चार साल पहले 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया गया था. 11 दिसंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस फैसले पर मुहर लगा दी. इसी के साथ अनुच्छेद 370 अब इतिहास का विषय बन गया है. अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के लिए कई विशेष प्रावधान थे, जो 2019 के बाद से खत्म हो गए. लेकिन अनुच्छेद 371 अब भी लागू है. इसके तहत देश के अलग-अलग राज्यों में विशेष प्रावधान किए गए हैं.
अनुच्छेद 370 का किस्सा खत्म, लेकिन अनुच्छेद 371 के तहत कहां-कहां विशेष प्रावधान हैं?
जब अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया गया था तब विपक्ष ने सरकार से इस बाबत सवाल किया था कि क्या सरकार अनुच्छेद 371 को भी खत्म करने जा रही है. गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में जवाब देते हुए कहा था कि सरकार का ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है.

जब अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी किया गया था, तब विपक्ष ने सरकार से इस बाबत सवाल भी किया था कि क्या सरकार अनुच्छेद 371 को भी खत्म करने जा रही है. गृह मंत्री अमित शाह ने तब लोकसभा में जवाब देते हुए कहा था कि सरकार का ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है. तो एक नज़र अनुच्छेद 371 पर डालते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि इसके तहत किस राज्य को क्या विशेष लाभ मिल रहा है.
अनुच्छेद 371, महाराष्ट्र और गुजरातमहाराष्ट्र में 'विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र' और गुजरात में 'सौराष्ट्र और कच्छ' के लिए 'अलग डेवलपमेंट बोर्ड' बनाने की 'विशेष जिम्मेदारी' राज्यों के राज्यपाल को दी गई है. इसमें राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वो इन क्षेत्रों के लिए फंड आवंटित करें. साथ ही सरकार की ये भी जिम्मेदारी है कि वो सुनिश्चित करे कि इन क्षेत्रों के लोगों को तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए सुविधाएं दें और रोजगार के पर्याप्त अवसर मिले.
1962 में संविधान में 13वां संशोधन किया गया था. इसे 1960 में केंद्र और नागा पीपुल्स कन्वेंशन के बीच 16 सूत्री समझौते के बाद जोड़ा गया. इसके साथ 1963 में नागालैंड बना. इसके तहत संसद, नगा समाज और उनकी सामाजिक प्रथाओं, कानूनी प्रक्रिओं और प्रशासन के संबंध में कानून नहीं बना सकती. नागरिक और आपराधिक न्याय में नगा प्रथागत कानून के अनुसार निर्णय लिया जा सकता है. और राज्य विधानसभा की सहमति के बिना भूमि का स्वामित्व और हस्तांतरण के मामले में भी संसद को कानून बनाने अधिकार नहीं है.
अनुच्छेद 371B, असम1969 में संविधान में 22वां संशोधन किया गया. इसके तहत राष्ट्रपति राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों की एक समिति के गठन और उनके कामों का प्रावधान कर सकते हैं.
अनुच्छेद 371C, मणिपुर1971 में संविधान में 27वां संशोधन किया गया. इसके तहत राष्ट्रपति विधानसभा में पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों की एक समिति के गठन का प्रावधान कर सकते हैं. और इसके कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी सौंप सकते हैं.
1973 में संविधान में 32वां संशोधन किया गया. जिसकी जगह बाद में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन एक्ट, 2014 ने ले ली. इसके तहत, राष्ट्रपति इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि राज्य के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों को रोज़गार और शिक्षा में समान अवसर मिलेंगे. इसके लिए राज्य सरकार अलग से सिविल सर्विसेज़ में पोस्ट बना सकती है और राज्य सरकार के अधीन सेवाओं में भी पोस्ट बना सकती है.
अनुच्छेद 371Eसंसद के कानून द्वारा आंध्र प्रदेश में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की अनुमति देता है. लेकिन इस भाग के अन्य प्रावधानों के अर्थ में यह कोई 'विशेष प्रावधान' नहीं है.
अनुच्छेद 371F, सिक्किम1975 में संविधान में 36वां संशोधन किया गया. इसके तहत, सिक्किम विधानसभा के सदस्य लोकसभा में सिक्किम के प्रतिनिधि का चुनाव कर सकते हैं. सिक्किम की आबादी के विभिन्न वर्गों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए, संसद विधानसभा में सीटों की संख्या तय कर सकती है, जो केवल उन्हीं वर्गों के उम्मीदवारों द्वारा भरी जा सकती हैं. इसके साथ ही सिक्किम को राज्य बनाने वाले क्षेत्रों में पहले के सभी कानून जारी रहेंगे, और किसी भी अनुकूलन या संशोधन पर किसी भी अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता.
अनुच्छेद 371G, मिजोरम1986 में संविधान में 53वां संशोधन किया गया. यह प्रावधान बताता है कि देश की संसद, 'मिज़ोरम की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, मिज़ो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, नागरिक और आपराधिक न्याय के प्रशासन, भूमि के स्वामित्व और हस्तांतरण पर कानून नहीं बना सकती. ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक विधानसभा द्वारा कानून पास न किया जाए.
अनुच्छेद 371H, अरुणाचल प्रदेश1986 में 55वां संविधान संशोधन किया गया. इसके तहत, कानून और व्यवस्था के संबंध में राज्य के राज्यपाल की विशेष जिम्मेदारी है कि वे मंत्रिपरिषद से परामर्श करने के बाद की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपना व्यक्तिगत निर्णय ले सकते हैं. यदि कोई ऐसा मामला आता है जिसमें राज्यपाल को अपने व्यक्तिगत निर्णय के मुताबिक काम करना जरूरी है तो उनका निर्णय ही अंतिम होगा. उस पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा.
अनुच्छेद 371J, कर्नाटक (98वां संशोधन अधिनियम, 2012)साल 2012 में संविधान में 98वां संशोधन किया गया. इस अनुच्छेद के तहत हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है. इसके कामकाज की रिपोर्ट हर साल विधानसभा को दी जाएगी. इस क्षेत्र में डेवलपमेंट के लिए धन का बाकी राज्य के समान आवंटन होगा. और इस क्षेत्र के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में समान अवसर और सुविधाएं होंगी. हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लोगों के लिए शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान किया जा सकता है. बशर्ते व्यक्ति का जन्म इसी क्षेत्र में हुआ हो या फिर यहीं का रहने वाला हो.