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मथुरा का 'मुजरिम', जिसके गुरु कानपुर में चप्पलियाए गए थे

मथुरा में जब गोलीबारी हुई तो गैंग का सरगना रामवृक्ष भी मारा गया. कोई उसकी लाश लेने नहीं आया. पढ़ो उसकी पूरी जनम कुंडली.

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रामवृक्ष यादव, जो जय गुरुदेव को अपना गुरु मानता था. पुलिस की गोली से मथुरा में मारा गया.
"गौहत्या करने वालों को फांसी हो" "गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करो" "जीवों पर दया करो. शाकाहारी बनो" ''जय गुरुदेव'' गांव-शहर के रास्तों, ट्रेन से गुजरते वक्त दीवारों पर ये लाइनें लिखी देखी होंगी. दिल्ली-NCR में भी दिख जाएंगी. ये लाइनें मथुरा से चली हैं. इन्हें लिखने वाला संगठन वही है जो गुरुवार को मथुरा में पुलिस वालों से भिड़ गया और शहर के दो बड़े अफसरों की जान ले ली. संगठन का नाम है, ‘आजाद भारत विधिक वैचारिक सत्याग्रही.’ इन्होंने मथुरा के जवाहर पार्क में 270 एकड़ जमीन पर 2014 से कब्जा कर रखा था. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस टीम कब्जा छुड़ाने गई थी, उन पर तमंचे, देसी बम, तलवारों और पत्थरों से हमला किया गया. SP मुकुल द्विवेदी और एक थाने के SHO संतोष कुमार की मौत हो गई. पुलिस ने 22 उपद्रवियों के मरने का दावा किया है.

अजीब मांगों का 'असत्याग्रह'

उपद्रवियों के इस संगठन का इतिहास बड़ा ही बुरा रहा है. इनकी भारत सरकार से अजीबोगरीब मांगे रही हैं, मसलन: 1: राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का पद खत्म किया जाए 2: पेट्रोल का रेट एक रुपए प्रति 60 लीटर किया जाए 3: डीजल का रेट एक रुपए में 40 लीटर किया जाए 4: भारतीय करेंसी यानी रुपया पैसा बंद करके आजाद हिंद फौज करेंसी शुरू की जाए. 5: गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए. 6.  हमको सेनानी का दर्जा मिले क्योंकि हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनुयायी हैं. हमको पेंशन मिले और जवाहरबाग में हमारे लिए कॉलोनी बनाई जाए.

रामवृक्ष यादव का वीडियो

https://www.youtube.com/watch?v=-qr37Bsovx8 मथुरा में एक 'बाबा' रहा करते थे, जय गुरुदेव. ये लोग उन्हीं के अनुयायी हैं. जय गुरुदेव कौन हैं ये कानपुर वालों से पूछो.
13 जनवरी सन 1975. कानपुर के फूलबाग, नानाराव पार्क में रैली होने वाली थी. महीनों से इसकी तैयारी चल रही थी. कहा गया था रैली में खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस आ रहे हैं. लोग यह माने बैठे थे कि वो तो प्लेन क्रैश में मारे जा चुके हैं. लेकिन इस ऐलान के बाद पार्क में हज्जारों की भीड़ पहुंच गई. मंच पर जयगुरुदेव आए. सारी आंखें टकटकी लगाए देख रही थीं कि अब सुभाष आएंगे. बाबा ने दोनों हाथ उठाकर कहा, 'मैं ही हूं सुभाष चंद्र बोस'. बस फिर क्या. सुनना इतना था कि मंच पर चप्पल, अंडों और टमाटरों की बरसात शुरू हो गई. गुस्साई भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया. बाबा जान बचाकर सुट लिए. बुजुर्ग लोग बताते हैं कि पूरा फूलबाग उस दिन चप्पलों से पट गया था.
तो वही चप्पल खाने वाले बाबा जयगुरुदेव का चेला था रामवृक्ष यादव. जो मथुरा के जवाहरबाग में सरकार की 280 एकड़ जमीन पर चेलों संग कब्जा किए बैठा था. वह जमीन तो खैर छुड़ा ली गई. लेकिन उसके लिए पुलिस को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. अपने दो बड़े अफसरों को खोना पड़ा.

जयगुरुदेव गुट में फूट

2012 में जब जयगुरुदेव की मौत हो गई तो उनके पीछे उनका 12 हजार करोड़ का एंपायर छूट गया. बस पड़ गई फूट. उस संपत्ति पर कब्जे के लिए कई लोगों ने दावे किए. जिनमें जयगुरुदेव का ड्राइवर पंकज यादव और रामवृक्ष यादव मेन थे. रामवृक्ष दबंग था. उसने आश्रम पर हमले का प्लान भी बनाया. लेकिन कामयाबी नहीं मिली. इधर 2 साल पहले मध्य प्रदेश के सागर से लोगों का एक रेला चला. जो खुद को सत्याग्रही कहते थे. 18 अप्रैल 2014 को उन्होंने जवाहरबाग में रेस्ट करने के लिए डेरा डाला फिर हमेशा के लिए टिक गए. सुभाष चंद्र बोस का अनुयायी होने की बात कहकर इनके संपर्क में आया रामवृक्ष यादव और इनका सरगना बन गया. उसके बाद इनका गैंग 'आजाद भारत विधिक वैचारिक सत्याग्रही’ नाम से गुंडागर्दी करने लगा. जल्द  ही मथुरा की जनता और प्रशासन इनके कारनामों से त्राहिमाम कह उठे. ताकत भी इनकी बहुत तेजी से बढ़ती गई. औऱ इनके गुनाहों की फेहरिस्त भी. थाने इनकी ज्यादतियों की FIR से भर गए. पार्क कब्जाने के बाद 2014 में ही जवाहरबाग स्टोर पर भी कब्जा कर लिया था. जिसके बाद वहां सरकार का काम-काज ठप हो गया. इससे 18 लाख का नुकसान हुआ. 'सत्याग्रहियों' ने पार्क की पक्की नालियां उखाड़ कर अपने टट्टीघर बना लिए.

हथियारों का अड्डा बन गया जवाहरबाग

गुरुवार को पुलिस ने जब ये जगह खाली कराने का ऑपरेशन शुरू किया. तब उनको पता भी नहीं रहा होगा कि हम जिनपर हाथ डालने जा रहे हैं वो कोई सत्याग्रही या गली के छोटे मोटे गुंडे नहीं हैं. बल्कि हथियारों से लैस मुजरिम हैं और इतना भयानक हमला कर सकते हैं. बवाल शांत होने के बाद वहां की तलाशी में हथियारों का जखीरा मिला.
315 बोर की 45 पिस्टल 12 बोर की 2 पिस्टल 315 बोर की 5 राइफल राइफल के 80 जिंदा कारतूस 12 बोर के 80 कार्टिज 320 बोर के 5 खोखे ये वो हथियार थे जिनको इस्तेमाल से पहले ही कब्जे में लिया गया. अगर इन तक गुंडे पहुंच जाते तो पुलिस वालों के लिए और आफत हो सकती थी.

मथुरा में गुरुवार को क्या हुआ, वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें.

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