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वो राक्षस, जिसने विष्णु की दुश्मनी में अपने शहर का नाम बदल दिया

ये शहर अब भी है.

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फोटो - thelallantop

हिंदू धरम के पुराणों में एक से एक बंपर राक्षसों का जिक्र है. इनमें से कोई बैकुंठ में बैठे विष्णु पर खौराया रहता था, तो कोई ब्रह्मा से पंगा ले लेता था. वैसे सबसे ज्यादा फटे में इंद्र रहिते थे. पता है क्यों? आधे से ज्यादा राक्षस त्रिदेवों से वरदान लेकर इंद्र की कुर्सी पर ही चढ़ाई करते थे. फिर इंद्र भगे-भगे घूमते थे. वैसे एक बात बताओ. उस राक्षस के बारे में जानते है, जो विष्णु से सबसे ज्यादा नफरत करता था? इत्ती नफरत, जित्ती कोई उधार लेकर भागने वाले से भी नहीं करता. उसका नाम था हिरण्यकश्यप. इस आदमी का अनुराग कश्यप से कोई लेना-देना नहीं है. हम नारद पुराण और विष्णु पुराण की बात कर रहे हैं.

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हिरण्यकश्यप ने अपने शहर का नाम ऐसा रख दिया था, जिसे सुनकर कोई भी धार्मिक आदमी फायर हो जाए. उसके शहर की जनता भी उसके जैसा ही सोचने लगी, इसलिए उसने शहर का नाम 'हरि-द्रोही' रखा था. यानी जो भगवान से द्रोह करता हो, जो विष्णु के अगेंस्ट हो. बाद में इस नाम को इतना घिसा गया कि ये हरदोई हो गया. ये जगह यूपी में है, जहां उसके किले की धूल-मिट्टी अब भी मौजूद है. अब वहां कॉलेज चलता है.

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और पता है, इस शहर में वो जगह भी है, जहां हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश की थी. अब ये मत कहना कि ये वाली कहानी नहीं पता है. होली मनाते हो न हर साल. वो इसी कांड के बाद से तो मनाई जाने लगी थी. होलिका जल गई थी और प्रह्लाद बच गया था.

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नारद पुराण में लिक्खा है कि हिरण्यकश्यप को इतना घमंड था कि वो खुद को दुनिया में बेस्ट मानता था. भगवान से भी बेस्ट. उसे लगता था कि लोगों को भगवान की पूजा करने के बजाय उसकी पूजा करनी चाहिए. जनता से ये बात मनवाने के लिए वो बीच-बीच में कई योजनाएं लाता था. आज-कल जैसे संविधान में बदलाव किए जाते हैं न, वैसे ही वो नए-नए बिल पास करता रहता था. और उसके जमाने में तो लोकसभा और राज्यसभा वाला लोचा भी नहीं था. वो जो कह देता था, वही होता था.

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विष्णु पुराण के हिसाब से हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा को खुश कर लिया था. कई साल तपस्या की थी उसने. आना पड़ा ब्रह्मा को और जो उसने मांगा, वो देना पड़ा. हिरण्यकश्यप ने बड़ी टिपिकल चीजें मांगी थीं. उसे ऐसा वरदान मिला, जिससे उसे न तो इंसान मार सकता था, न जानवर. वो न दिन में मरता और न रात में. न घर के अंदर और न घर के बाहर. ऐसी ही दो-चार और चीजें और मांग ली थीं. इतना सब मिलने के बाद उसे लगने लगा कि अब तो उसे कोई नहीं मार सकता. लेकिन विष्णु तो ठहरे विष्णु. जब एक साथ बैठे सभी राक्षसों के बीच से अमृत बचा लाए तो हिरण्यकश्यप तो फिर भी वरदान का प्रोडक्ट था.

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हिरण्यकश्यप हर दूसरे दिन अपने लड़के प्रह्लाद को फरिया देता था. प्रहलाद विष्णु की भक्ति करता था और इसी बात से हिरण्यकश्यप को मिर्ची लगती थी. इसी चक्कर में उसकी बहन होलिका भी कुर्बान हो चुकी थी. एक दिन तो हद्द हो गई. हिरण्यकश्यप ने एक खंबा गरम करवाया और प्रह्लाद से कहा कि इसे गले लगाओ. उस दिन विष्णु से नहीं रहा गया. आ गए अपने भक्त को बचाने. हिरण्यकश्यप के पास स्पेशल वरदान था, इसलिए उसे मारने के लिए विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया. नृसिंह अवतार देखते ही हिरण्यकश्यप डंडे पर लगे झंडे जैसा फरफराने लगा. विष्णु ने शाम के वक्त आधे मनुष्य और आधे जानवर के रूप में उसके घर की देहरी पर ही उसका दी एंड कर दिया. बताओ, बेचारे का कोई वरदान काम नहीं आया.

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