जीडी बख्शी. पूरा नाम – गगनदीप बख्शी. 1950 में जबलपुर, मध्य प्रदेश में पैदा हुए. 1971 से 2008 तक आर्मी में रहे. मेजर जनरल की रैंक तक पहुंचे, जो कि आर्मी की टॉपमोस्ट रैंक्स में से है. इनको अच्छे से पहचानने-समझने के लिए सबसे पहले दो वाकये बताते हैं.
पिछले साल की बात है. पुलवामा हमले के बाद जीडी बख्शी एक नेशनल न्यूज़ चैनल पर डिबेट में थे. यहां भी आपा खो दिया. गाली दे बैठे. हालांकि तब पैनलिस्ट को नहीं, बल्कि कश्मीर के अलगाववादियों को.
फिर इस साल जनवरी में भी जीडी बख्शी एक कॉन्क्लेव में आर्टिकल 35-ए पर बात कर रहे थे. यहां भी गुस्सा गए. पाकिस्तानी फौज का ज़िक्र करते हुए अपशब्द बोल बैठे. ना सिर्फ बोला, बल्कि दोहराया भी.
इन दोनों वाकयों के क्लिप यूट्यूब पर हैं. हम यहां अटैच नहीं कर रहे हैं.
तो जानते हैं कि जमकर गुस्साने वाले जीडी बख्शी कौन हैं?
#फौज में आने का सफर
कमांडो कॉमिक्स और जीडी बख्शी"बचपन में मुझे कमांडो कॉमिक्स पढ़ने का बहुत शौक था. 50 पैसे की मिलती थी. लोग खरीदते थे, फिर एक्सचेंज करते थे. कॉमिक्स पढ़ने का यही तरीका हुआ करता था. मेरे सेना में आने के पीछे कमांडो कॉमिक्स का बड़ा रोल है. मैं वो कॉमिक्स पढ़ता और वो तस्वीरें, वो स्केच मेरे दिमाग में बस जाते थे. मैं अपने मन में ही इमेजिन करता रहता था- कमांडोज़ को लड़ते हुए. उन्हें गन चलाते."ये बात जीडी बख्शी ने ही बताई थी. दिल्ली के हंसराज कॉलेज में हुए एक Ted-X सेशन में. उनके फौज में आने के पीछे दूसरी प्रेरणा थे बड़े भाई. उनके बड़े भाई भी सेना में थे और 1965 में पाकिस्तान के ख़िलाफ जंग में शहीद हो गए थे.
भाई की शहादत के बाद सेना में आए
"मेरे पिता चाहते थे कि मैं IAS ऑफिसर बनूं. लेकिन 1965 में सब बदल गया. मेरे भाई शहीद हुए. वो जंग में एक माइन ब्लास्ट में मारे गए. हमला इतना भयंकर था कि हमें उनका शरीर तक नहीं मिला. बस एक कलश में राख मिली. यहां से मैं समझ गया कि मुझे अब क्या करना है. दिसंबर-1966 में मैंने एसएसबी का एग्ज़ाम दिया. मैं ऑल इंडिया मेरिट लिस्ट में नंबर-2 था."जब कोई सेना जॉइन करता है, तो उस कैंडिडेट के माता-पिता से एक बॉन्ड साइन कराया जाता है. ये बॉन्ड कहता है कि परिवार इस बात से वाकिफ है भविष्य में सेना में रहते हुए उसको कोई गंभीर चोट आने या मारे जाने का भी अंदेशा होगा. और अगर ऐसा होता है तो परिवार किसी मुआवजे की मांग नहीं करेगा. जीडी बख्शी के परिवार ने ये बॉन्ड साइन करने से भी मना कर दिया था, जिसके बिना वो एनडीए जॉइन नहीं कर सकते थे. किसी तरह घर वालों को मनाकर वे 1967 में एनडीए पहुंचे. फिर 3 साल एनडीए में बिताए. एक साल इंडियन मिलिट्री अकेडमी में बिताए. और 37 साल सर्विस की.

