ये शो इच्छाधारी नाग-नागिनों के बारे में है जो 2018 में भी होते हैं. ये महानगरों में रहते हैं. टेक्नोलॉजी का पूरा उपभोग करते हैं. साइंस की बनाई हुई भौतिक दुनिया में रहते हैं लेकिन अलौकिक हैं. इस तरह के विरोधाभास में दर्शक खुद भी आ जाते हैं. 'दूध का कर्ज' (1990) और 'नगीना' (1986) जैसी कई फिल्मों को जब इन्हीं दर्शकों ने बचपन में देखा तो उन्हें पता चला कि बीन की धुन पर नाग डोलते हैं. लेकिन अब बड़े होने के बाद उनको और उनके बच्चों तक को पता है कि सांप के बाहरी कान नहीं होते. वो सुन नहीं सकता. बावजूद इसके वे नशे में है कि इच्छाधारी नाग-नागिन वाली कहानी में आगे क्या होगा?
इस व्यापक बहस में 'नागिन-3' सिर्फ एक शुरुआती बिंदु है. उसके अलावा भी ऐसे टीवी शोज़ की लंबी लाइन है. ये टीवी एंटरटेनमेंट का ऐसा कंटेंट है जिसे भारत के करोड़ों लोग रोज़ कंज्यूम कर रहे हैं और उन्हें जरा भी नहीं पता कि उनके व उनके परिवार की दिमागी सेहत के लिए ये कितने खतरनाक हैं. ये हमारे अंधविश्वास और धर्मांधता को बढ़ा रहे हैं. इनका इतना बुरा असर है बच्चों तक की सोच सदियों पीछे जा रही है. चरम ये है कि परिवार के परिवार अपनी जान दे रहे हैं.
कुछ ऐसे ही टीवी शोज़ रहे हैं जिन्होंने अपने कंटेंट से अंधविश्वास बढ़ाया.
1. नागिन 3 - नागिन जो औरत बन जाती है. बच्चे देखें तो मान लेंगे कि बरसों तपस्या करके इच्छाधारी नाग-नागिन बना जा सकता है. 2. कवच काली शक्तियों से - एकता कपूर का ही सीरियल. नाम के अनुरूप. कि काली शक्तियां होती हैं. 3. नज़र - स्टार प्लस का नया प्रोग्राम है. एक डायन के बारे में जो हनुमान चालीसा से डरती है. जिसके पैर उल्टे हैं. 4. ससुराल सिमर का - कलर्स के इस शो में अंधविश्वास, काले जादू और घरेलू हिंसा को बढ़ावा दिया गया. एक जगह तो लीड कैरेक्टर सिमर मक्खी बन जाती है.

ससुराल सिमर का.
5. दुर्गा - तरंग टीवी के इस शो में एक बच्चे पर काले जादू का इस्तेमाल दिखाया गया. 6. देवों के देव महादेव - लाइफ ओके के इस शो में दिखाया गया है कि हर सोमवार को शिवजी के दर्शन अवश्य करो इससे मनोकामना पूरी होती है. 7. गंगा - कलर्स के इस शो में एक छोटी बच्ची थी जो विधवा थी और सफेद साड़ी पहनती थी. एक मैच्योर विधवा की तरह "विधवा धर्म" का पालन करती थी. छोटी बच्चियों पर इस शो का बुरा असर पड़ा है. उनके मन में ये धारणा बनी कि विधवा औरतों को सफेद साड़ी पहननी चाहिए और जलेबी जैसी मिठाई वगैरह नहीं खानी चाहिए. शोक में रहना चाहिए.

गंगा.
8. मोहब्बतें - स्टार प्लस के इस धारावाहिक में एक कैरेक्टर शगुन के भूत को दिखाया गया है जो दूसरे किरदार इशिता को परेशान करता है. 9. कुबूल है - जीटीवी का ये शो भोपाल के एक शाही घराने और नवाब की कहानी थी. इस बेहद आधुनिक परिवेश वाले सीरियल में चुड़ैल, टोने-टोटके, काला जादू, बुरी आत्माएं ये सब दिखाया जाता था. 10. डर सबको लगता है - इसमें भूत-प्रेतों और अंधविश्वास की सब सीमाएं पार हो चुकी हैं.

