भारत आए तो अपने परिवार के बिजनेस को संभालने की जिम्मेदारी मिली. उन्हें BILT की कमान सौंपी गई. कागज बनाने वाली बल्लापुर इंस्ट्रीज उस वक्त बुरे दौर से गुजर रही थी. कंपनी में एक तरफ लेबर यूनियन हावी थे तो दूसरी तरफ बिजली-पानी का भारी संकट था. उस पर चुनौती ये कि कंपनी इस वक्त दुनिया के कई देशों में यूनिट खोलने की योजना बना रही थी. गौतम थापर ने आते ही कंपनी के सारे एक्सपेंशन प्लान रद्द कर दिए. संपत्तियां बेचीं और लेबर प्रॉब्लम को हल किया. एक साल के भीतर ही असर दिखा और बंद होने की कगार पर पहुंच चुकी कंपनी मुनाफे में आ गई.
गौतम थापर का रुतबा अपने परिवार में ही नहीं बल्कि बिजनेस कम्यूनिटी में भी बढ़ा. उन्होंने कई कंपनियों में बड़ी जिम्मेदारी संभाली. साल 2004 में उन्होंने बिजली उपकरण बनाने वाली कंपनी क्रॉम्पटन ग्रिव्स के चेयरमैन का पद संभाला था. इसके दो साल बाद यानी 2006 में गौतम थापर ने सीजी पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशन समूह के चेयरमैन का पद संभाला. बिजनेस जगत में उनके बेहतरीन योगदान के लिए साल 2008 में उन्हें मैन्युफैक्चरिंग के लिए मिलने वाला 'अर्न्स्ट एंड यंग एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर' अवार्ड दिया गया.
पिछले कई सालों से BILT लगातार घाटे में चल रही थी. साल 2020 में कंपनी को लोन देने वाले बैंक अपनी वसूली को लेकर कोर्ट पहुंच गए. SBI, ICICI Bank, Axis Bank और IDBI Bank जैसे बड़े बैंक कंपनी को दिवालिया घोषित करने की कार्रवाई की मांग करने लगे. क्या आरोप हैं गौतम थापर पर? ईडी ने गौतम थापर पर कई तरह की अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं. जिनमें शामिल हैं-
-> बैंक फंड का दुरुपयोग -> संबंधित पक्षों के साथ फर्जी लेनदेन -> गलत तरीके से बैंकों से लोन लेना -> नकली वाउचर और फर्जी फाइनेंशियल डिटेल्स देना -> आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी
ये आरोप जांच एजेंसी ने फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर लगाए हैं.
गौतम थापर और उनकी फर्म और सहयोगियों के खिलाफ कई केस दर्ज किए गए हैं. मुख्य रूप से तीन मामलों में सीबीआई जांच कर रही है और इनमें से एक में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने एक्शन लिया है. इन तीन मामलों में से एक रिश्वत देने का, दूसरा यस बैंक का पैसा हड़पने का और तीसरा मामला 12 बैंकों के पैसों की हेराफेरी का है.
आपकी सुविधा के लिए हम तीनों केस अलग-अलग समझा रहे हैं. रिश्वत देने से लेकर हजारों करोड़ की हेराफेरी के मामले केस नंबर 1
सीबीआई ने मार्च 2020 में यस बैंक के पूर्व निदेशक राणा कपूर और गौतम थापर के बीच हुए लेनदेन को लेकर एक केस दायर किया था. सीबीआई के मुताबिक, गौतम थापर ने यस बैंक के पूर्व कार्यकारी निदेशक राणा कपूर को अवंता रियलिटी के जरिए बाजार से काफी कम कीमत पर एक संपत्ति रिश्वत में दी. ये मामला एक बंगले का है, जो दिल्ली की प्राइम लोकेशन अमृता शेरगिल मार्ग पर है. इसका साइज़ है तकरीबन 1.2 एकड़. जहां दिल्ली में 2-3 बीएचके फ्लैट की कीमत लाखों में है, ऐसे में 1 एकड़ से बड़े इस बंगले की मार्केट वैल्यू 685 करोड़ रुपए है. लेकिन इसे राणा कपूर को आधी कीमत में बेच दिया गया. सीबीआई का आरोप है कि गौतम थापर ने राणा कपूर को इतने सस्ते में बंगला रिश्वत के तौर पर दिया. मामला 300 करोड़ से ज्यादा की कथित रिश्वत का है. ये रिश्वत इसलिए दी गई ताकि थापर की कंपनी को 1900 करोड़ रुपए के लोन चुकाने में यस बैंक से मोहलत मिल सके.

