गुजरात के अहमदाबाद में 12 जून 2025 को हुए एयर इंडिया प्लेन क्रैश में पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की मृत्यु हो गई. वो एयर इंडिया की उड़ान संख्या AI171 से अपनी पत्नी और बेटी से मिलने लंदन जा रहे थे. लेकिन टेकऑफ के कुछ ही सेकंड बाद विमान क्रैश हो गया. इस हादसे में विमान में सवार सभी 230 यात्रियों में से 229 की मौत हो गई है. उनकी लिस्ट में 12वां नाम विजय रुपाणी का था.
कभी अमित शाह का सहारा बने विजय रुपाणी की कहानी
संघ की परवरिश, अमित शाह का समर्थन, कैसे चढ़ा विजय रुपाणी का राजनीतिक करियर?

बतौर मुख्यमंत्री, विजय रुपाणी की कहानी साल 2016 से शुरू हुई. इसी साल अगस्त के महीने में वे पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. दरअसल पाटीदार आंदोलन, निकाय चुनावों में बीजेपी का खराब प्रदर्शन और फिर गुजरात के ऊना से निकली दलित आंदोलन की चिंगारी ने तत्कालीन आनंदीबेन पटेल की सरकार को पूरी तरह से कटघरे में खड़ा कर दिया था. आनंदीबेन पर ये भी इल्जाम लगा कि उन्होंने अपने बेटी-दामाद को राजनीतिक रसूख के जरिए मदद पहुंचाई.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली चले गए थे. गुजरात में विपक्ष हमलावर था. हालात बिगड़ते देख खुद प्रधानमंत्री मोदी ने आनंदीबेन पटेल से मुलाकात कर लंबी बात की. उस वक्त गांधीनगर की सियासी फिजा में इस बात की चर्चा थी कि आनंदीबेन पटेल पद छोड़ने को राजी हो गई हैं, लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि अगले मुख्यमंत्री को चुनने में वरिष्ठता का ध्यान रखा जाए. हालांकि आनंदीबेन पटेल ने जिस तरह से फेसबुक पर अपने इस्तीफे का एलान किया था, वो शीर्ष नेतृत्व को पसंद नहीं आया. ऐसे में आनंदीबेन पटेल की शर्त को दरकिनार कर दिया गया, जो उन्होंने इस्तीफे पर राजी होने के वक्त रखी थी.

तो 1 अगस्त 2016 को आनंदी बेन पटेल ने फेसबुक पर अपने इस्तीफे की पेशकश की. 3 अगस्त को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया. इसके बाद फिर शुरू हुई गुजरात के अगले मुख्यमंत्री की तलाश.
इसके लिए केंद्र से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और गुजरात बीजेपी के कई नेता 5 अगस्त को पूरे दिन बैठक करते रहे. गहमागहमी के बीच गुजरात में बीजेपी के एक और कद्दावर नेता नितिन पटेल का नाम चर्चा में आया. उनको आनंदीबेन पटेल का करीबी माना जाता था. कहा जाता है कि आनंदीबेन पटेल ने नितिन पटेल को तो वादा भी कर दिया था. इसीलिए वो कई टीवी चैनलों को इंटरव्यू भी दे रहे थे. उनके समर्थकों ने मिठाइयों का ऑर्डर भी दे दिया था. नितिन के गृहनगर में उत्सव भी शुरू हो गया था.
लेकिन रात होते-होते तस्वीर बदल गई. बैठक में असल में तय हुआ कि गुजरात के अगले मुख्यमंत्री विजय रुपाणी होंगे. घनश्याम ओझा और केशुभाई पटेल के बाद विजय रुपाणी गुजरात के तीसरे ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो राज्य के सौराष्ट्र के इलाके से ताल्लुक रखते थे. वो राजकोट वेस्ट सीट जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे. ये वही सीट थी, जहां से पहली बार नरेंद्र मोदी 2002 में चुनाव लड़े थे और जीतकर गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे.
बीजेपी की पार्लियामेंट्री कमेटी में इस बात को रखा गया कि जनादेश पाने के लिए मुख्यमंत्री चुनने की आजादी अमित शाह को ही दी जाए. किसी ने बात नहीं काटी. शाह ने विजय रुपाणी का नाम सामने रखा. सारे विधायक सहमत.
विजय रुपाणी का नाम जिस दिन घोषित किया जाना था, उस दिन शाम को पांच बजे अमित शाह ने पार्टी के वरिष्ठों की बैठक बुलाई. ये वही जगह थी जहां अमित शाह और आनंदीबेन पटेल पहली बार मिले थे.

