साल 1969. नील आर्म स्ट्रोंग ने चांद पर पहला कदम रखा. इंसान का छोटा सा कदम. इंसानियत की बड़ी छलांग.
तारीख: ऐसे हुई थी ISRO की शुरुआत
कहानी शुरू होती है साल 2008 से, चंद्रयान मिशन लांच होने में कुछ ही दिन बाकी थे. एक रोज डॉक्टर कलाम इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष जी माधवन नायर से मिलने गए. डॉक्टर कलाम ने पूरे मिशन की जानकारी लेने के बाद एक सवाल पूछा,
नील आर्म स्ट्रोंग जब चांद पर चहल कदमी कर रहे थे. भारत के केरल राज्य के एक छोटे से गांव में एक आदमी साइकिल चला रहा था. कहना चाहिए साइकिल के बगल में चल रहा था. साइकिल पर रखा था एक छोटे से रॉकेट का एक हिस्सा. साइकिल के दो पहिये बैल गाड़ी के चार पहियों में तब्दील हुए. तमाम जुगाड़ बिठाए गए. पैसे नहीं थे. संसाधन नहीं थे. लेकिन फिर भी पहिये रुके नहीं. साल 2023. पहिए अब चांद की सतह तक पहुंच चुके हैं. साइकिल चलाने वाले वो हाथ अब नहीं हैं. वो आंखें कबके बुझ चुकी हैं. जिन्होंने सपना देखा था. देश को चांद तक पहुंचाने का. उन्हीं कुछ नामी और अनाम लोगों को याद करते हुए आज बात करते भारत के स्पेस मिशन के शुरुआती दिनों की. कैसे धर्म का एक प्रतिनिधि एक वैज्ञानिक को अपना पूजा का स्थल देता है, ताकि विज्ञान तरक्की कर सके. कैसे एक गिरिजा घर में रखी गई भारत के स्पेस मिशन की नींव. ये सब जानेंगे आज के एपिसोड में.