डर सबको लगता है.
11. कुलस्वामिनी - स्टार परिवार के इस शो में ब्लैक मैजिक का यूज़ दिखाया गया. उसे प्रमोट किया गया. बाकी कंटेंट भी दकियानूसी है. 12. अद्भुत रहस्य - एपिक टीवी के इस सीरियल में ब्रह्मर्षि के कुछ शिष्य सुझाते हैं कि बीज मंत्र के पाठ से उन्होंने अपने रिश्तेदारों की गंभीर बीमारियां दूर होते देखी हैं. ये शो लोगों में अंधविश्वास को प्रोत्साहित करता है. 13. काला टीका - ज़ी अनमोल के इस शो ने अंधविश्वास को बढ़ावा दिया. ग्लैमराइज़ किया. कहीं-कहीं काले जादू को बहुत ब्यौरेवार ढंग से दिखाया.

काला टीका.
14. चक्रवर्ती सम्राट अशोक - इसमें बिंदुसार की रानी चारुमित्रा के काले जादू को कामयाब होते दिखाया गया.
जब भी ऐसी परिचर्चा होती है तो टीवी या फिल्म मनोरंजन से जुड़े लोग - प्रोड्यूसर, राइटर, डायरेक्टर - ये कहते हैं कि इस मनोरंजन का लोगों पर कोई असर नहीं होता. हालांकि ऐसे बहुत मनोवैज्ञानिक अध्ययन दिखाए जा सकते हैं जो ये पुष्ट करते हैं कि इस विजुअल मीडियम का बहुत अधिक असर होता है. और सबसे अधिक छोटे बच्चों पर होता है. टीवी शोज़ की ही बात करें तो इनका असर देखने में आया है.
#2013 में राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में एक परिवार को कथित तौर पर 'देवों का देव महादेव' और दूसरे धार्मिक कार्यक्रमों ने बहुत प्रभावित किया. बताया जाता है कि एक दिन उन्होंने ऐसे सीरियल देखे और शिव की आराधना में लग गए. जब शाम तक शिव नहीं आए तो उनसे मिलने के लिए और स्वर्ग जाने के लिए साइनाइड वाले लड्डू खा लिए. वीडियो भी बनाया. आठ लोगों के परिवार में से पांच मर गए.
#ताज़ा चर्चित मामला इसी साल दिल्ली का है जहां एक परिवार के 11 लोगों ने मोक्ष पाने के लिए आत्महत्या कर ली थी.
#एक वाकया 16 साल की साइंस स्टूडेंट लड़की का जानने में आया जिसने एक टीवी सीरियल देखकर मां से कहा कि वह पीरियड्स के दौरान मंदिर नहीं जाएगी और रसोई की किसी चीज के हाथ नहीं लगाएगी क्योंकि पाप लगता है और नरक जाना पड़ता है.
मीडिया विशेषज्ञ विनीत कुमार बताते हैं कि 'नागिन-3' उन्होंने पहली बार देखा तो बेचैन हो गए. वे इसे घिनौना शो भी कहते हैं क्योंकि बच्चे इसे देखें तो उन पर बुरा असर हो सकता है. उनके मुताबिक एक आदमी की जो न्यूनतम योग्यता होती है इंसान बने रहने की, ये सीरियल उस योग्यता को भी खत्म कर दे रहे हैं.
