साल 2003, इराक में अमेरिका ने जंग शुरू की. इस जंग में अमेरिका ने भारत से मदद मांगी. लेकिन भारत ने अमेरिका के साथ इराक में लड़ने से मना कर दिया था. क्यों मना किया था भारत ने, इसके पीछे एक किस्सा है. और ये किस्सा बताया है लल्लनटॉप के साथ बातचीत में इंडियन आर्मी के पूर्व चीफ, जनरल निर्मल चंद्र विज (रिटायर्ड) ने. 2003 में जनरल विज ही आर्मी चीफ थे. कहा गया कि सेना के मना करने के बाद ही भारत ने इराक युद्ध में हिस्सा नहीं लिया.
इराक वॉर में जाने से भारतीय सेना ने क्यों मना किया था? पूर्व आर्मी चीफ ने वजह बताई
USA ने 2003 में Weapons of Mass Destruction (WMD) खोजने के लिए Iraq पर हमला किया. तब India को भी इस युद्ध में शामिल होने को कहा गया. लेकिन भारत ने इसमें हिस्सा नहीं लिया.

जनरल विज के साथ बातचीत के दौरान एक कहावत का जिक्र हुआ. कहावत कुछ ऐसी थी कि 'अगर आपकी कड़ाही में भी तेल हो, तो अमेरिका वहां झंडा गाड़ने आ जाएगा.' इराक पर हमला किया गया था वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन (WMD) ढ़ूंढने के नाम पर. लेकिन असल इरादा था तेल के कुओं पर कब्जा. इराक वॉर के दौरान जनरल विज और भारत सरकार ने उस समय क्या स्टैंड लिया था? इस सवाल के जवाब में जनरल विज कहते हैं
जिस समय ये लड़ाई शुरू हुई, तब मैं चीफ था. उस समय सरकार ने इस वॉर को लेकर हम सबसे ओपिनियन पूछा. अमेरिका चाहता था कि लड़ाई वो लड़ेंगे. लेकिन उसके बाद का जो फेज़ था, इराक को स्टेबल करने का, वो भारतीय सेना संभाले.
जनरल विज कहते हैं कि उस समय रणनीतिक समझ या नेतृत्व का कहना था कि हमें इस जंग में शामिल होना चाहिए. इससे क्षेत्र में भारत का प्रभाव बढ़ेगा. साथ ही भारत का यूएन की सिक्योरिटी काउंसिल में परमानेंट सीट के लिए जो दावा है, वो भी मजबूत होगा. एक और दिलचस्प बात जो जनरल विज बताते हैं, वो ये है कि उस समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश ने भारत के तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से कहा कि अगर भारत इसमें हिस्सा लेगा तो वो पाकिस्तान पर प्रेशर डालेंगे. और इससे पाकिस्तान में भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी.
ये तो हुई राजनीतिक नेतृत्व की बात. लेकिन सेना का भी इस मुद्दे पर अपना एक नजरिया था. जनरल विज कहते हैं
सेना का नजरिया एकदम साफ था. उस समय जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ अपने चरम पर थी. 3 हजार के करीब आतंकी जम्मू-कश्मीर में थे. हम इससे निपटने में लगे थे. दूसरा कारण था कि हम तब LoC पर फेंसिंग करने में व्यस्त थे. तीसरा कारण था कि हम एक स्वतंत्र देश थे तो किसी दूसरे देश के झंडे तले नहीं लड़ना चाहते थे. और चौथा कारण ये था कि हम पहले से तैनात अपने सैनिकों को मूव कर के अस्थिर नहीं करना चाहते थे.
जनरल विज ने सेना के इस नजरिए को मद्देनजर रखते हुए कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की मीटिंग से पहले एक चिट्ठी प्रधानमंत्री और एक चिट्ठी रक्षामंत्री को भेजी. जनरल ने चिट्ठी में लिखा कि ये सेना का नजरिया है. बाकी लीडरशिप जैसा हुक्म देगी, सेना उसका पालन करेगी.
इसके बाद CCS की मीटिंग हुई जिसमें जनरल विज ने सेना का नजरिया रखा. जब मीटिंग खत्म हुई तो प्रधानमंत्री ने बस एक लाइन में कहा कि हम इस पर चिंतन करेंगे. उसके 1-2 महीने बाद ये फैसला हुआ कि भारत इराक वॉर में हिस्सा नहीं लेगा. जनरल विज के मुताबिक ये कहना तो मुश्किल है कि भारत ने इराक वॉर में क्यों हिस्सा नहीं लिया. ये कहना कि आर्मी के कहने पर नहीं लिया पूरी तरह सही नहीं होगा. लेकिन भारतीय सेना ने जो सही था, वही बात सरकार को बताई.
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