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हाईजैकर पति, BHU से पढ़ाई... सुशीला कार्की कौन हैं? जिन्हें नेपाली Gen Z ने अंतरिम प्रधानमंत्री चुना

नेपाल में लोकतंत्र और न्याय की यात्रा की करीबी गवाह रहीं, Sushila Karki कौन हैं? उनके पति ने नेपाल से प्लेन हाईजैक क्यों किया, जिसे बिहार में लैंड कराया गया. कार्की को जेल क्यों जाना पड़ा और नेपाल की 'पंचायत व्यवस्था' से उनका का ताल्लुक है?

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सुशीला कार्की. (फाइल फोटो: AFP)

साल 1960. नेपाल (Nepal) में राजा महेंद्र ने बीपी कोइराला की सरकार को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया. साल 1961 में उन्होंने ‘पंचायत’ नाम की एक नई व्यवस्था का आगाज किया. नारा दिया गया-  एक राजा, एक भेष, एक भाषा. दरअसल, ये एक ‘पूर्ण राजतंत्र’ था. राजनीतिक पार्टियों पर पाबंदी लगा दी गई और सारे अधिकार राजा के पास चले गए. नेपाल को इससे उबरने में 30 साल का वक्त लगा. 1990 में नेपाली कांग्रेस और वामपंथी दलों ने मिलकर इस व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन शुरू किया. इसके बाद नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र लौटा. 

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नेपाल के इतिहास में 1960 से 1990 तक के समय को 'पंचायत शासन' कह सकते हैं. इस दौरान कई नेपाली हस्तियों को जेल में रहना पड़ा. 90 के दशक में विराटनगर जेल में बंद ऐसी ही एक महिला अपनी आने वाली एक किताब की पृष्ठभूमि रच रही थीं. पुस्तक का नाम था, 'कारा' यानी कि जेल. लोकतंत्र के विरूद्ध स्थापित एक व्यवस्था के दौरान अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों को जेल में बिताने वाली ये महिला, आगे चलकर नेपाल में खूब चर्चित हुईं. और जब साल 2025 के सितंबर महीने में नेपाल में Gen Z की अगुवाई में लोकतंत्र को फिर से परिभाषित करने की जरूरत पड़ी, तो उनका नाम फिर से इतिहास में दर्ज हुआ.

1997 से 2012 के बीच पैदा हुए लोग, जिनको Gen Z कहते हैं, 2025 में उनकी अधिकतम उम्र 30 साल हो सकती है, इसी साल में उस महिला की उम्र 73 साल है, जिनकी चर्चा ऊपर की गई, और जिनको Gen Z ने अपने प्रतिनिधी के तौर पर नेपाल के अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने पर सहमति जता दी है. नाम है- सुशीला कार्की.

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नेपाल, सोशल मीडिया बैन और भयंकर हिंसा

सितंबर, 2025. नेपाल में हिंसा जारी है. इस बीच वहां अंतरिम सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है. सरकार ने आंदोलनकारियों को रोकने की कोशिश में ‘गोली बंदूक’ का इस्तेमाल किया. कई युवा मारे गए. जवाब में प्रदर्शनकारियों ने भयंकर हिंसा का रुख अख्तियार किया. इतना भयंकर कि ये आंदोलन सवालों के घेरे में आ गया है. आलोचकों ने आशंका जताई है कि लोकतंत्र को कायम रखने की प्रक्रिया इस हद की हिंसा से होकर नहीं गुजर सकती. 

लेकिन नेपाली Gen Z ने लोकतंत्र को कायम रखने और नए सिरे से चुनाव कराने की जिम्मेदारी उस महिला को सौंपी है, जिनके जिम्मे कभी पूरे नेपाल की न्याय व्यवस्था थी. नेपाल एक बार फिर से उनसे न्याय की उम्मीद कर रहा है. लेकिन दुर्भाग्य से, न्यायपालिका से जुड़ा उनका पिछला कार्यकाल सुखद नहीं रहा.

साल 2016 में सुशीला कार्की नेपाली सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस बनीं. ये घटना ऐतिहासिक थी. क्योंकि नेपाल में ऐसा करने वाली वो पहली महिला बनीं और अब तक ऐसा करने वाली वो इकलौती महिला हैं. 

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वकालत से चीफ जस्टिस बनने तक का सफर

अपने करियर की शुरुआत उन्होंने टीचर की नौकरी से की थी. 1978 में नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद, 1979 में उन्होंने विराटनगर में अपनी वकालत शुरू की. इसके बाद वो वरिष्ठ अधिवक्ता बनीं. फिर उनको सुप्रीम कोर्ट में एड-हॉक जस्टिस नियुक्त किया गया. इसके बाद वो स्थाई जस्टिस बनीं. 

