गुजरात इस वक्त दो वजहों से खबरों में है. एक नया सीएम. दूसरा दलित आंदोलन. कनफुस्की ये भी चल रही है कि दूसरा सीएम आने और आनंदीबन के जाने की जड़ में यही बढ़ता आंदोलन है. ऊना में चार दलितों को पीटने का वीडियो जब से वायरल हुआ. केंद्र और राज्य, बीजेपी की दोनों सरकारों की भयंकर फजीहत हुई. लेकिन यहां बात ऐसे कांड के विलेन की बाद में होगी. पहले दलित आंदोलन के स्टार की. जिग्नेश मेवानी. उम्र 35 साल. पेशे से वकील और इंट्रेस्ट से सोशल वर्कर. अभी गुजरात में बढ़ते जा रहे दलित मूवमेंट के हीरो यही हैं. इनकी धमक का एहसास करने के लिए बीते संडे वाली रैली का नोटिस लिया जाए. अहमदाबाद में हुई इस रैली में करीब 20 हजार लोग इकट्ठा हुए. और प्लीज, इनको 'वन नाइट स्टार' हार्दिक पटेल से कंपेयर मत करना. मीडिया अटेंडेस से रातोंरात अर्श और फिर अगले कुछ ही वक्त में फर्श पर आने वाले हार्दिक को रोल मॉडल बनाना भी नहीं चाहते जिग्नेश. उन्होंने हफ़पोस्ट को दिए इंटरव्यू में साफ साफ कहा:
"हमें हार्दिक पटेल जैसे लोग नहीं चाहिए. हमें ऐसे लोग चाहिए जो लगातार स्ट्रगल कर सकें."
दलितों के साथ भेदभाव, जिम्मेदार कौन?
जिग्नेश बताते हैं कि सबसे पहले तो समाज. समाज में अभी तक बराबरी की भावना नहीं आई है. फिर राजनीति. जो दलितों का इस्तेमाल सिर्फ सत्ता पाने के लिए करती है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने दलितों को ठगा. कुछ हफ्ते पहले कांग्रेस शासित कर्नाटक में दलितों को पीटा गया. बीजेपी शासित गुजरात और महाराष्ट्र में यही हुआ. नीतीश के बिहार में दलित पर पेशाब किया गया.
जिग्नेश ने फिगर बताया. कि 2014 में जबसे बीजेपी सत्ता में आई, दलितों के साथ हिंसा में 44 परसेंट की बढ़त हुई. 2014 में बीजेपी शासित चार स्टेट्स राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ में टोटल क्राइम का 30 परसेंट दलितों के साथ हुआ. वो कहते हैं कि बीजेपी की हिंदुत्व वाली आइडियोलॉजी में दलित कहीं फिट नहीं होते. हिंदुत्व पूरी तरह से दलितों के खिलाफ है.
कहा कि प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी जब दलित आइकन भीमराव अंबेडकर की बात अमेरिका के हाउस ऑफ कांग्रेस में करते हैं, तो यहां दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं करते. दलित परेशान हैं, गुस्से में हैं. हां, बेशक कुछ काम हुए. मंत्रियों की कैबिनेट में दलित बढ़ाए. स्मृति इरानी का डिमोशन किया, रोहित वेमुला केस की वजह से. मायावती पर भद्दा कमेंट करने वाले दयाशंकर सिंह को पार्टी से बाहर निकाला. लेकिन ये सारा एक्शन घटना होने के बाद लिया जाता है. पहले से क्यों नहीं इसकी व्यवस्था की जाती कि ऐसे जुर्म घटें. ऊना की घटना को इतने दिन हुए, लेकिन उस पर पीएम ने कुछ नहीं बोला. इतिहास में पहली बार है जब दलितों पर 'गौरक्षक', बजरंग दल या ABVP वाले साजिश के तहत एक के बाद एक ऐसे हमले कर रहे हैं. यहां अभी तक ये हाल है कि दलित गधा हांके वो ठीक है. लेकिन उसको घोड़े पर बैठे देखना गंवारा नहीं. ऊना में हुई घटना के बाद लोगों ने अपनी आवाज पहुंचाने के लिए सुसाइड करने के रास्ता निकाला. क्या इससे बुरा कुछ हो सकता है कि कोई जवान आदमी इतने भर के लिए जहर खाए.
कैसे निपटेंगे समस्या से?
जिग्नेश बताते हैं कि लड़ाई लंबी है. ये मूवमेंट सिर्फ सोशल या पॉलिटिकल नहीं है. बल्कि लोगों के अंदर से हीनभावना निकालनी है. उनको समझना होगा कि गंदगी साफ करने का ठेका उनका नहीं है. इसीलिए उनको चमड़ा उतारने या गटर साफ करने से तौबा करने को कहा जा रहा है. उनको समझना है कि उनकी रोजी रोटी का आखिरी साधन यही नहीं है. अहमदाबाद में बाहर से आकर कोई आदमी गोलगप्पा बेच सकता है. लेकिन यहां का दलित गटर में जाने को मजबूर क्यों है?

दूसरी चीज है जमीन के लिए संघर्ष. जिनके पास जमीन है, उनके पास सारी पावर है. सरकार से जमीन लेने के लिए दबाव बनाना है. अगर अंबानी को जमीन मिल सकती है तो हमें क्यों नहीं? अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने एक मार्च ऑर्गनाइज किया है.