1- एंटर मार
निराला ने मुक्त छंद में कविता लिखी. अज्ञेय ने नई कविता लिखी. फेसबुक में एक प्रजाति को लगा कि हर शब्द के बाद एंटर का बटन दबा देने से कविता बन जाती है.हर शब्द के बाद, एंटर मारना कविता नहीं बनाता पार्टनर.
2- शायरी बाज़
इस तरह के कवियों की शुरुआत, कुछ तो बात है से शुरू होती है. हिंदी फिल्मों में सुने गए सारे दिल, जिगर, फूल-पत्ती वाले शब्द जमा कर के कुछ लिख दिया जाता है. इसके जवाब में लड़की की तरफ से कुछ दिन बाद वो तीन जादुई शब्द, ‘बट ऐज़ अ फ्रेंड’ सुनते हैं. उधर उन्होंने ये सुना और इधर इनकी शायरी चालू. इस शायरी में होता क्या है, आप भी जानते हैं. कक्योंकि लिखी आपने भी थी. मियां, ये सब लिखा-सुना हमने भी है मगर बात समझो ये कि शायरी कुछ नहीं होता. शायरी ऐब्स्ट्रैक्ट है, पोएट्री की तरह. शेर होता है, नज़्म होती है, गज़ल होती है और इन सबका घोल शायरी कहलाता है. शेर लिखे नहीं जाते कहे जाते हैं. उनमें गिरह बांधी जाती है. और शेर को शेर बनाने के लिए रदीफ, बहर, मिसरा, काफिया चाहिए होता है. खैर लोड न लो, जिसके लिए लिखा है, कौन सा उसे पढ़ना है. आप बस इतना कीजिये कि 'शायरी करने' वालों से बच के रहिये. क्योंकि ये जो करते हैं उसे शायरी नहीं कुछ और ही कहते हैं. वो जो कुछ भी है. अभी तक उसे परिभाषा के बंधन में नहीं बांधा जा सका है.'दिल को क्या समझाएं अब उनके बारे में हमने इज़हार किया तो बोले ये बिक गई है गौरमिंट'
3- साहित्य के सेवक
बड़ा सिंपल सा फंडा है. इन्हें लगता है कि कहीं से कुछ भी मिल जाए, उस पर ग़ालिब, गुलज़ार और हरिवंश राय बच्चन के नाम जोड़ो और आगे ठेल दो. अगला कौन सा चेक कर रहा है? लगे हाथ साहित्य की सेवा हो जाएगी. मगर 'चम्मच में चम्मच में जीरा, शायर ग़ालिब लाखों में हीरा' जैसी कविता अपने नाम से सुनकर असदउल्लाह क्या कहते होंगे? मेरे हिसाब से पान भरे मुंह से लाहौल-विला-कूवत के सिवा और कुछ नहीं निकलता होगा.बड़ी चाहत से तुमसे गुज़ारिश कर रहे हैं हम जानां मेरी वाली की शादी में ग़ालिब, जलूल-जलूल आना
4- कॉपीराइट कुमार
इस प्रकार के कवियों में दो चीज़े होती हैं. पहली एंटर मारे हुए शब्दों के साथ एक तस्वीर होती है. दूसरी कविता के अंत में ‘©’ लगा रहता है. पोस्ट लिखनेवाले इसको कॉपीराइट समझते हैं. मगर कई लोग इस C का कुछ और ही मतलब निकालते हैं. खैर,...बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी, क्या कामवाली बाई आज भी आएगी. ©
5- अंदर की फीलिंग वाले
ऐसे लोग इनबॉक्स में ज़्यादा पाए जाते हैं. खुद की भावनाओं से जो मन में आता है, लिख देते हैं. पहले के कवियों को पढ़ने और उन्हें समझने की कोई ज़रूरत उन्हें कभी महसूस नहीं होती. बस इनका स्वांतः सुखाय दूसरों के लिए घातक हो जाता है. अगर इन लोगों ने गहरे में जाकर कुछ पढ़ा होता तो ये जानते होते कि कबीर इन्हीं को डेडीकेट करके लिख गए थे."भाषा खड़ी भिखारिणी भीजै दास कबीर"