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हर दिन 4 एनकाउंटर करने वाली UP पुलिस को वाराणसी और नोएडा में क्या हो गया?

IIT-BHU यौन उत्पीड़न केस में आरोपी 60 दिन तक कैसे नहीं पकड़े गए? और नोएडा गैंग रेप केस में कुख्यात रवि काना को पुलिस ने अज्ञात क्यों बताया?

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सांकेतिक तस्वीर. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

अमेठी में 30 दिसंबर को एक व्यवसायी को लूट लिया गया. आरोपियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई. आरोपी घायल हुए. और दो दिन में पुलिस ने आरोपियों को पकड़ लिया. 29 दिसंबर को बुलंदशहर में लूट की घटना हुई. पुलिस ने 24 घंटे के भीतर 4 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया. लूट का सामान भी बरामद किया और 2 अवैध हथियार भी जब्त कर लिए.  28 दिसंबर को महोबा में मारपीट हुई. एक शख्स की मौत हो गई. पुलिस ने 16 घंटे के भीतर चारों नामजद आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों घटनाओं की जानकारी यूपी पुलिस के X हैंडल से हासिल की गई है.

ये तीन घटनाएं यूपी पुलिस की 'कार्यक्षमता' का उदाहरण मात्र हैं. आप यूपी पुलिस के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट्स पर जाकर देखेंगे तो पाएंगे, हर रोज़ तमाम जिलों में पुलिस इसी तरह अपराधियों की धर-पकड़ में जुटी हुई है. ऐसी पुलिसिंग से जनता में सरकार और प्रशासन के प्रति विश्वास पैदा होता है. और अपराधियों के मन में डर बैठता है.

लेकिन पुलिस की ये कार्यक्षमता तब क्यों नहीं नज़र आई, जब BJP IT सेल के तीन सदस्य IIT BHU की छात्रा के साथ के साथ यौन उत्पीड़न करते हैं. पुलिस की तत्परता नोएडा में क्यों नहीं दिखती, जब एक युवती 6 महीने बाद बलात्कार की शिकायत लेकर आती है और पुलिस FIR दर्ज करने में भी कोताही बरतती है.

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30 दिसंबर को नोएडा के सेक्टर-39 थाने में एक युवती ने FIR दर्ज कराई. उसने बताया कि 19 जून 2023 को उसके साथ गैंग रेप किया गया. आरोपी रसूखदार हैं, इसलिए वो इतने दिन तक चुप रही. लेकिन अब उसे ब्लैकमेल किया जा रहा है. आरोपियों के नाम हैं रवि, आज़ाद, विकास, राजकुमार और मेहमी. इनमें से तीन को गिरफ्तार किया जा चुका है. रवि और मेहमी अभी फरार हैं. इनमें से रवि नोएडा का बड़ा स्क्रैप माफिया माना जाता है. पूरा नाम रवि नागर है, जिसे रवि काना के नाम से भी जाना जाता है. ये वही रवि काना है, जो रिपोर्ट्स के मुताबिक़ गैंगस्टर अनिल दुजाना का अवैध कारोबार चला रहा था. जिसे दुजाना का राइट हैंड भी कहा जाता था. इसके खिलाफ नोएडा पुलिस में पहले से एक से अधिक मामले दर्ज हैं. इतनी सब जानकारी होने के बावजूद, अगर आप इस मामले की FIR देखेंगे तो पाएंगे पुलिस ने इनको अज्ञात बताया है. सभी के नाम के आगे पते के कॉलम में अज्ञात लिखा गया है.

IIT BHU की घटना से तो आप वाकिफ होंगे ही. BHU की छात्रा 1-2 नवंबर की दरमियानी रात अपने एक साथी के साथ BHU कैंपस में ही कहीं जा रही थी. तभी कृषि संस्थान के पास एकांत जगह पर बाहरी युवकों ने दोनों को घेर लिया. उन्होंने छात्र और छात्रा को अलग किया, फिर छात्रा का ‘यौन उत्पीड़न’ किया. आरोप है कि उन लोगों ने ‘जबरन छात्रा के कपड़े उतरवाए’. मारपीट कर छात्रा का मोबाइल छीन लिया. उसकी तस्वीर भी खींची.

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घटना के बाद आरोपियों की तस्वीर भी सामने आई थी. पुलिस ने आरोपियों के पास से घटना के दिन इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. आरोपी कुणाल पांडेय बृज एन्क्लेव कॉलोनी, सुंदरपुर का रहने वाला है. वहीं दूसरा आरोपी अभिषेक चौहान जिवधीपुर का और तीसरा सक्षम पटेल बजरडीहा का रहने वाला है. सारी जानकारी होने के बावजूद इन आरोपियों को गिरफ्तार करने में पुलिस को 60 दिन का वक्त लग गया.

