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दिखने लगी टैरिफ की मार, नोएडा और सूरत की कपड़ा फैक्ट्रियां बंद होने का दावा

America Tariff: टैरिफ बढ़ने से भारतीय कपड़ा, चमड़ा, सेरामिक्स, केमिकल, हैंडक्राफ्ट और कालीन जैसे उद्योगों की दूसरे देशों से मुकाबला करने की काबिलियत बुरी तरह प्रभावित हो रही है. ऐसे में सरकार से मदद की अपील की गई है.

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तमिलनाडु के तिरुपुर की एक कपड़ा फैक्ट्री. (India Today)

भारतीय निर्यातकों के संगठन 'फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन' (FIEO) ने बताया है कि देश के कई बड़े कपड़ा उद्योग शहरों में कामकाज ठप हो गया है. FIEO के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारतीय सामानों पर 25 फीसदी टैरिफ बढ़ा दिया है, जिसके बाद सूरत, नोएडा और तिरुपुर में फैक्ट्री वालों ने कपड़े बनाना बंद कर दिया है. 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ के बाद कुल 50 फीसदी टैरिफ हो गया है. इससे भारतीय सामान महंगे हो गए हैं, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य देशों के सामान से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं.

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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, FIEO ने कहा है कि टैरिफ बढ़ने से भारतीय कपड़ा, चमड़ा, सेरामिक्स, केमिकल, हैंडक्राफ्ट और कालीन जैसे उद्योगों की दूसरे देशों से मुकाबला करने की काबिलियत बुरी तरह प्रभावित हो रही है. ऐसे हालात से बचने के लिए सरकार से तुरंत वित्तीय मदद देने और नीतिगत फैसले लेने की अपील की गई है.

मंगलवार, 26 अगस्त को FIEO के अध्यक्ष एससी रल्हन ने बताया,

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"तिरुपुर, नोएडा और सूरत के टेक्सटाइल और अपैरल बनाने वालों ने बढ़ती लागत के चलते काम रोक दिया है. यह सेक्टर वियतनाम और बांग्लादेश जैसे कम लागत वाले देशों के आगे पिछड़ रहा है. जहां तक समुद्री खाना (सीफूड), खासकर झींगों का सवाल है, चूंकि अमेरिकी बाजार भारत के सीफूड एक्सपोर्ट का लगभग 40 फीसदी खपा लेता है, इसलिए टैरिफ बढ़ोतरी से स्टोरेज में कमी, सप्लाई चेन में रुकावट और किसानों के संकट का खतरा है."

उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिकी सरकार से जल्द बातचीत के जरिए इससे बचने का रास्ता निकालना चाहिए. FIEO ने सरकार से एक्सपोर्ट क्रेडिट सपोर्ट और कम लागत पर उधार का इंतजाम करने की मांग की है, जिससे माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) उद्योगों को राहत मिल सके.

'कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री' (CITI) के चेयरमैन राकेश मेहरा ने भी सरकार से तुरंत मदद की अपील की है. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ निर्यातकों के भविष्य का सवाल नहीं है, बल्कि इससे लाखों रोजगार और 2030 तक 100 बिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य को पूरा करने की कोशिश पर भी खतरा पैदा हो गया है. CITI ने भी सरकार से एक साल के लिए उधार की मूल रकम और ब्याज चुकाने पर मोरेटोरियम की मांग की है.

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