सुशीला कार्की ने सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए कई कड़े फैसले दिए. उनकी छवि एक सुधारवादी इंसान की बनी. 2012 में, उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों में एक मंत्री को जेल भेज दिया. इस तरह जय प्रकाश गुप्ता नेपाल में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने वाले पहले मंत्री बन गए.

2016 के अप्रैल महीने में उनको सुप्रीम कोर्ट का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया. और फिर उसी साल वो नेपाली सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस बनीं. लेकिन अगले साल, यानी 2017 में उनका समय मुश्किल साबित हुआ. उस समय सरकार का नेतृत्व कर रही नेपाली कांग्रेस ने अपनी संसदीय शक्ति का इस्तेमाल करके, उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया, जिसके कारण उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया गया. 

महाभियोग प्रस्ताव में उन पर पक्षपात करने और कार्यपालिका की शक्तियों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया, विशेष रूप से पुलिस प्रमुख की नियुक्ति से संबंधित विवाद में. हालांकि, जनता के दबाव के कारण, कार्की के खिलाफ महाभियोग को वापस ले लिया गया. लेकिन वो राजनीतिक भ्रष्टाचार से निराश थीं. सेवानिवृति के बाद भी वो इस मुद्दे पर काम करती रहीं.

Sushila Karki
4 अगस्त 2016- नेपाल के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल (तस्वीर में नहीं हैं) को नेपाली राष्ट्रपति बिद्या भंडारी (दाएं) द्वारा शपथ दिलाई जा रही है. तस्वीर में उपराष्ट्रपति नंद किशोर पुन (बीच में) और देश की मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की दिख रही हैं. (फाइल फोटो: AFP)
सुशीला कार्की पर लगे राजनीतिक भ्रष्टाचार के आरोप

लेकिन खुद सुशीला कार्की भी राजनीतिक भ्रष्टाचार के आरोपों से अछूती नहीं रहीं. आरोप लगे कि उन्होंने चीफ जस्टिस रहते हुए राजनीतिक दलों से जुड़े जजों की नियुक्ति पर जोर दिया. उन पर सवाल उठे. कार्की ने अपना बचाव किया और कहा,

एक बार जब वो न्यायाधीश बन जाएंगे, तो राजनीति से दूरी बना लेंगे. 

हालांकि, बाद में उन्होंने कुछ ऐसे मंत्रियों का पर्दाफाश किया, जिन्होंने कथित तौर पर उन पर अपने रिश्तेदारों को न्यायाधीशों के तौर पर नियुक्त करने के लिए दबाव डाला था.

राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्ति रद्द कर दी

एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए, एक बार सुशीला कार्की की अध्यक्षता वाली पीठ ने संवैधानिक भ्रष्टाचार निरोधक संस्था के प्रमुख के रूप में लोकमान सिंह कार्की की नियुक्ति को रद्द कर दिया था. ये नियुक्ति राष्ट्रपति रामबरन यादव, अंतरिम प्रधानमंत्री-सह-मुख्य न्यायाधीश खिलराज रेग्मी और सत्ताधारी चार प्रमुख दलों द्वारा की गई थी.

भारत कनेक्शन और हाईजैकर पति

एक फिर से वापस चलिए, नेपाल के ‘पंचायत शासन’ में. साल 1973. नेपाल में लोकतंत्र की वापसी के प्रयास किए जा रहे थे. जीपी कोइराला इसके लिए सशस्त्र संघर्ष कर रहे थे. उनको हथियार खरीदने के लिए पैसों की जरूरत थी. इसी साल जून महीने में नेपाल एयरलाइंस का एक विमान हाईजैक हो गया. ये विमान विराटनगर से काठमांडू सेंट्रल बैंक के लिए 40 लाख रुपये लेकर जा रहा था. उस प्लेन को बिहार के फारबिसगंज में लैंड करने को मजबूर किया गया. ये 40 लाख रुपये जीपी कोइराला को सौंप दिया गया. लोकतंत्र की वापसी हुई, तो कोइराला नेपाल के प्रधानमंत्री बनें, चार बार.