विनीत के मुताबिक, "ये सीरियल हम लोगों को नए सिरे से post-illiterate यानी उत्तर निरक्षर बना रहे हैं. ये शोज़ पढ़े लिखे लोगों के दिमाग को उसी तरह ललचा रहे हैं जैसे वो साक्षर न हो. हमारे देश की बड़ी आबादी के लिए ये सीरियल खलनायक का काम करते हैं. क्योंकि इतने बरसों में समाज व लोगों को पढ़ाने-लिखाने, उनकी सोच प्रोग्रेसिव बनाने और उन्हें आगे लाने के लिए जितनी भी कोशिशें की गई हैं, उन पर ये टीवी सीरियल्स पानी फेर दे रहे हैं. जैसे रिएलिटी शोज़ और टैलेंट शोज़ के आने के बाद गली-मुहल्लों में तबला-हार्मोनियम सिखाने वाले लोग बढ़ गए हैं, वैसे ही आप टीवी सीरियल में ब्लैक मैजिक दिखाते हो, अंधविश्वास दिखाते हो तो नुक्कड़-नुक्कड़ पर बैठे बाबा जो ऐसे जादू टोने की चीजें, कर्मकांड करते हैं उनका बाजार बहुत संगठित होता जाता है. इसका बहुत भारी नुकसान होता है. इससे सामाजिक रूप से हम लोग बहुत पीछे चले जाते हैं. इसका सबसे नकारात्मक पहलू ये है कि ये सिर्फ एंटरटेनमेंट का हिस्सा ही नहीं रह जाता है बल्कि हमारी ज़ाती जिंदगी पर भी असर करता है. ये सीरियल हमें डिप्रेशन में ले जाने का काम करते हैं."
क्या एंटरटेनमेंट वर्ल्ड के लोगों के दावे की तरह इन कार्यक्रमों या फिल्मों का लोगों पर कोई असर नहीं होता? इस पर विनीत कहते हैं, "आप देखिए कि सत्यमेव जयते जब आता था तो एक चैनल से उनका टाइअप था जो प्रोग्राम चलाता था कि लोगों पर शो का क्या असर हुआ है. जब बालिका वधू आता था तो बड़े इंग्लिश न्यूज़ चैनल्स समेत सारे चैनल ये पता करने राजस्थान दौड़ गए कि बालिका वधू दिखाए जाने के बाद बाल विवाह में कितनी कमी आई है. जब इतना गहरा यकीन टीवी सीरियल पर इन लोगों ने किया और माना कि प्रामाणिक मुद्दे पर ऐसे बदलाव आ सकते है, तो उसी तरह तांत्रिक-ओझा वाले सीरियल के नेगेटिव इफेक्ट भी होते ही होंगे."

विनीत कुमार. नागिन-3.
इंडियन टीवी इंडस्ट्री 2016 में 588 बिलियन (58,800 करोड़) रुपये से भी ज्यादा बड़े आकार वाली थी. ऑडिट कंपनी केपीएमजी और फिक्की की 2017 में आई एक रिपोर्ट ऐसा दावा करती है. उसी रिपोर्ट का अनुमान है कि साल 2021 तक भारतीय टीवी का आकार बढ़कर 1165 बिलियन (1,16,500 करोड़) रुपये से भी अधिक का हो जाएगा. यहीं पर सीधा समझ में आ जाता है कि टीवी के कंटेंट को बनाया उसी तरह जाता है जिससे मुनाफा ज्यादा से ज्यादा हो. ये कंटेंट बनाने में दबाव डालने वाली मार्केटिंग टीमों और प्रोड्यूसर्स को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दर्शकों के दिमाग पर और समाज की तर्कशीलता पर इसका कितना बुरा असर पड़ेगा. हमने ऐसे धार्मिक और अंधविश्वास भरे शोज़ के मेकर्स से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया. उसके बाद हमने अनुज कपूर से बात की जो सब टीवी के सीनियर एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट रहे हैं. टीवी के लिए 8000 घंटे का कंटेंट बनवा चुके अनुज का मानना है कि 'नागिन-3' जैसे शोज़ के रेटिंग में टॉप पर बने रहने का कारण ये नहीं है कि लोग अंधविश्वास देखना चाहते हैं, बल्कि ये है कि उसे बनाने वाली एकता कपूर एक कुशल कंटेंट क्रिएटर हैं. वे कोई भी कहानी अच्छे से प्रस्तुत करना जानती हैं.
