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क्या है जुवेनाइल जस्टिस बिल जिसकी तारीफ़ विपक्षी पार्टियां भी कर रही

DM को बहुत अधिकार दे दिए गए हैं?

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अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट जिले की चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट की निगरानी करेंगे और चाइल्ड वेलफेयर के कामकाज की तिमाही समीक्षा करेंगे. (तस्वीर: पीटीआई)
लोकसभा ने 24 मार्च को जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन) अमेंडमेंट बिल 2021 को पास कर दिया है. बिल के पास होने से पहले सदन में बिल को लेकर विस्तार से चर्चा की गई, जिसमें कई सांसदों ने भाग लिया. सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के साथ ही विपक्षी पार्टियों ने इस बिल की तारीफ़ की और इसे बेहतर तरीके से अमल में लाए जाने की मांग की है. लोकसभा में महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स ने देश के 70 हज़ार से ज्यादा बाल संरक्षण गृहों का मुआयना किया गया. करीब 90 फीसद बाल संरक्षण गृह, एनजीओ द्वारा चलाए जाते हैं. जिनके ऑडिट में गंभीर कमियां देखी गईं. करीब 29 फीसद बाल गृह रजिस्टर ही नहीं किए गए थे. कई जगह पीने लायक पानी नहीं था. कई जगह शौचालय नहीं था. ऐसे में जुवेनाइल जस्टिस बिल में कई संशोधन किए गए हैं. सरकार का कहना है कि संशोधित बिल से बच्चों की सुरक्षा और मजबूत होगी. आइए विस्तार से जुवेनाइल जस्टिस बिल में हुए मुख्य संशोधनों के बारे में जानते हैं. गंभीर अपराध एक्ट के मुताबिक़ जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड उन बच्चों से पूछताछ कर सकता है जिनपर गंभीर अपराध के आरोप हैं. यहां गंभीर अपराध से मतलब उस जुर्म से है जिसके लिए 3 से 7 साल तक कैद की सजा है. लेकिन अब संशोधित बिल में कहा गया है कि गंभीर अपराधों में वे अपराध भी शामिल होंगे, जिनके लिए अधिकतम सजा 7 साल से अधिक की कैद है और न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है या सात साल से कम है. इसके अलावा बिल में यह प्रावधान है कि 3 से 7 साल कैद के साथ दंडनीय अपराध संज्ञेय होगा, यानी ऐसे क्राइम में गिरफ्तारी वारंट के बिना हो सकती थी और ये गैर-जमानती थे. लेकिन अब इसमें संशोधन किया गया कि इस तरह के अपराध गैर-संज्ञेय होंगे. यानी ऐसे मामलों में गिरफ्तारी के लिए वांरट जरूरी हो जाएगा. गोद लेना इसके तहत भारतीय और विदेशी मां-पिता अगर किसी बच्चे को गोद लेना चाहते हैं, तो अब कोर्ट के आदेश के बजाए डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, एडिशनल डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर गोद लेने के आदेश जारी करेंगे. अपील पहले था कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा गोद लेने के आदेश से व्यथित कोई आदमी 30 दिनों के भीतर डिविजनल कमिश्नर के सामने अपील दायर कर सकता है. और इस तरह की अपील को दायर करने की तारीख़ से 4 हफ्ते के भीतर मामले को निपटाया जाना चाहिए. चाइल्ड वेलफेयर कमिटी नए नियम के मुताबिक़ प्रदेशों को हर जिले में बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए एक या उससे अधिक चाइल्ड वेलफेयर कमेटी का गठन करना है. इसके सदस्य कैसे चुने जाएंगे? इसमें वे लोग ही चुने जाएंगे जो कम से कम सात साल से बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण के कामों में शामिल रहे हों. ये बाल मनोविज्ञान, मनोचिकित्सा, कानून या सोशल वर्क में डिग्री के साथ प्रैक्टिसिंग प्रोफेशनल हो सकते हैं. सदस्य का मानवाधिकार या बाल अधिकार के उल्लंघन का कोई रिकॉर्ड न हो, किसी नैतिक अपराध में दोषी न पाया गया हो, केंद्र या प्रदेश सरकार द्वारा सेवा से बर्खास्त न किया गया हो, किसी भी जिले में चाइल्ड केयर संस्थान के मैनेजमेंट का हिस्सा न हो आदि. डीएम को दी बड़ी जिम्मेदारी इसके साथ ही अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट जिले की चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट की निगरानी करेंगे और चाइल्ड वेलफेयर के कामकाज की तिमाही समीक्षा करेंगे. नए बिल के तहत सभी तरह के अपराध के चिल्ड्रन कोर्ट में रखने की कोशिश की जाने की बात कही गई है. संशोधनों को लेकर सरकार का कहना है कि अब मामलों का तेजी से निपटारा हो सकेगा और जवाबदेही तय की जा सकेगी. हालांकि संशोधनों की तारीफ़ की जा रही है, क्योंकि बच्चों के देखभाल और सुरक्षा पर अधिक जोर दिया गया है. वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि डीएम को बहुत अधिक जिम्मेदारी दे दिए गए है और डीएम पर पहले से ही बहुत जिम्मेदारियां रहती हैं. ऐसे में यह डीएम के लिए चुनौती भरा हो सकता है.