यहीं पर यूपी पुलिस की मंशा पर सवाल उठ जाते हैं. जो पुलिस छोटी-मोटी लूटपाट के मामलों में आरोपियों के पैर में गोली मारकर उन्हें 24 घंटे के अंदर पकड़ लेती है, उसने वाराणसी और नोएडा जैसे जघन्य अपराधों में इतनी कोताही क्यों बरती?

इस मामले में द लल्लनटॉप ने यूपी पुलिस के पूर्व IPS अधिकारी राजेश पांडे से बात की. उन्होंने कहा-

ये एक सिस्टम है. जब भी कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड से जुड़ा आरोपी सामने आता है, तो कई स्तर पर फैसले लिए जाते हैं. पहले दरोगा, फिर DSP, SP, फिर पुलिस कमिश्नरेट. कमिश्नरेट से फिर ऊपर भी जानकारी दी जाती है. और तब फैसला होता है कि आखिर इस मामले में करना क्या है. और ये कोई आज की प्रक्रिया नहीं है. ये सिस्टम पहले से चला आ रहा है.

राजेश पांडे आगे कहते हैं कि

जरूरत इस बात की होती है कि ऐसी कोई भी शिकायत आने पर बिना किसी बैकग्राउंड चेक के, आरोपियों को गिरफ्तार किया जाए. ताकि उन्हें भागने का मौका न मिले. आरोपी किससे जुड़ा है और क्या करता है, इसकी जांच के बजाए उसने कितना बड़ा अपराध किया, इसकी जांच होना जरूरी है.

जिस बात को पूर्व IPS रेखांकित कर रहे हैं, वो बेहद गंभीर है. वाराणसी के मामले में 60 दिन तक आरोपी आज़ाद घूमते रहे. आरोप ये भी लग रहे हैं कि इस दौरान ये तीनों आरोपी BJP के लिए मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार करने भी गए. कुछ ऐसा ही मामला नोएडा का भी है. नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक रवि नागर कुछ समय पहले तक नोएडा कमिश्नरेट में पुलिस अधिकारियों का करीबी माना जाता था. पूरे जिले में वह स्क्रैप का सबसे बड़ा कारोबारी खाकी की छत्रछाया में ही बना. पूर्व में कमिश्नरेट से इसे कई पुलिसकर्मियों की सुरक्षा भी दी गई थी. यह सुरक्षा अब जरूरत न होने का हवाला देकर कमिश्नरेट पुलिस ने हटाई हुई है.

हमने यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह से भी बात की. उन्होंने इन मामलों में संबंधित पुलिसकर्मियों की कार्यशैली पर सवाल उठाए. सिंह ने कहा-

इन मामलों में आरोपियों को दोषी सिद्ध करवाकर पुलिस को अधिकतम सज़ा दिलाने की नज़ीर पेश करनी चाहिए. लेकिन उससे पहले जिन पुलिसकर्मियों ने अपने काम में कोताही बरती है, उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए. बनारस में जब सीसीटीवी से आरोपियों को पहचाना जा चुका था, उनकी तस्वीर आपके पास थी. और जब पीड़िता ने स्केच बनवाया था, तो क्यों उससे मिलान कर आरोपियों को पकड़ा नहीं गया? इन आरोपियों के पोस्टर क्यों नहीं जारी किए गए? इतने दिनों तक उन्हें आज़ाद क्यों रहने दिया गया?

विडंबना देखिए. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी पुलिस के स्पेशल डीजी प्रशांत कुमार ने पिछले साल सितबंर में बताया था कि यूपी में पिछले 6 सालों में पुलिस और अपराधियों के बीच 9,434 से ज्यादा मुठभेड़ें हुई हैं. जिसमें 183 अपराधी जान से मारे गए हैं. 5,046 अपराधियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. यानी एक दिन में औसतन चार एनकाउंटर, तो यूपी पुलिस कर देती है. 

और इसी पुलिस का हाल ये है कि पहले से FIR दर्ज होने के बावजूद नोएडा सेक्टर 39 के थाने वाले रवि काना का पता नहीं निकाल पा रहे हैं. और इसी पुलिस का हाल ये है कि फोटो, सीसीटीवी फुटेज, वारदात के दौरान इस्तेमाल की गई बाइक, सारे सबूत होने के बावजूद वाराणसी में तीनों आरोपी 60 दिन तक आज़ाद घूमते रहे.