# 1971 में जब IMA में ट्रेनिंग खत्म होने ही वाली थी, तभी भारतीय सीमाओं पर तनाव बढ़ गया. सभी नए-नए फौजियों को ड्यूटी पर भेजा गया. इसमें 21 साल के जीडी बख्शी भी थे. ये उनका सीमा पर पहले एक्सपोज़र था.
# 1985 और इसके आस-पास जब पंजाब में आतंकवाद की समस्या अपने चरम पर पहुंच गई थी, तब वहां भी एक्टिव थे.
# कारगिल युद्ध में भी तैनात थे. भारत की जीत में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए जीडी बख्शी को सेना मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल मिला.
# 2008 में सेना से रिटायर हुए. कुल 26 किताबें भी लिख चुके हैं.
# झांसी की रानी रेजिमेंट से प्रभावित
जीडी बख्शी कई मौकों पर सेना में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की भी बातें करते रहते हैं. एक इवेंट में उन्होंने बताया कि किस तरह अब अगर कोई लड़की एयरफोर्स जॉइन करती है तो फाइटर पायलट बन सकती है, नेवी में वॉरशिप्स पर जा रही हैं. और उन्होंने बताया भी था वे इस मामले में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंज फौज के कॉन्सेप्ट से प्रभावित हैं, जिसमें 1945 में ही एक महिला रेजीमेंट थी- झांसी की रानी रेजीमेंट. ये रेजीमेंट बर्मा में लड़ी भी थी.#जीडी बख्शी को गुस्सा क्यों आता है?
Bose or Gandhi: Who got India her freedom?ये जीडी बख्शी की लिखी दो किताबें हैं. इसके अलावा तमाम किताबें अलग-अलग टॉपिक्स पर हैं. जैसे- हड़प्पा की सभ्यता, अफगानिस्तान पर, चीन की मिलिट्री पावर पर, कुंडलिनी शक्ति पर भी. लेकिन ऊपर जिन दो किताबों के नाम बताए, उनसे ये साफ है कि जीडी बख्शी सुभाष चंद्र बोस, उनकी सोच और आजाद हिंद फौज से काफी प्रभावित हैं. तमाम मौकों पर ये बात कह भी चुके हैं. और यही बात उनके सोचने, बोलने की आक्रामक शैली में भी दिखती है.
Bose: An Indian Samurai : Netaji and the INA : a Military Assessment
"Indian Army can change the maps." कहने वाले जीडी बख्शी सेना को एक अटैकिंग यूनिट के तौर पर पेश करते हैं और देश की सुरक्षा, सीमा का ज़िक्र भी इसी तरह से किया जाना पसंद करते हैं. यहां पर वो नरमी की कोई गुंजाइश रखना पसंद नहीं करते. न्यूज़लॉन्ड्री को दिए एक इंटरव्यू में जीडी बख्शी कहते हैं -
"कुछ लोगों ने बाकायदा इंडियन आर्मी को एक ऐसी यूनिट के तौर पर पेश करने की साजिश की है, जो मानवाधिकार को कुछ नहीं समझती. मैं साफ कहता हूं कि अगर मानवाधिकार का कोई वास्ता करुणा से है, तो मैं इसके पक्ष में रहता हूं. लेकिन ये मानवाधिकार हमारे किसी ऑपरेशन के बीच में आएं तो मैं इन्हें नहीं मानता."जीडी बख्शी की यही फॉलो लिस्ट और उनके सोचने का तरीका ही है कि वो ख़ासे अग्रेसिव रहते हैं और आर्मी से रिटायर होने के 12 साल बाद भी यही अग्रेशन अब उनकी बातों में दिखता रहता है. जो नेशनल टीवी पर गालियों तक पहुंच जाता है.
'द प्रिंट' ने जीडी बख्शी पर एक आर्टिकल लिखा था. इसमें उन्होंने बिना नाम सार्वजनिक किए एक आर्मी पर्सन को कोट किया था. इनका जीडी बख्शी पर कहना था कि उनकी (बख्शी की) देशभक्ति पर, उन्होंने जो किया, उस पर कोई शक नहीं है. लेकिन बेशक जिस तरह से वो सार्वजनिक मंच पर अपनी बात रखते हैं, उसमें और ‘बैलेंस’ रखा जा सकता है.
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