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स्पेस में एस्ट्रोनॉट को गंभीर बीमारी हो जाए तो NASA इलाज कैसे करता है?

स्पेस में बीमारी का पहला जवाब होता है- ऑनबोर्ड मेडिकल सिस्टम. ISS पर एक मिनी हॉस्पिटल जैसा सेटअप है, जिसे Health Maintenance System कहते हैं.

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अगर बीमारी ऐसी हो कि ISS की मेडिकल किट और CMO के बस की बात न हो, तो NASA का अगला कदम होता है- इमरजेंसी इवैक्युएशन. (फोटो- NASA Library)

स्पेस. वो जगह जहां इंसान की पहुंच आसान नहीं. जहां ऑक्सीजन नहीं, गुरुत्वाकर्षण नहीं. और अगर कुछ गड़बड़ हो जाए तो तुरंत डॉक्टर को बुलाने का ऑप्शन भी नहीं! अंतरिक्ष में इंसान को भेजना अपने आप में एक करिश्मा है. लेकिन अगर वहां कोई एस्ट्रोनॉट बीमार पड़ जाए, तो क्या होता है? क्या NASA के पास कोई जादू की छड़ी है? या फिर कोई सुपरहीरो स्टाइल में रेस्क्यू मिशन चलता है? चलिए, इस सवाल का जवाब ढूंढते हैं, और समझते हैं कि NASA का रेस्क्यू सिस्टम कैसे काम करता है.

स्पेस में बीमारी: ऐसा होता है क्या?

सबसे पहले तो ये समझ लीजिए कि अंतरिक्ष कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है. वहां माइक्रोग्रैविटी, रेडिएशन, और तमाम तरह की चुनौतियां हैं. जो हम यहां धरती पर बैठकर फील भी नहीं कर सकते. एस्ट्रोनॉट्स को भेजने से पहले NASA उनकी ऐसी ट्रेनिंग करवाता है कि वे सुपरह्यूमन लगने लगें. फिर भी, इंसान तो इंसान है ना! सिरदर्द, उल्टी, चोट, या फिर कोई गंभीर बीमारी जैसे हार्ट अटैक या अपेंडिसाइटिस हो सकती है. और अगर ऐसा हुआ, तो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) जैसी जगह पर, जो धरती से 250 मील ऊपर है, इलाज का सिस्टम बिल्कुल अलग है.

पहला कदम: ISS पर ही इलाज

स्पेस में बीमारी का पहला जवाब होता है- ऑनबोर्ड मेडिकल सिस्टम. ISS पर एक मिनी हॉस्पिटल जैसा सेटअप है, जिसे Health Maintenance System कहते हैं. नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसमें मेडिकल किट होती है. जिसमें ढेर सारी दवाइयां, इंजेक्शन, बैंडेज और बेसिक डायग्नोस्टिक टूल्स जैसे अल्ट्रासाउंड, ब्लड प्रेशर मॉनिटर, यहां तक कि डेंटल किट भी शामिल है. मतलब, अगर किसी को दांत में दर्द हुआ, तो उसे निकालने का जुगाड़ भी है. इतना ही नहीं, हर एस्ट्रोनॉट को 40 घंटे की मेडिकल ट्रेनिंग दी जाती है. इसमें वे सीखते हैं कि कैसे इंजेक्शन देना है, या छोटी-मोटी चोट का इलाज करना है.

An ISS astronaut performing an ultrasound scan on Canadian astronaut Chris Hadfield on a previous mission
ISS एस्ट्रोनॉट अल्ट्रासाउंड मशीन जैसे उपकरणों का उपयोग करना जानते हैं.

बात यहीं खत्म नहीं होती. ISS पर एक या दो क्रू मेंबर्स को Crew Medical Officer (CMO) बनाया जाता है, जो थोड़ा ज्यादा ट्रेंड होते हैं. ये लोग बेसिक डॉक्टर की तरह काम करते हैं. लेकिन अगर बीमारी गंभीर हो, जैसे कोई कार्डियक इश्यू या फ्रैक्चर, तो क्या? तब आता है NASA का असली गेम.

