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क्या है स्पेशल वरशिप प्रोविजन ऐक्ट, जिससे मुस्लिम विवादित मस्ज़िद हिंदुओं को नहीं दे पा रहे?

आज फिर इसकी बातें हो रही हैं, और पहल एक मुस्लिम संगठन ने की है!

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अयोध्या विवाद में अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. और तीनों पक्षों को सुनवाई पूरी करने के लिए 18 अक्टूबर तक का समय दिया गया है.
साल 1992. केंद्र में नारसिम्हा राव की सरकार थी.
उसी साल के अंतिम महीने ने भारत की राजनीति, सांप्रदायिकता और उसके सोशल फैब्रिक की दशा और दिशा दोनों बदल दीं. इस ख़ास महीने की सबसे बड़ी ख़बर, उस साल की, बल्कि कहें तो दशक की सबसे बड़ी ख़बर बन गई थी – बाबरी मस्ज़िद विध्वंस.
आइए अब एक साल पहले चलते हैं. साल 1991. केंद्र में इस वक्त भी नारसिम्हा राव की सरकार. शायद सरकार को एक साल पहले ही ऐसा कुछ होने की आशंका हो गई थी. क्यूंकि बाबरी मस्ज़िद विध्वंस एक दिन की बात नहीं थी. इसके लिए जिस माहौल, भीड़ और संसाधन की ज़रूरत थी, वो एक दिन की बात हो भी नहीं सकती थी.
और विवाद अयोध्या को लेकर ही नहीं था. काशी और मथुरा जैसे कई धार्मिक स्थल थे जिनकी स्थिति कमोबेश अयोध्या सरीखी थी. लेकिन बाकी जगहों कि स्थिति अयोध्या सरीखी न हो इसको लेकर बाबरी मस्ज़िद विध्वंस से एक साल पहले ही एक कानून पास हुआ. प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991. इस कानून में कही गई बात का सार केवल एक लाइन का है, लेकिन इस एक लाइन ने ढेरों विवादों को एक साथ समाप्त कर दिया -
15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज, और भविष्य में, भी उसी का रहेगा.
मने यदि भारत की आज़ादी के दिन एक जगह पर मन्दिर था तो उसपर मुस्लिम अपना दावा नहीं कर सकते चाहे आज़ादी से पहले वहां पर मस्ज़िद ही क्यूं न रहा हो. ठीक इसी तरह यदि 15 अगस्त, 1947 को एक जगह पर मस्ज़िद था तो वहां पर आज भी मस्ज़िद की ही दावेदारी मानी जाएगी. चाहे उससे एक साल पहले या एक महीने पहले ही वहां पर मन्दिर रहा हो.
और सबसे महत्वपूर्ण बात – चाहे ये कानून अयोध्या विवाद के चलते आया था लेकिन इस पूरे एक्ट में से अयोध्या वाले विवाद को अलग रखा गया. इसका कारण ये था कि अयोध्या विवाद देश की राजनीति से निकलकर जनमानस तक पहुंच गया था. अयोध्या विवाद को और जगह फैलने से रोकने के लिए इसका निर्माण किया गया था.
ज्ञानवापी मस्ज़िद और काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्ज़िद और काशी विश्वनाथ मंदिर

यूं इस कानून के आते ही अयोध्या के अलावा अन्य सभी स्थानों पर स्वामित्व विवाद वाले मसले समाप्त हो गए. (15 अगस्त, 1947 से पहले वाले).
ये नियम मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर लागू नहीं होंगे. ये नियम कश्मीर पर भी लागू नहीं होंगे. वहां के लिए लागू होने वाले किसी भी कानून को विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया जाना होता है. सभी प्रावधान 11 जुलाई 1991 को लागू माने गए. चूंकि इस कानून के विरुद्ध जाना अपराध कि श्रेणी में आता है इसलिए दंडनीय है जिसके चलते तीन साल तक की सज़ा और/या जुर्माना भी हो सकता है.


# हम आज क्यूं बात कर रहे हैं?
मज़े की बात है कि इस एक्ट का विरोध एक मुस्लिम संगठन ने किया है. वो भी ये कहते हुए कि इससे तो चाहकर भी हम वो स्थल हिंदुओं को नहीं दे पाएंगे जो हम देना चाहते हैं.
शिया सेंट्रल बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के मुताबिक -
‘स्पेशल वरशिप प्रोविजन एक्ट’ के तहत, चूंकि विवादित मस्ज़िदें सुरक्षित की जा चुकी हैं और चूंकि उन्हें हिंदुओं को सौंपने में मुश्किल होगी, इसलिए इसे खत्म किया जाय.
वसीम रिज़वी ने यह भी मांग की है कि एक स्पेशल कमेटी बनाकर अदालत की निगरानी में विवादित मस्ज़िदों के बारे में ठीक-ठीक जानकारी इकट्ठा की जाए और अगर यह सिद्ध हो जाता है कि वे हिंदुओं के धर्म स्थलों को तोड़कर बनाए गए हैं तो उन्हें हिंदुओं को वापस किया जाए.


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