यस बैंक के को-फाउंडर और सीईओ राणा कपूर वित्तीय अनियमितताओं के चलते मार्च 2020 से जेल में हैं.
केस नंबर 2
9 जून 2021 को सीबीआई ने गौतम थापर और अन्य के खिलाफ एक और मामला दर्ज किया. ये मामला आम जनता के 466.15 करोड़ रुपए हड़पने का है. इसे लेकर सीबीआई ने कई जगह छापे भी मारे थे. सीबीआई का आरोप है कि इस गड़बड़झाले के लिए गौतम थापर ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिल कर एक जाल बुना. इस जाल में मुख्य रूप से 3 कंपनियां हैं.
-> अवंता रिएलिटी प्राइवेट लिमिटेड -> झाबुआ पावर लिमिटेड -> ऑयेस्टर बिल्डवेल
असल में ये तीनों कंपनियां एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं. ऑयेस्टर बिल्डवेल में अवंता रिएलिटी प्राइवेट लिमिटेड का भारी हिस्सा है. भारी मतलब बहुत भारी. 95 फीसदी से ज्यादा. झाबुआ पावर लिमिटेड नाम की कंपनी ऑयेस्टर बिल्डवेल ग्रुप में आती है. बता दें कि अवंता रिएलिटी प्राइवेट लिमिटेड के प्रमोटर गौतम थापर हैं. कुल मिलाकर ये कंपनियां गौतम थापर ही चला रहे हैं.
इस मामले में यस बैंक ने जो FIR लिखाई है, उसके अनुसार ऑयेस्टर बिल्डवेल और झाबुआ पावर लिमिटेड ने मिलकर पैसा हड़प लिया है. हुआ ये कि झाबुआ पावर लिमिटेड ने एक बिजली कंपनी के 600 मेगावाट के प्लांट के मेंटिनेंस का ठेका लिया. ये ठेका 10 साल के लिए था. ठेके के लिए एक रिफंडेबल सिक्योरिटी रखनी होती है. अब चूंकि झाबुआ पावर लिमिटेड ऑयेस्टर बिल्डवेल ग्रुप का हिस्सा थी तो सिक्योरिटी डिपॉजिट का इंतजाम ऑयेस्टर बिल्डवेल को करना था. सिक्योरिटी की रकम थी 515 करोड़ रुपए. यहां पर यस बैंक की एंट्री होती है. बैंक ने ऑयेस्टर बिल्डवेल ग्रुप को 10 साल की अवधि के लिए 515 करोड़ रुपए का लोन सेंक्शन कर दिया.
ऑयेस्टर बिल्डवेल कंपनी ने कुछ वक्त बाद ही लोन की रकम का पेमेंट करना बंद कर दिया. कंपनी डिफॉल्ट कर गई और 30 अक्टूबर 2019 को लोन की रकम नॉन परफॉर्मिंग असेट घोषित कर दी गई. यस बैंक का आरोप है कि अब भी कंपनी पर 466 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का मूल बकाया है. इसे लेकर बैंक ने केस दर्ज करा रखा है.

यस बैंक ने भी सीबीआई में एक केस दर्ज कराया जिसमें गौतम थापर कई अन्य के साथ आरोपी हैं. (Photo: PTI)
बैंकों को लगी हजारों करोड़ की चपत केस नंबर 3
अभी सीबीआई दो मामलों जांच कर ही रही थी कि देश के बड़े बैंक एसबीआई ने सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई. SBI की शिकायत के आधार पर सीबीआई ने सीजी पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशन लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर को आरोपी बनाया है. ये वही कंपनी है जिसे आम लोग क्रॉम्पटन एंड ग्रीवस नाम से भी जानते हैं. गौतम थापर को 29 अगस्त 2019 को सीजी पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशन ने चेयरमैन के पद से हटा दिया था. उन पर अनियमितता का आरोप लगा था. गौतम और दूसरे सीनियर अधिकारियों के खिलाफ 2435 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के मामले में केस दर्ज किया गया है.