टेलीमेडिसिन: धरती से डॉक्टर की सलाह

अब ये तो समझ लीजिए कि ISS पर कोई सुपर-स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं बैठा होता. लेकिन NASA के पास ह्यूस्टन में मिशन कंट्रोल सेंटर है, जहां 24/7 फ्लाइट सर्जन्स (स्पेस मेडिसिन में स्पेशल ट्रेनिंग वाले डॉक्टर्स) मौजूद रहते हैं. नासा की रिपोर्ट बताती है कि ये लोग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एस्ट्रोनॉट्स से बात करते हैं. मान लीजिए किसी को सीने में दर्द हुआ, तो क्रू मेंबर उसका ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट, या अल्ट्रासाउंड डेटा मिशन कंट्रोल को भेजता है. वहां डॉक्टर्स तुरंत डायग्नोसिस करते हैं और बताते हैं कि क्या करना है. ऑक्सीजन देना है, कोई दवा देनी है, या फिर हालत को स्टेबल करना है.

लेकिन अगर बीमारी ऐसी हो कि ISS की मेडिकल किट और CMO के बस की बात न हो, तो NASA का अगला कदम होता है- इमरजेंसी इवैक्युएशन. और यहीं से शुरू होता है रेस्क्यू मिशन का असली ड्रामा!

रेस्क्यू मिशन: पृथ्वी पर वापसी

अब अगर हालत गंभीर है, जैसे कि हार्ट अटैक, स्ट्रोक, या कोई ऐसी चोट जिसके लिए सर्जरी चाहिए, तो ISS पर इलाज मुमकिन नहीं है. ऐसे में NASA का प्लान है- क्रू रिटर्न व्हीकल. ISS पर हमेशा एक या दो स्पेसक्राफ्ट (जैसे रूस का सोयुज या SpaceX का क्रू ड्रैगन) डॉक किए रहते हैं. ये यान एक तरह से "लाइफबोट" की तरह काम करते हैं. अगर इमरजेंसी हुई, तो बीमार एस्ट्रोनॉट को इनमें बैठाकर पृथ्वी पर भेजा जाता है.

Expedition 69 NASA astronaut Frank Rubio is seen resting and talking with NASA ISS Program Manager Joel Montalbano, kneeling left, NASA Flight Surgeon Josef Schmid, red hat, and NASA Chief of the Astronaut Office Joe Acaba, outside the Soyuz MS-23 spacecraft after he landed with Roscosmos cosmonauts Sergey Prokopyev and Dmitri Petelin in a remote area near the town of Zhezkazgan, Kazakhstan on Wednesday, Sept. 27, 2023.
ISS पर हमेशा एक या दो स्पेसक्राफ्ट (जैसे रूस का सोयुज या SpaceX का क्रू ड्रैगन) डॉक किए रहते हैं.
कैसे होता है ये?

सबसे पहले बीमार एस्ट्रोनॉट को स्टेबल करने की कोशिश होती है. ऑक्सीजन, IV फ्लूइड्स, या दवाइयां दी जाती हैं. क्रू मेंबर्स मिलकर उसे स्पेसक्राफ्ट तक ले जाते हैं. आमतौर पर बीमार एस्ट्रोनॉट के साथ एक या दो क्रू मेंबर्स जाते हैं, जो उसकी देखभाल करते हैं. स्पेसक्राफ्ट को undock करने में कुछ घंटे लगते हैं. सोयुज की लैंडिंग आमतौर पर कजाकिस्तान में होती है, जबकि क्रू ड्रैगन फ्लोरिडा के तट पर समुद्र में उतरता है. लैंडिंग साइट पर मेडिकल टीमें, हेलिकॉप्टर और तुरंत अस्पताल ले जाने की व्यवस्था पहले से तैयार रहती है.

समय कितना लगता है?

