1958 से 1965 के बीच ऑस्ट्रेलिया की टीम में एक खिलाड़ी खेला करता था. नॉर्म ओ नील. 1959 के आखिरी हिस्से में ऑस्ट्रेलिया की टीम पाकिस्तान में खेलने के लिए आई. लाहौर में टेस्ट मैच हुआ. ओ नील ने 134 रन की शानदार इनिंग्स खेली. उस इनिंग्स ने ऑस्ट्रेलिया को मैच जिताया और साथ ही कराची के एक परिवार को खूब इम्प्रेस किया. 4 साल बाद उस परिवार में एक लड़का पैदा हुआ. बाप के मन में आज भी ओ नील की वो इनिंग्स मौजूद थी. लड़के का नाम रखा गया अनिल. ओ नील से मिलता-जुलता. अनिल दलपत. मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान के लिए खेलने वाला पहला हिन्दू क्रिकेटर. अनिल के पिता दलपत सोनावारिया क्रिकेट के शौकीन थे और कराची में एक क्रिकेट क्लब चलाते थे - पाकिस्तान हिंदूज़. अनिल के क्रिकेटर बनने का वो एक बहुत बड़ा कारण थे. साल 1983. अनिल दलपत पाकिस्तान डोमेस्टिक क्रिकेट में एक ठीक-ठाक नाम बन गया था. एक अच्छा विकेट कीपर और बढ़िया बल्लेबाज. ये वो समय था जब वसीम बारी चुकने लगे थे. अनिल दलपत ने 1983-84 सीज़न में 67 बल्लेबाजों को आउट किया. ये अपने आप में एक रिकॉर्ड बन गया. ठीक इसी वक़्त वसीम बारी ने संन्यास लिया और पाकिस्तान की टीम में आना हुआ अनिल दलपत का. इस डेब्यू ने वो किया जो अब तक पाकिस्तान क्रिकेट के इतिहास में नहीं हुआ था. अनिल पाकिस्तान की ओर से खेलने वाले पहले हिन्दू क्रिकेटर बने. 2 मार्च 1984. अनिल दलपत कराची के मैदान में सफ़ेद कपड़ों पर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के लोगो और पाकिस्तानी झंडे के साथ मैदान पर उतरे. सारी दुनिया उन्हें देख रही थी. कराची का मैदान यानी उनका अपना घर. अपनी होम क्राउड के सामने वो अपने जीवन का पहला टेस्ट मैच खेलने जा रहे थे. उनके सामने थी इंग्लैंड की टीम और अब्दुल क़ादिर की भयानक घूमती गेंदें. अब्दुल क़ादिर की गेंदों के सामने इंग्लैंड की हालत खराब थी. उन्हें गेंद समझने में दिक्कत आ रही थी. गेंद पड़ने के बाद क्या करने वाली थी इसका उन्हें कोई आइडिया नहीं था. लेकिन जो बात देखने वाली थी वो ये थी कि विकेट के पीछे क़ादिर को पहली बार कीप करने वाले अनिल दलपत को कोई समस्या नहीं हो रही थी. वो बड़े मज़े से कीपिंग कर रहे थे. पाकिस्तान जब बैटिंग करने उतरा तो दलपत ने खूंटा गाड़ दिया. एक एंड कर कर पकड़े रहे. दूसरे पर सलीम मलिक ने 74 रन मार दिए. पाकिस्तान के पास 95 रन की लीड थी. अनिल दलपत के पास जश्न मनाने का असली मौका आया इंगलैं की दूसरी इनिंग्स में जहां उन्होंने ऐलेन लैम्ब को क़ादिर की ही गेंद पर विकेट के पीछे कैच किया. लैम्ब और डेविड गॉवर मिलकर ठीक पार्टनरशिप बनाने की राह पर थे कि अनिल और क़ादिर ने मिलकर पार्टनरशिप तोड़ी. पाकिस्तान की दूसरी इनिंग्स एक बुरे सपने की तरह थी. वो 40 पर 6 विकेट खो चुके थे. अगर 66 रन के टार्गेट को वो न चेज़ कर पाते तो ये बेहद शर्मनाक बात होती. अनिल ने इस चेज़ में 16 रन बनाये. जीतने वाले रन अनिल के ही बल्ले से आये. इसके बावजूद, अनिल को अगले दो मैचों के लिए और भी नीचे बैटिंग करने भेजा गया.

दलपत के सामने अब न्यूज़ीलैंड सीरीज़ थी. इसमें उन्होंने तीसरे और आखिरी मैच में 52 रन बनाये. हालांकि इसके अलावा सीरीज़ में उनके स्कोर काफी कम थे. कई मैचों में तो उनकी बैटिंग की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी मगर जब पड़ती थी, रन्स ज़्यादा नहीं बनते थे. अगले साल वन-डे मैचों में 21 और 37 रन बनाये. लेकिन ये दोनों स्कोर इनके एकमात्र दहाई में जाने वाले स्कोर बन कर रह गए. इसके अलावा खेले 13 मैचों में वो एक भी बार 10 या उससे ज़्यादा रन नहीं बना पाए. टेस्ट और वन-डे, दोनों ही टीमों से उन्हें बाहर कर दिया गया. इसके बाद अनिल दलपत कभी भी पाकिस्तान की जर्सी पहन कर मैदान में नहीं उतर पाए.
सालों बाद 2002 में अनिल दलपत ने एक बम फोड़ा. 2002 में मोरक्को में एक क्रिकेट सीरीज़ खेली जानी थी. इस सीरीज़ से होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा कुछ लोगों को सहायतार्थ भेजा जाना था. अनिल का नाम भी उस लिस्ट में था. अनिल ने उस मदद को लेने से मना कर दिया और कहा "इमरान खान की वजह से मुझे इतना कम क्रिकेट खेलने को मिला. पाकिस्तान क्रिकेट की अंदरूनी सियासत ने मुझे बलि का बकरा बना दिया. अगर मुझे ठीक मौका दिया गया होता तो मैं और खेलता." हालांकि उनके समय में उनके ही स्टैट्स उनका साथ नहीं दे रहे थे. वो मॉडर्न होते क्रिकेट में नए कीपर्स के सामने रेस में पीछे होते जा रहे थे. और यही वजह थी कि उन्हें टीम में दोबारा जगह नहीं मिली.
अनिल दलपत के परिवार में ही क्रिकेट बसा हुआ था. दलपत के चचेरे भाई भारत कुमार और महेंद्र कुमार फर्स्ट क्लास लेवल पर क्रिकेट खेलते थे. पाकिस्तान के लेगस्पिनर और दूसरे हिन्दू क्रिकेटर
दानिश कनेरिया भी अनिल दलपत के चचेरे भाई थे. दानिश ने भी अपना करियर लगभग ख़त्म हो जाने के बाद उनके हिन्दू होने की वजह से उनके ख़िलाफ़ हो रही हरकतों के बारे में बात कही थी. दानिश ने तो हिन्दुस्तानी सरकार से मदद की गुहार भी लगाई थी.
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