अच्छा कलाकार होना कुदरत का तोहफा है. चुनिंदा लोगों को मिलता है. कुछेक लोग ही कुदरत के तोहफों से नवाज़े जाते हैं.
अच्छा इंसान होना मानवीय जीवन की सर्वोच्च अचीवमेंट हैं. कुछ विरले ही तमाम ज़िंदगी सेल्फलेस बने रह पाते हैं. दूसरों को ख़ुशी देने के लिए एक्स्ट्रा कोशिश करते हैं.
और कुछ लोग इन दोनों गुणों का कॉम्बिनेशन होते हैं. दुर्लभतम श्रेणी के. महान कलाकार और उतने ही महान इंसान. सफलता के घमंड से कोसो दूर. सीधे, सच्चे, सादगी से भरे.
गुरदास मान इस तीसरी श्रेणी में आते हैं.

इस नोट पर 500 लिखा है लेकिन ये बेशकीमती है.
सीधे किस्से पर ले चलते हैं. दो दोस्त हैं. मनोज गर्ग-मुश्ताक़ अली. कतई जिगरी. बिल्कुल जय-वीरू जैसे. अपने फ्रेंड सर्कल में अक्सर जय-वीरू के नाम से पुकारे भी जाते हैं. चंडीगढ़ के पास पंचकूला में रहते हैं. 17 जुलाई 2015 का दिन. ईद थी उस रोज़. मनोज किसी काम से मुंबई में थे. वहां से उसी दिन वापसी की फ्लाइट थी. एयरपोर्ट पर प्लेन तक ले जाने वाली शटल बस में सवार मनोज ने अचानक देखा कि सामने से गुरदास मान साहब चले आ रहे हैं. वो फनकार जिसे सुन-सुन कर बच्चे से जवान हो गए. जिनके गीतों को पागलों की तरह रट लिया था. ज़िंदगी में जो कुछेक सपनीली सी तमन्नाएं होती हैं, उनमें से एक थी कभी मान साहब के रूबरू होना. आज किस्मत कुछ ज़्यादा ही मेहरबान थी. बिना किसी कोशिश के ज़िंदगी की सबसे बड़ी आरज़ू पूरी हो रही थी. मनोज लपक के जा पहुंचे उनके पास.

सादगी की मिसाल गुरदास मान, अपने पंखे मनोज गर्ग के साथ.
जैसे ही मनोज ने मान साहब के पैर छूने चाहे, उन्होंने मनोज को गले लगा लिया. बातें होने लगी. अचानक मनोज को याद आया कि ये सपना उनका अकेले का कभी नहीं था. इस सपने में मुश्ताक़ की भी उतनी ही शिरक़त थी. लेकिन किस्मत की सितमज़रीफी से मुश्ताक़ उस वक़्त वहां मौजूद नहीं था. अब क्या करें! अपनी सबसे बड़ी तमन्ना पूरी होते वक़्त अपने यार की गैरमौजूदगी मनोज को बेतहाशा खल रही थी.
उन्होंने दूध की प्यास छाछ से बुझाने का फैसला किया. मान साहब से कहा कि मेरा दोस्त मुश्ताक़ भी आपका घनघोर पंखा है. आप उससे बात कर लेंगे तो उसे अच्छा लगेगा. उन्होंने हामी भर दी. तुरंत मनोज ने मुश्ताक़ को फ़ोन मिलाया. लेकिन हाय रे किस्मत! मुश्ताक़ उस वक़्त नमाज़ पढ़ रहे थे. फोन कहां से उठाते! इधर मनोज उत्कंठा से बेकाबू हुए जा रहे थे. जब काफी कोशिशों के बाद भी फोन पर संपर्क नहीं हो सका, तो मनोज प्लान बी लेकर आए. उन्होंने मान साहब से कहा कि वो मनोज के लिए एक संदेश रिकॉर्ड कर दें. भलमनसाहत के जीते-जागते वजूद उस आदमी ने तुरंत हां भर दी. मनोज ने फ़ोन में उनका संदेश रिकॉर्ड कर लिया. मान साहब ने अपने नामालूम फैन के लिए कहा,
"मुश्ताक़ अली, ईद बहुत बहुत मुबारक हो. खैर मुबारक हो. रब्ब तुहानु चढ़दी कला विच रखे. इज्ज़त, मान ते सत्कार बख्शे. बिछड़ियां नु मिलावे ईद, ईद मुबारक."वो वीडियो:
एक फनकार की अपने मुरीद के लिए ये बेमिसाल मुहब्बत थी. ये जो थी सो थी, असल प्यार तो बाद में लुटाया गया. गुरदास मान साहब ने अपनी जेब से 500 का एक नोट निकाला. उसपर लिखा 'ईद मुबारक', अपने ऑटोग्राफ किए और नोट मनोज को थमा दिया. कहा, ये मुश्ताक़ की ईदी है. मनोज हैरान-परेशान. उसे उस वक़्त अपने सामने खड़ा आदमी किसी फ़रिश्ते सा नज़र आ रहा था. कौन करता है अपने किसी अदने से फैन की ख़ुशी के लिए इतना कुछ? लेकिन गुरदास मान तो किसी और ही मिट्टी से बने शख्स का नाम है. अपने फैन्स को अपना भगवान कहनेवाला ये शख्स अपनी बात को जीता है.

ये वो बेशकीमती तोहफा है जो मुश्ताक़-मनोज को तमाम ज़िंदगी याद रहेगा.
खैर, किस्सा यहीं ख़त्म नहीं हुआ. मनोज ने मुश्ताक़ को मेसेज डाल दिया था कि मान साहब के साथ प्लेन में हूं, मिलना है तो चंडीगढ़ एयरपोर्ट पहुंच. अब मुश्ताक़ के हाथ-पैर फूल गए. दीवानगी दिखाने की बारी अब उनकी थी. उन्होंने आननफानन में गाड़ी निकाली. दो दोस्तों को साथ लिया और उड़कर पहुंचे एयरपोर्ट. वहां मान साहब उनसे पूरी गर्मजोशी से मिले. बहुत देर तक रुककर बातें की. एक बार भी नहीं कहा कि उन्हें देर हो रही है वगैरह. अपने प्रशंसकों को उन्होंने तृप्त करके भेजा.

मुश्ताक़ अली के चेहरे की चमक काफी है, और क्या कहें!
उस मुलाक़ात को मनोज-मुश्ताक़ अपनी ज़िंदगी का हासिल मानते हैं. 500 का नोट मोदी जी की नोटबंदी में शहीद हो गया. उसकी कोई वैल्यू न रही. लेकिन मुश्ताक़ के लिए वो आज भी बेशकीमती धरोहर है. करोड़ों का है. किसी हाल में किसी को नहीं देने वाले. उसे उन्होंने फ्रेम कराके घर में टांग लिया है.

गुरदास मान अपने एक बेहद मशहूर गीत में कहते हैं,
'की बनूं दुनिया दा, सच्चे पातशाह वाहगुरू जाणे'उनसे कहने का मन होता है कि जनाब, उस दुनिया दा कुछ अच्छा ही बनेगा जिसमें आप जैसे लोग बसते हैं.
ढेर सारा प्यार!
कोक स्टूडियो को गुलज़ार करते गुरदास मान साहब: