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ऋषि सुनक को इन नर्सों का दुख क्यों नहीं दिखता?

प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कुर्सी को क्या ख़तरा है?

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हड़ताल करतीं ब्रिटेन की नर्सें (फोटो-AP)

अस्पताल जाओ तो नर्स नहीं. दफ़्तर जाओ तो अधिकारी नहीं. स्कूल में टीचर नहीं. चिट्ठी-तोहफे घर पर रखे पुराने हुए जा रहे हैं. इन दिनों एक पूरा मुल्क़ इस समस्या से जूझ रहा है. इतनी हड़ताल है कि एक पूरा मुल्क़ ठप पड़ गया है. आज की कहानी हड़ताल संकट से परेशान ब्रिटेन की है. ये हो क्यों रहा है और इससे प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कुर्सी को क्या ख़तरा है? आज के शो में हम इसी पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

ब्रिटेन में इन दिनों हड़तालों का दौर चल रहा है. ब्रिटिश अख़बार गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, इस महीने 07 तारीख़ को पहली हड़ताल शुरू हुई थी. 07 से 31 दिसंबर के बीच एक भी दिन ऐसा नहीं है, जब किसी ना किसी सेक्टर के लोग हड़ताल पर ना जा रहे हों.

- 14 दिसंबर को रेल वर्कर्स ने 48 घंटों तक हड़ताल के बाद वापसी की. उसके अगले ही दिन एक लाख से अधिक नर्सेज ने काम बंद कर दिया. रॉयल कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग (RCN) यूके का सबसे बड़ा नर्सिंग यूनियन है. इसकी स्थापना 1916 में हुई थी. RCN ने अपने इतिहास में पहली बार हड़ताल के पक्ष में वोटिंग की. यूनियन में शामिल नर्सों ने 15 और 20 दिसंबर को काम बंद करने का फ़ैसला लिया. ऐसा नहीं है कि हर कोई हड़ताल पर जाएगा. अस्पतालों में आपातकालीन सेवाएं जारी रहेंगी. हालांकि, हेल्थ सेक्टर में हर चीज आपातकालीन ही होती हैं या समय पर ध्यान ना दिए जाने पर गंभीर हो सकती हैं. इसलिए, जाहिर तौर पर आम जनजीवन इससे प्रभावित होगा.

- RCN नर्सेज़ की सैलरी में 19 प्रतिशत की मांग कर रहा है. सरकार 14 पर्सेंट पर राज़ी है. वो इससे ऊपर जाने के लिए तैयार नहीं हैं.

- नर्सेज़ का कहना है कि कम वेतन के चलते लोग इस सेक्टर को छोड़कर जा रहे हैं. इसके कारण बाकियों पर काम का दबाव बढ़ रहा है. इस बढ़ते दबाव के बरक्स वेतन नहीं दिया जा रहा है.

- रेल, मेरीटाइम एंड ट्रांसपोर्ट (RMT) सबसे बड़ी रेल यूनियन है. उसने 13, 14, 16 और 17 दिसंबर को हड़ताल का ऐलान किया है. वे जनवरी में भी कुछ दिन काम पर नहीं करेंगे. रेल वर्कर्स बेहतर वेतन और जॉब गारंटी की मांग कर रहे हैं. यूके में महंगाई दर पिछले 41 बरसों में सबसे अधिक हुई है. वर्कर्स का कहना है कि उन्हें उसी अनुपात में वेतन भी दिया जाए.

इन सबके अलावा, और भी सेक्टर्स के कर्मचारी वेतन और बेहतर वर्किंग कंडीशन को लेकर काम बंद कर रहे हैं. इसका असर क्रिसमस और न्यू ईयर के दौरान सबसे अधिक दिखेगा. हड़ताल के कारण लोगों का सफ़र करना भी मुश्किल होगा. इसके अलावा, सप्लाई लाइन्स भी प्रभावित होंगी.

जानकारों का कहना है कि कुछ समय तक तो सरकार इसकी भरपाई कर लेगी. लेकिन ये अगर लंबे समय तक चलता रहा तो ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ सकती है.

अब हड़ताल पर जाने वाले ट्रेड यूनियंस के बारे में जान लीजिए.

ब्रिटेन में काम रोकने या हड़ताल रोकने का काम आमतौर पर ट्रेड यूनियंस करते हैं. ट्रेड यूनियंस वे होते हैं, जो रोजगार देने वाले से बातचीत या समझौता करने में कामगारों की मदद करते हैं. कैसी बातचीत? बातचीत ऐसी कि काम करने वाले को उचित वेतन मिले, काम करने के लिए अच्छा माहौल बने, काम के घंटे तय हों और इसके अलावा दूसरे ज़रूरी फायदे भी मिलें. कुल जमा बात ये कि कोई कंपनी मालिक अपने कर्मचारी का शोषण ना कर सके. ट्रेड यूनियंस कर्मचारियों और मेनेजमेंट के बीच कड़ी का काम करते हैं. इसी कड़ी से सब बातें होती हैं. अगर दोनों के बीच किसी मांग को लेकर सहमति नहीं बन पाती, तब यूनियंस हड़ताल का ऐलान कर सकते हैं. कर्मचारी ट्रेड यूनियन की सदस्यता के बदले एक तय फ़ीस देते हैं. और, वे जब चाहें तब यूनियन की सदस्यता छोड़ सकते हैं.

पिछले कुछ समय में ब्रिटेन में ट्रेड यूनियंस का चलन कम हुआ है. आंकड़े बताते हैं कि 2021 में ब्रिटेन में हर 100 में से 25 कर्मचारी किसी ना किसी ट्रेड यूनियन के सदस्य थे. इनमें पब्लिक सेक्टर के 50 प्रतिशत और प्राइवेट सेक्टर के सिर्फ 13 प्रतिशत कर्मचारी थे. कुल सदस्यों की संख्या लगभग 64 लाख थी. अगर इस आंकड़े की तुलना 1979 से की जाए तो बदलाव साफ-साफ समझ आता है. 1979 में ब्रिटेन में यूनियन में शामिल वर्कर्स की संख्या 01 करोड़ 32 लाख के पार थी. जबकि उस समय ब्रिटेन की जनसंख्या आज की तुलना में काफी कम थी.

ट्रेड यूनियंस की शुरुआत 18वीं शताब्दी में यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में औद्योगिक क्रांति के दौर में हुई थी. 19वीं सदी तक वे बेहद कम वक्त के लिए ही सक्रिय थे. उस वक्त कम सक्रियता के पीछे सरकार का दबाव अहम वजह थी. लेकिन वक्त के साथ धीरे-धीरे इन यूनियंस का ट्रेंड बढ़ता गया.

आपने ट्रेड यूनियंस को समझा, अब ये समझते हैं कि ब्रिटेन में हड़ताल करने को लेकर कानून क्या कहता है?

- कानून के मुताबिक, हड़ताल तभी हो सकती है जब ट्रेड यूनियन के ज़्यादातर सदस्य किसी एक बात पर सहमत हों. इसके लिए यूनियंस में वोट करवाए जाते हैं. वोट के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाता है. यदि कर्मचारी हड़ताल करने के लिए सहमत होते हैं, तो कम से कम 14 दिन पहले इसकी जानकारी कंपनी को देनी होती है.

- अगर बिना बताए यूनियन ने हड़ताल घोषित कर दी तो कंपनी कोर्ट में जा सकती है. वहां से स्टे ऑर्डर लिया जा सकता है. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 में ट्रेड यूनियन वालों ने ब्रिटिश एयरवेज़ के ख़िलाफ़ हड़ताल शुरू की थी. लेकिन नियमों का पालन नहीं किया गया. ब्रिटिश एयरवेज कोर्ट चली गई. तब कोर्ट ने हड़ताल पर स्टे लगा दिया था.

- स्टाफ़्स हड़ताल पर जाने के दौरान वेतन का दावा नहीं कर सकते हैं.

- किसी को भी हड़ताल में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. इसलिए कोई भी कर्मचारी हड़ताल के बीच में काम कर सकता है.

- ब्रिटेन की ऋषि सुनक सरकार हड़ताल के अधिकार को दबाने के लिए नए कानून लाने पर विचार कर रही है.

अगला सवाल ये कि क्या हर कोई हड़ताल कर सकता है?

कुछ प्रफ़ेशन के लोगों को काम बंद करने की इजाज़त नहीं है.
मसलन, पुलिसवाले हड़ताल में हिस्सा नहीं ले सकते. हॉस्पिटल स्टाफ़्स तभी हड़ताल पर जा सकते हैं, जब उनके काम बंद करने से किसी मरीज की जान को ख़तरा ना हो.

अब ये जान लेते हैं कि हाल की हड़ताल से ऋषि सुनक की सरकार पर दबाव क्यों बढ़ रहा है?

इसकी दो बड़ी वजहें हैं.

- पहली, सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी के कई नेताओं ने सरकार से कर्मचारियों की मांगों पर ध्यान देने के लिए कहा है. सुनक पर आरोप लग रहे हैं कि वे भी पिछले प्रधानमंत्रियों की तरह हैं. वे इस मुद्दे पर काम करना ही नहीं चाहते. अगर पार्टी के अंदर पल रहा अंसतोष बढ़ा तो उनके ख़िलाफ़ भी माहौल तैयार हो सकता है. ऐसे में सुनक का कुर्सी पर बने रहना आसान नहीं रह जाएगा.

- दूसरी वजह विपक्ष से जुड़ी है. ब्रिटेन की मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी का उदय ट्रेड यूनियंस के आंदोलन से हुआ है.  फिलहाल, 12 ट्रेड यूनियंस लेबर पार्टी से जुड़े हुए हैं. लेबर पार्टी को मिलने वाली फ़ंडिंग का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा ट्रेड यूनियंस से आता है. विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा. ये भी तय है कि हड़ताल का मुद्दा किसी ना किसी रूप में ब्रिटेन की बड़ी आबादी को प्रभावित करता है. इसका असर आने वाले चुनावों पर पड़ सकता है.

ऋषि सुनक के लिए आगे की राह कतई आसान नहीं होने वाली है. वे इसे संभालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उनका पोलिटिकल करियर इस कोशिश की सफलता पर निर्भर करता है.

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