अनुज के मुताबिक ऐसा नहीं है कि इन दकियानूसी कार्यक्रमों के उलट कोई अच्छी कहानियां नहीं है. वे कहते हैं, "कितनी ही अच्छी कहानियां हैं, लिट्रेचर है, हिंदी में, क्षेत्रीय भाषाओं में. जो बहुत रिच, पॉजिटिव और कंस्ट्रक्टिव है. जैसे प्रेमचंद जी की कहानियां हैं. मसलन, हमने शरद जोशी की कहानियों पर 'लापतागंज' चालू किया था सब टीवी पर. मैं विस्मृत हूं कि हमारी इन साहित्यिक धरोहरों का इस्तेमाल ब्रॉडकास्टर क्यों नहीं कर रहे. और बार बार एक जैसी चीजों को क्यों तवज्जो दे रहे हैं? कई लोग नए तरीके के शो बनाने और एक्सपेरिमेंट करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कई टीवी चैनल हैं जो चाहते होंगे कि थाली में हर तरह की चीजें परोसें इसलिए वैसा कंटेंट बना देते हैं."

अनुज कपूर. लापतागंज.
भारतीय शोज़ की तरह क्या इंटरनेशनल टीवी कंटेंट में भी ऐसा अंधविश्वास दिखता है? अमेरिकन टीवी या अन्य पॉपुलर टीवी/वेब सीरीज में से एक्सॉरसिज़्म यानी भूत-उतारना, अच्छी चुड़ैल, बुरी चुड़ैल, काला जादू जैसी चीजें गायब नहीं हैं. लेकिन वे हावी भी नहीं है. दूसरा, वहां के दर्शक इन चीजों पर यकीन नहीं करने लगते. तीसरा, वहां अगर ये सब दिखाया भी जाता है तो 2018 के संदर्भ में नहीं दिखाया जाता, बल्कि वो 18वीं सदी से शुरू से लेकर 19वीं सदी के मध्य तक की कहानियों में ही दिखाते हैं. जैसे एक सीरीज़ आती है 'द वर्स्ट विच' जो एक जादुई स्कूल में पढ़ने वाली कुछ बच्चियों के बारे में है जो जादूगरनियां हैं. 'लॉ एंड ऑर्डर' और 'क्रिमिनल माइंड्स' जैसे शोज़ हैं जिनमें धर्म और अंधविश्वास के रेफरेंस आते हैं और उनके बारे में लोग जागरूक होते हैं. 'गेम ऑफ थ्रोन्स' जैसे शो को भी लें जो शायद दुनिया का नंबर वन टीवी शो है तो उसमें उड़ने और आग फूंकने वाले ड्रैगन हैं, जादूगरनी है, चमत्कार हैं, भूत हैं. लोग इस शो की एंटरटेनमेंट वैल्यू के वशीभूत होते हैं लेकिन उसकी नकल नहीं कर सकते, प्रेरित नहीं हो सकते.
इस विषय से इतर बात करें तो अमेरिका व दूसरे मुल्कों की टीवी में ऐसा कंटेंट खूब है जो दर्शकों के लिए बहुत बुरा
है.
एक संस्था है - BCCC (Broadcasting Content Complaints Council). मतलब -'प्रसारण विषय-वस्तु शिकायत परिषद्.' ये भारत में टीवी कंटेंट पर निगरानी रखती है. दर्शकों को जिन टीवी कार्यक्रमों के कंंटेंट से आपत्ति होती है वे अपनी शिकायत इसे भेजते हैं. इस काउंसिल के पास सात-आठ साल में ऐसे सीरियल्स की काफी शिकायत आई हैं. ऐसे कंटेंट के चित्रण को लेकर इस काउंसिल ने 10 दिसंबर 2015 को एक एडवाइज़री जारी की थी ताकि ऐसे इनका ग्लैमराइज़ चित्रण रुके. लेकिन कोई असर नहीं हुआ. 29 मई 2017 को फिर से संशोधित एडवाइजरी जारी करनी पड़ी. फिर बताया गया है कि टीवी शो बनाने वाले अपने कंटेंट को कैसे प्रस्तुत करें. हॉरर, अलौकिक ताकतें, अंधविश्वास, काला जादू, भूत उतारना और तंत्र-मंत्र जैसी थीम पर बने कार्यक्रमों के प्रस्तुतिकरण में बहुत सावधानी और संयम बरता जाए. ऐसे मानक बनाए गए हैं जिनका पालन ऑडियो-विजुअल माध्यम के लोगों को करना चाहिए.