शाह ने कहा कि उनके पास पार्टी का बहुमत है और इसलिए वो विजय रुपाणी के नाम के साथ हैं. इस मुद्दे पर संगठन के महासचिव वी सतीश सामने आए और उन्होंने संघ नेताओं और नरेंद्र मोदी से बात की. पीएम मोदी ने साफ तौर पर कहा कि बीजेपी का बहुमत अमित शाह के पास है, इसलिए फैसला शाह का ही होगा. इसके बाद आनंदीबेन पटेल के पास कहने-सुनने को कुछ भी नहीं बचा और फैसले को मानना ही पड़ा.
इस फैसले से नितिन पटेल भी अचकचा गए थे. इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में नितिन पटेल ने कहा था,
"मुझे नहीं पता कि मैं मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना. ये उनसे पूछिए जो फैसले लेते हैं."
इधर विजय रुपाणी की कहानियां भी चलीं. उनको ये विरासत यूं ही नहीं मिली थी. इसके पीछे उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव और सौराष्ट्र की सीट से चुनाव जीतने के साथ ही अमित शाह से नजदीकी का भी हाथ था. सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में जब कोर्ट के आदेश के बाद अमित शाह राज्य से बहिष्कार झेल रहे थे, तब वो दिल्ली में विजय रुपाणी के फिरोज शाह रोड स्थित बंगले पर ही रहते थे, जो रुपाणी को बतौर राज्यसभा सांसद मिला हुआ था. गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के पीछे एक वजह विजय रुपाणी का जैन समुदाय से ताल्लुक रखना भी था, जिसे राज्य सरकार ने हाल ही में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया था.
जब खबरों में विजय रुपाणी का अगले सीएम की तरह नाम लिखा गया, तो उनकी प्रोफ़ाइल छपी. इन खबरों में एक देश का नाम था - बर्मा. दरअसल, विजय रुपाणी के पिता का नाम रमणीक लाल रुपाणी है. वे कारोबार के सिलसिले में म्यांमार की राजधानी रंगून (अब यांगून के नाम से इसे जाना जाता है) चले गए थे. वहीं पर 2 अगस्त 1956 में विजय रुपाणी का जन्म हुआ.
विजय अपने सात भाई बहनों में सबसे छोटे थे. अचानक से बर्मा में राजनैतिक अस्थिरता शुरू हो गई. हालात इतने खराब हो गए कि वहां रहने वाले भारतीय एक-एक करके अपने देश लौटने लगे. रमणीक लाल भी उनमें से एक थे. विजय के जन्म के कुछ ही महीने के बाद रमणीक लाल भारत लौट आए. राजकोट आकर उन्होंने बॉल बीयरिंग का कारोबार शुरू किया.
भाइयों ने तो कारोबार में पिता की मदद करनी शुरू की, लेकिन विजय रुपाणी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के कार्यकर्ता बन गए. धर्मेंद्र सिंह जी आर्ट्स कॉलेज से बीए करने के दौरान ही रुपाणी स्टूडेंट पॉलिटिक्स में एक्टिव हो गए. बीए करने के बाद उन्होंने वकालत की डिग्री हासिल की. इस दौरान गुजरात में 70 के दशक में नवनिर्माण आंदोलन शुरू हो गया. विजय रुपाणी इस आंदोलन में शामिल हो गए. जब जय प्रकाश नारायण ने आंदोलन की शुरुआत की तो विजय रुपाणी उन शुरुआती छात्र नेताओं में से एक थे, जो इस आंदोलन में शामिल हुए. जब इमरजेंसी लगी तो भुज और भावनगर की जेलों में उन्होंने एक साल का वक्त बिताया.
1987 का वक्त विजय रुपाणी की सियासी पारी के लिए बड़ा साल था. उस साल म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का चुनाव हुआ. विजय रुपाणी चुनावी मैदान में उतरे और जीत गए. वे राजकोट सिविक बॉडी के कॉर्पोरेटर चुने गए थे. बाद में पार्टी ने उन्हें शहर अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद विजय रुपाणी सियासत की राह पर जब आगे बढ़े, तो फिर बढ़ते ही रहे.
1988 से 1996 के बीच विजय रुपाणी राजकोट कॉर्पोरेशन स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन रहे. 1996-97 में रुपाणी राजकोट के चेयरमैन चुने गए. केशुभाई पटेल की सरकार में उनको उस 20 सूत्रीय समिति का इन-चार्ज बना दिया गया, जिसके जिम्मे गुजरात विकास का खाका खींचना था. इसी दौरान सौराष्ट्र इलाके में राजकोट को औद्योगिक सेंटर के तौर पर विकसित करने के लिए विजय रुपाणी को पार्टी और पार्टी के बाहर खासी सराहना मिली. वो लगातार चार बार बीजेपी की राज्य इकाई के महासचिव भी रहे. इसके अलावा राज्य में पार्टी के प्रवक्ता भी थे.