असल में गौतम थापर के कारनामों का शिकार सिर्फ SBI नहीं है. इसके अलावा 12 अन्य बैंकों के पैसे भी फंसे हुए थे. बैंको की फंसी हुई कुल रकम 2435 करोड़ रुपए है. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का है, जो कुल रकम का 12.81 फीसदी है. दूसरे नंबर पर यस बैंक का पैसा है. इसका हिस्सा 11.75 फीसदी है. सीबीआई ने जो मामला दर्ज किया है उसमें गौतम थापर के जमाने में उनके साथ काम कर रहे कई बड़े अधिकारियों के नाम भी हैं.
सीजी पावर सिस्टम या क्रॉम्पटन ग्रीव्स नाम की कंपनी एसबीआई के साथ 1988 से जुड़ी हुई है. कंपनी के प्रोडक्ट और सर्विसेज की वजह से बैंको का इस पर भरोसा भी पक्का था. लेकिन 2019 में सब बदल गया. 19 अगस्त 2019 को कंपनी ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में खुलासा किया कि उसके संसाधनों को बहुत कम करके आंका गया है. वो चाहें दूसरी पार्टियों को दिया गया अडवांस पैसा हो या फिर नेट वर्थ. कंपनी के बोर्ड ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा कि कंपनी की संपत्तियों को ऐसी कंपनियों के लिए बंधक या कोलेटरल के तौर पर दिया गया है जिनका मार्केट में कोई बड़ा नाम नहीं है. ये भी बताया गया कि जिन कंपनियों ने ये संपत्तियां रख कर लोन लिया उन्होंने लोन में लिए पैसे को दूसरी कंपनियों में डायवर्ट कर दिया.
जानी-मानी पुरानी कंपनी में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में कंपनी के मुखिया गौतम थापर और उनकी टीम को कंपनी से हटाया गया. ये 29 अगस्त 2019 की बात है.

एसबीआई ने हजारों करोड़ की हेराफेरी का जो मामला दर्ज कराया है उसमें भी गौतम थापर का नाम प्रमुख रूप से आया है.
इसके घटना के बाद लोन देने वाले बैंकों ने फॉरेंसिक ऑडिट करवाया. बोले तो बही खाते का पूरा तियां-पांचा. इसमें पता चला कि क्रॉम्टन ग्रीवस कंपनी के फंड को गौतम थापर ने एक प्लानिंग के साथ ऐसी कंपनियों में ट्रांसफर किया जिसके प्रमोटर वो खुद थे.
फॉरेंसिक ऑडिट में दूसरी गड़बड़ियों का खुलासा भी हुआ. इसकी रिपोर्ट में आरोप लगाए गए हैं कि गौतम थापर ने सीजी पावर की संपत्तियों और फंड को उन कंपनियों में ट्रांसफर किया जिनसे वो कहीं न कहीं से जुड़ा हुआ था. इनमें प्रमुख कंपनी थी अवंता होल्डिंग्स. इस रकम से थापर ने अपनी कंपनियों की देनदारी चुकाई. फॉरेंसिक ऑडिट में 5290 करोड़ रुपए के डायवर्जन की आशंका जताई गई है.
सीबीआई के पास दर्ज एफआईआर के मुताबिक 2015 से 2019 के बीच बैंकों से धोखधड़ी करके पैसे डायवर्ट किए गए. इसके लिए फर्जी लेन-देन, नकली वाउचर, फर्जी फाइनेंशियल डिटेल्स का सहारा लिया गया.
पैसों के इस भारी गड़बड़झाले को सुलझाने के लिए ही सीबीआई के बाद ईडी भी मैदान में उतरी है. फिलहाल गौतम थापर का केस एक गुत्थी की तरह बन गया है. सीबीआई और ईडी एक सिरा सुलझाते हैं तो दूसरी उलझन सामने आ जाती है. देखते हैं कि कब तक ये उलझन सुलझ पाती है.