ISS से पृथ्वी तक पहुंचने में 3-6 घंटे लगते हैं. यानी अगर सब कुछ स्मूथ रहा, तो कुछ ही घंटों में एस्ट्रोनॉट को अस्पताल पहुंचाया जा सकता है. लेकिन ये इतना आसान भी नहीं. री-एंट्री के दौरान 4-5G का प्रेशर होता है, जो एक बीमार इंसान के लिए खतरनाक हो सकता है.

चुनौतियां: स्पेस में मेडिकल ड्रामा

स्पेस में मेडिकल इमरजेंसी का मतलब है ढेर सारी चुनौतियां. ये इस प्रकार हैं:

माइक्रोग्रैविटी: यहां सर्जरी करना लगभग नामुमकिन है. QTAssist की रिपोर्ट के मुताबिक स्पेस में खून और तरल पदार्थ हवा में तैरने लगते हैं, जो क्रू और उपकरणों के लिए खतरा बन सकता है. NASA इस दिशा में काम कर रहा है, जैसे कि MIRA सर्जिकल सिस्टम, जो रोबोटिक सर्जरी को स्पेस में मुमकिन बना सकता है.

सीमित संसाधन: ISS पर अस्पताल जैसी सुविधाएं नहीं हैं. जटिल सर्जरी या ICU जैसी जरूरतें पूरी नहीं हो सकतीं.

मनोवैज्ञानिक दबाव: बीमारी से क्रू का मनोबल टूट सकता है. NASA इसके लिए बिहेवियरल हेल्थ सपोर्ट देता है. जिसमें क्रू मेंबर्स को एक-दूसरे की मदद करने की ट्रेनिंग दी जाती है.

पहले कभी हुआ है ऐसा?

हालांकि, ISS पर अभी तक कोई गंभीर मेडिकल इमरजेंसी नहीं हुई. लेकिन इतिहास में कुछ उदाहरण हैं. एनबीसी न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक 1985 में, सोवियत एस्ट्रोनॉट व्लादिमीर वास्युतिन को Salyut 7 मिशन के दौरान प्रोस्टेट इन्फेक्शन हुआ, और उन्हें आपातकाल में पृथ्वी पर लाया गया. इसके अलावा, 2024 में एक NASA एस्ट्रोनॉट को 8 महीने के मिशन के बाद लैंडिंग के तुरंत बाद अस्पताल ले जाना पड़ा. हालांकि उनकी हालत स्थिर थी.

भविष्य का प्लान: मंगल और उससे आगे

अब बात करें भविष्य की. अगर मंगल मिशन की बात करें, तो वहां इमरजेंसी में पृथ्वी पर वापसी मुमकिन नहीं होगी. क्योंकि यात्रा में 6-9 महीने लगते हैं. ऐसे में NASA स्वायत्त मेडिकल सिस्टम पर काम कर रहा है. BBC की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें शामिल हैं:

AI-बेस्ड डायग्नोस्टिक टूल्स: जो बीमारी का पता लगाएंगे.

रोबोटिक सर्जरी: जैसे Robonaut 2, जो ISS पर मौजूद है और भविष्य में सर्जरी कर सकता है.

लंबी शेल्फ-लाइफ वाली दवाइयां: जो सालों तक खराब न हों.

Robonaut 2
ये उम्मी है कि रोबोनॉट 2 को अंतरिक्ष में सर्जरी करने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है, बिल्कुल रोबोट सर्जन की तरह.

तो दोस्तो, बात साफ है- NASA का सिस्टम इतना टाइट है कि स्पेस में बीमारी किसी जादू-टोने से नहीं, बल्कि साइंस और प्लानिंग से डील की जाती है. लेकिन मजेदार बात ये है कि स्पेस में डॉक्टर बनना कोई आसान काम नहीं है. माइक्रोग्रैविटी में सर्जरी करना वैसा ही है जैसे पानी में तैरते हुए ऑपरेशन करना! फिर भी, NASA का मंत्र वैसा ही है कि, ‘प्लान फॉर द वर्स्ट, होप फॉर द बेस्ट’.

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