साल 2006 में बीजेपी ने विजय रुपाणी को राज्यसभा का सदस्य बना दिया. वे वाटर रिसोर्सेज, खाना, पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन, पब्लिक अंडरटेकिंग से जुड़ी कई संसदीय समितियों का हिस्सा रहे.
2010 में बीजेपी ने राजकोट म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का चुनाव फिर से जीत लिया. ये लगातार उनकी दूसरी जीत थी, जिसने कांग्रेस के हौसले तोड़ दिए थे और इसमें विजय रुपाणी की भूमिका की सराहना हुई. 2012 में जब रुपाणी का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ तो सरकार की ओर से 2013 में उन्हें गुजरात म्यूनिसिपल फाइनेंस बोर्ड का चेयरमैन बना दिया गया. बाद में सरकार ने उन्हें स्टेट टूरिज्म कॉर्पोरेशन का चेयरमैन बनाया. इस दौरान रुपाणी ने 'खुशबू गुजरात की' कैंपेन लॉन्च किया था, जिसे खूब सराहा गया था.

संघ की शाखा से निकलकर गुजरात की सत्ता तक पहुंचने वाले इस नेता को 22 दिसंबर 2017 को दूसरी बार गुजरात का मुख्यमंंत्री चुना गया. इस पूरे चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बाद पूरी बीजेपी की नज़र किसी एक शख्स पर थी, तो वो विजय रुपाणी ही थे. शुरुआती ऊहापोह के बीच विजय रुपाणी ने मुख्यमंत्री बनकर एक बार फिर साबित कर दिया कि गुजरात का पूरा दारोमदार अमित शाह पर ही था, जिनके सहारे वे अपना आगे का सियासी करियर तय करने वाले थे.
लेकिन, 13 सितंबर 2021 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. साल भर बाद होने वाले आसन्न चुनावों से पहले इस इस्तीफे के गहरे राजनीतिक निहितार्थ थे. इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ विजय के इस्तीफे का एक बड़ा कारण कोविड संकट के वक्त बेहतर प्रशासन डिलीवर नहीं कर पाना था. इसके अलावा ब्यूरोक्रेसी ने सूबे की कमान अपने हाथों में ले ली थी जिससे विधायक खासे नाराज़ थे.

साल 2017 में रुपाणी के सीएम रहते जब चुनाव हुए थे तो बीजेपी 100 का नम्बर भी क्रॉस नहीं कर पाई थी. इसके अलावा गुजरात के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के साथ संबंधों में आई कटुता भी उनके इस्तीफे का बड़ा कारण बनी. इसके बाद नए मुख्यमंत्री की तलाश शुरू हुई जो मौजूदा सीएम भूपेन्द्र पटेल पर जाकर रुकी. विजय रुपाणी तभी से पार्टी के कामों में मसरूफ़ थे. 2024 के नवंबर-दिसंबर में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वे केन्द्रीय पर्यवेक्षक की भूमिका में भी शामिल थे.
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