इस हाईजैक के पीछे नेपाली कांग्रेस से जुड़े चार लोगों का नाम सामने आया. इन्हीं में से एक थे, दुर्गा सुबेदी. 1990 में ‘पंचायत व्यवस्था’ के खत्म होने और लोकतंत्र की वापसी के बाद, सुशीला कार्की ने इसी दुर्गा सुबेदी को अपने विवाह के लिए चुना. सुबेदी कभी उनके शिक्षक हुआ करते थे. सुशीला एक बार उनके बारे में कहा कि सुबेदी उनके हर संकट और हर परिस्थिति के सबसे भरोसेमंद दोस्त और मार्गदर्शक हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुबेदी से उनकी मुलाकात बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में हुई थी.

सुशीला कार्की का BHU कनेक्शन

दरअसल, नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने से पहले, 1975 में उन्होंने वाराणसी के BHU से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की. 

इसी साल जुलाई महीने में, 'महामना मालवीय मिशन नेपाल' ने नेपाल स्थित दूतावास के सहयोग से BHU पूर्व छात्र सम्पर्क कार्यक्रम का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम में सुशीला कार्की ने अपने BHU के दिनों को याद किया. उन्होंने बताया कि उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोइराला की पत्नी सुशीला आमा से नृत्य सीखने और नेपाली कांग्रेस के नेता प्रदीप गिरि से राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला. कार्की ने बताया कि उन्हें एक बार BHU में पढ़ाने और पीएचडी करने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन वो अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकीं. उन्होंने कहा,

शायद मेरी नियति कुछ और ही थी. मुझे लगता है कि मेरा जज बनना तय था और इसीलिए मैं वहां पीएचडी नहीं कर सकी.

सुशीला कार्की की ‘नियति’ उन्हें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद तक लेकर गई. लेकिन इस बात का अंदाजा वो भी नहीं लगा सकीं कि ‘नियति’ उनको प्रधानमंत्री के पद तक लेकर जाएगी.

एक पलड़े पर यूनुस और दूसरे पर कार्की

कार्की का जन्म 1952 में नेपाल के शंकरपुर के एक परिवार में हुआ. सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी संतान हैं. अंतरिम प्रधानमंत्री के पद तक वो ऐसे वक्त में पहुंची हैं, जब भारत के पड़ोसी देशों की हालत ठीक नहीं है. बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन की घटना भी नेपाल से मिलती-जुलती है. वहां के अंतरिम सरकार के सलाहकार मोहम्मद यूनुस को भी नए सिरे से चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गई.

लोकतंत्र की इस ऐतिहासित यात्रा में, तराजू के एक पलड़े पर मोहम्मद यूनुस, तो दूसरे पलड़े पर सुशीला कार्की हैं. हालांकि, यूनुस का पलड़ा हल्का होता जान पड़ता है, क्योंकि उन पर चुनाव टालने के गंभीर आरोप लगे हैं. अब दुनिया की नजर सुशीला कार्की पर है.

विराटनगर के जेल में उन्होंने जो समय बिताया, उस अनुभव को उन्होंने ‘कारा’ नाम की पुस्तक में दर्ज किया, जो 2019 में प्रकाशित हुई. इससे पहले 2018 में 'न्याय' नाम से उनकी एक आत्मकथात्मक पुस्तक प्रकाशित हुई थी.

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सुशीला कार्की शपथ कब लेंगी?

10 सितंबर को Gen Z आंदोलनकारियों ने एक वर्चुअल मीटिंग बुलाई थी. इस ऑनलाइन मीटिंग में 5 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे, जिसमें प्रधानमंत्री के लिए उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा हुई. Gen Z की आवाज बन चुके, काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने कई बार संपर्क करने के बाद भी कोई जवाब नहीं दिया. प्रतिनिधि ने बताया कि जब उन्होंने कॉल नहीं उठाई तो चर्चा दूसरे नामों पर चली गई. 

रिपोर्ट के मुताबिक, सुशीला कार्की ने पहले कहा कि वो प्रधानमंत्री का पद तभी स्वीकार करेंगी, जब उन्हें एक हजार हस्ताक्षर के साथ लिखित समर्थन मिलेगा. खबर है कि उन्हें कुल 2500 से ज्यादा हस्ताक्षर मिले हैं. बालेन शाह ने भी एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए उनको समर्थन दिया है.

लेकिन, सुशीला कार्की का प्रधानमंत्री बनने का रास्ता अभी लंबा है. उन्होंने पीएम बनने का प्रस्ताव तो स्वीकार कर लिया है, लेकिन अब उन्हें सबसे पहले सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल से मिलना होगा और फिर राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल की मंजूरी भी लेनी होगी. इसके बाद वो प्रधानमंत्री पद की शपथ ले पाएंगी.

वीडियो: दुनियादारी: केपी ओली गए, नेपाल में सुशीला कार्की अब क्या करेंगी?

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