिंह और जस्टिस सगीर एस अहमद शामिल थे. पीठ ने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई जाए, तो भारत रत्न के लिए नाम प्रस्तावित करे. इस कमिटी में प्रधानमंत्री के साथ ही लोकसभा का अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या चीफ जस्टिस का कोई प्रतिनिधि शामिल रहे.

सुप्रीम कोर्ट के छह जजों की बेंच ने भारत रत्न की चयन समिति को लेकर कुछ सुझाव दिए थे.
इसके अलावा बेंच में शामिल जस्टिस कुलदीप सिंह ने अलग से छह पन्नों का जजमेंट लिखा. इसमें उन्होंने लिखा था कि अवार्ड की सेलेक्शन प्रक्रिया साफ नहीं है और यह अथॉरिटी की मर्जी पर निर्भर करता है कि अवार्ड किसे मिलेगा. उन्होंने लिखा था कि पहले ये अवार्ड चुनिंदा काम के लिए दिए जाते थे, लेकिन बाद के दिनं में छोटे-मोटे योगदान के लिए भी लोगों को ये अवार्ड दिया गया है. उन्होंने लिखा था कि उद्योगपति और बिजनेसमैन जिनके पास अथाह पैसा है, लेकिन उन्होंने कोई सामाजिक काम नहीं किया है, उन्हें भी अवार्ड दे दिया गया है.