द क्विंट के मुताबिक सुसाइड नोट कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) ने पब्लिक किया है. सुसाइड नोट में कोर्ट से जुड़े चार बड़े लोगों को रिश्वत दिए जाने का आरोप है. इसके अलावा पार्टियों के नामों के साथ सीनियर नेताओं के नाम भी नोट में हैं, जिन्हें पुल ने रिश्वत के पैसे दिए थे.
द क्विंट के मुताबिक पुल के सुसाइड नोट में लिखा है, 'XX, XXX, XXXX, XXXXX (चार जज के नाम) ने 36 करोड़ रुपये की घूस लेकर गलत फैसला दिया था. जिसे उन्होंने अपने बेटे के जरिए समझौता किया. जबकि वो फैसला गलत था. गुवाहाटी हाईकोर्ट ने YY (सीनियर मंत्री का नाम) के खिलाफ की गई सुनवाई में YY को दोषी ठहराते हुए सीबीआई की जांच के आदेश दिए थे. लेकिन उसी केस में YYY, YYYY, YYYYY (तीन और नाम) ने 28 करोड़ रुपये की घूस देकर स्टे लिया और आज भी खुलेआम घूम रहे हैं.'सुसाइड नोट में लिखा है, 'सरकार को जज के फैसले पर भी निगरानी रखनी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए कोई कानून बनाना चाहिए ताकि इस कानून की मदद से न्यायालय में भ्रष्टाचार को रोका जा सके. अरुणाचल राज्य में हुए पीडीएस घोटाले केस को राज्य सरकार ने गलत बताया, एफसीआई ने गलत बताया और केंद्र सरकार ने भी गलत बताया फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को खुला छोड़कर उनका पूरा पेमेंट करने का आदेश दिया, जिससे राज्य का विकास कोष खाली हो गया.'
कलिखो की पत्नी दांगविम्साई पुल ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस की. और चीफ जस्टिस से अपील करते हुए कहा कि सुसाइड नोट में लगाए गए आरोपों के आधार पर एफआइआर दर्ज होनी चाहिए. साथ ही केस की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए, क्योंकि करप्शन के आरोप जज पर हैं.दांगविम्साई ने आरोप लगाया कि उनके परिवार को अरुणाचल प्रदेश सरकार से धमकियां मिल रही हैं, उन्हें ये प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने की सलाह दी गई थी.
दांगविम्साई का कहना है, 'जब से सुसाइड नोट मीडिया में आया है, मुझे, मेरे बच्चों और रिश्तेदारों को अलग अलग हलकों से धमकियां मिल रही हैं.'
कौन थे कलिखो पुल?
1. 47 साल के कलिखो पुल ने बीते 6 महीने में बहुत राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे. कोर्ट ने जब उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था तो उन्होंने मीडिया से कहा था कि मैंने अभी तय नहीं किया है कि अब आगे क्या करूंगा.2. बताते हैं कि बीते कुछ समय से वह किसी से मिल-जुल नहीं रहे थे. उनके परिवार में भी कोई अभी कुछ बताने की स्थिति में नहीं है. आशंका यही है कि वह डिप्रेशन में थे और उन्होंने खुदकुशी कर ली.
3. ये कहानी कलिखो पुल की महत्वाकांक्षा से ही शुरू हुई थी. अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी. मुख्यमंत्री थे नबाम तुकी. लेकिन कांग्रेस में ही उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी कलिखो पुल चाहते थे कि तुकी की जगह उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाए. उनकी अगुवाई में 12 विधायकों (इनमें दो निर्दलीय) ने अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी.
4. इसके बाद 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. फिर पर्दे के पीछे राजनीतिक दांव-पेच चले. थ्योरी यही है कि कलिखो पुल ने पर्दे के पीछे बीजेपी से मेलजोल के बाद ही बगावत का रिस्क लिया था. एक महीने तक राज्य में राजनीतिक अस्थिरता रही. फिर नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया कि अरुणाचल से राष्ट्रपति शासन हटा दिया जाए.

अप्रैल 2016 में मुख्यमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी से मिलते हुए कलिखो पुल
5. इसके बाद बीजेपी के 11 विधायक भी कलिखो पुल के साथ आ गए. 15 फरवरी को कलिखो पुल अपने समर्थक विधायकों के साथ राज्यपाल से मिले. राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा की वैसे भी मुख्यमंत्री नबाम तुकी से नहीं बनती थी. केंद्र सरकार को वो नबाम तुकी के खिलाफ कई चिट्ठियां लिख चुके थे.
6. 19 फरवरी को कलिखो पुल को राज्यपाल राजखोवा ने कलिखो पुल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई. वह प्रदेश के नौवें मुख्यमंत्री बने.
7. लेकिन इसी 13 जुलाई को बीजेपी और कलिखो पुल को बड़ा झटका लगा. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सरकार को असंवैधानिक माना और नबाम तुकी की सरकार बहाल करने का आदेश दे दिया. कलिखो पुल के साथ के कई विधायक वापस कांग्रेस में चले गए.
8. इस फैसले को कांग्रेस ने लोकतंत्र की जीत बताया. कपिल सिब्बल ने कहा, ‘राज्यपाल को परमानेंट छुट्टी पर चले जाना चाहिए. साथ ही बीजेपी के जो नेता इस निर्णय में शामिल थे, उन्हें भी इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.’ सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तीन दिन पहले से गवर्नर राजखोवा छुट्टी पर रहे. तब त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय को अरुणाचल का एडिशनल चार्ज दिया गया.
9. कलिखो पुल 2003 से 2007 तक अरुणाचल की गेगांग अपांग सरकार में वित्त मंत्री रहे थे. हयुलियांग से वो पहली बार 1995 में विधायक चुने गए थे.
10. 6 साल की उम्र में कलिखो पुल अनाथ हो गए थे. 13 महीने के थे, जब मां की मौत हो गई और 5 साल बाद पिता का भी देहांत हो गया. इसके बाद एक संघर्षपूर्ण जीवन जीते हुए वह कारपेंटर बने. फिर चौकीदारी करने लगे. और फिर अरुणाचल के आठवें मुख्यमंत्री बने. उनके नाम का अर्थ होता है ‘एक बेहतर कल.’ जहां से उनकी जिंदगी शुरू हुई थी, वह अपने नाम को सार्थक करते रहे. सिवाय इस दर्दनाक अंत के.
