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गलवान में शहीद हुआ सैनिक, अब पत्नी सेना में अफसर बनकर लद्दाख पहुंची

जज्बे की इस कहानी पर हर कोई गर्व करेगा.

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गलवान में शहीद हुआ पति, बीवी ने क्या किया? (इंडिया टुडे फोटो)

आंसू, गुस्सा और गर्व. 5 मई, 2020 को चीन की सीमा से आई खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया था. जिस दौर में पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी, उसी दौरान चीनी सेना ने लद्दाख में घुसपैठ की कोशिश की. भारतीय सेना चट्टान की तरह खड़ी थी. दोनों सेना के जवानोें के बीच हाथापाई हुई, मारपीट हुई. ड्रैगन की चाल नाकामयाब हुई, चीनी सैनिक मारे गए. लेकिन इस संघर्ष में 20 भारतीय जवान भी शहीद हुए.

इन्हीं जाबाज़ों में से एक नाम था नायक दीपक सिंह का. दीपक उस दौरान 16 बिहार रेजिमेंट में नर्सिंग सहायक के रूप में तैनात थे. इस संघर्ष में दीपक की जान गई, लेकिन शहीद होने से पहले उन्होंने 30 जाबांज भारतीय सैनिकों को बचाया था.

दीपक की शादी को एक साल भी पूरा नहीं हुआ था, वो अपनी पत्नी का साथ छोड़ चले गए. दीपक के जाने से परिवार दुखों से टूट चुका था. लेकिन उनकी पत्नी ने उस साहस को जिंदा रखा जिसने दीपक को अमर कर दिया था. दीपक की पत्नी रेखा ने आंसू पोछें और जो काम दीपक छोड़कर गए थे, उसे पूरा करने की ठानी. रेखा सिंह ने सेना में भर्ती होने की इच्छा जाहिर की. परिवार साथ था. रेखा ने जमकर तैयारी की. और आखिरकार SSB की कठिन परीक्षा पास कर वो सेना में अफसर के पद पर भर्ती हुईं. 

लेकिन बीते दिनों एक और ऐसी खबर आई जिसे जान कर आपकी आंखों में चमक आ जाएगी. चेन्नई में ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी से अपना कोर्स और ट्रेनिंग पूरी करने के बाद रेखा ने आर्मी जॉइन कर लिया है. उन्हें दीपक की ही यूनिट में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया गया. और अब रेखा की पोस्टिंग लद्दाख में होने वाली है. 

पति को मिला था वीर चक्र

रेखा के दिवंगत पति नाइक दीपक सिंह ऑपरेशन 'स्नो लेपर्ड' (OPERATION SNOW LEOPARD) का हिस्सा थे. ये ऑपरेशन भारतीय सेना ने चीनी घुसपैठ के खिलाफ शुरू किया था. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुए संघर्ष के बाद दीपक ने घायल जवानों का इलाज किया था.

इंडिया टुडे के संवाददाता अक्षय डोंगरे की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सेना की संख्या भारतीय सैनिकों से ज्यादा थी. झड़क की स्थिति का आंकलन करने के बाद, वे तत्काल मेडिकल सपोर्ट के लिए ऊपर गए थे. जैसे-जैसे झड़प होती रही और घायलों की संख्या बढ़ती रही, दीपक प्राथमिक चिकित्सा देने के लिए फ्रंटलाइन की ओर बढ़ते रहे. संघर्ष के दौरान भारी पथराव भी हुआ. इसी में दीपक गंभीर रूप से घायल हो गए थे. पर वो बिना रुके भारतीय सैनिको का इलाज करते रहे. दुश्मन से मिले गंभीर ज़ख्मों के बावजूद दीपक सैनिकों ने मेडिकल सहायता देते हुए कई सैनिकों की जान बचाई. हालांकि, इसके बाद उन्होंने खुद दम तोड़ दिया.

शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों में बेजोड़ काम और अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए नाइक दीपक सिंह को 'वीर चक्र (मरणोपरांत)' से सम्मानित किया गया था. 

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