इसमें जो टीवी के लोगों के लिए सेल्फ-रेगुलेशन का कोड है वो कहता है - " जादू-टोना, कर्मकांड, अलौकिक, दैवीय, अंधविश्वास और नर या पशु बली जैसी चीजों को दिखाते हुए जो हॉरर पैदा किया जाता है वैसे कार्यक्रमों को बच्चों और युवा दर्शकों के लिए ठीक नहीं माना जा सकता. खासकर तब जब - 1. इन कार्यक्रमों में ऐसे कर्मकांडों को सही ठहराया जाए, प्रोत्साहित किया जाए या ग्लैमराइज़ किया जाए, 2. ऐसा डर भर दिया जाए कि अगर ऐसे टोने-टोटकों को नहीं माना तो बुरे परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, 3. इन कर्मकांडों के कारगर होने का अंधा यकीन लोगों में भरा जाए, 4. इन क्रियाओं को इतने ब्यौरेवार ढंग से बताया जाए कि दर्शक उनकी नकल करने का मन बना लें, 5. और, ऐसी अदृश्य शक्तियों पर बने कार्यक्रमों में महिलाओं को चुड़ैलों की तरह दिखाया जाए. "
टीवी-फिल्मों के ब्रह्मांड में इतना अधिक कंटेंट है कि कोई इंसान एक जीवन में सबकुछ नहीं देख सकता. तो बात यहां आकर रुक जाती है कि वो अपने सीमित जीवनकाल में किस कंटेंट को देखने का चुनाव करता है. वो जैसा कंटेंट देखेगा वैसा ही महसूस करेगा, वैसा ही समझदार या वैसा ही पिछड़ा बनता जाएगा. तो सबसे बेस्ट तरीका ये है कि दर्शक जहां से भी पता चल सके ऐसे कंटेंट को खोजें. वो अपने आसपास उन लोगों को खोजें जो टीवी-फिल्मों के कीड़े हैं. बहुत देखते हैं. उनसे सुझाव मांगे. इंटरनेट पर जाकर ऐसे भरोसेमंद आर्टिकल खोजें जिनमें उत्कृष्ट टीवी शोज़ और फिल्मों की लिस्ट दी गई हों. फिर वरीयता के आधार पर उनको देखना शुरू करें. एक बार सही शुरुआत हो गई तो आप जान पाएंगे कि अब तक वो असली जादुई और जागरूक मनोरंजन की दुनिया कैसे खोजे जाने का इंतजार कर रही थी.
जाते-जाते जिक्र उन टीवी शोज़ का जो अब से तीस-बीस साल पहले प्रसारित होते थे लेकिन उनका कंटेंट 2018 के सबसे पॉपुलर शोज़ से लाख बेहतर हैं. वे अपने कंटेंट से प्रगतिशीलता, कलात्मकता, यथार्थ और अच्छाई को बढ़ावा देते थे.
1. रजनी - इनमें सबसे टॉप पर 1984 में शुरू होने वाला ये सीरियल हो सकता है. ये रजनी नाम की महिला पर केंद्रित था जो हर एपिसोड में सरकारी दफ्तरों और लोगों के हकों को लेकर जागरूकता फैलाने का काम करती थीं. ये रोल प्रिया तेंडुलकर ने किया था.
2. सांस - 1998 में शुरू हुए इस कार्यक्रम को नीना गुप्ता ने डायरेक्ट किया था. उन्होंने एक ऐसी महिला का रोल किया जिसका पति दूसरी महिला से प्रेम करने लगता है. उनका पात्र ऐसे में वो रास्ता लेता है जो बहुत प्रेरक है. वो न सिर्फ खुद को खोजने की यात्रा पर निकलती है बल्कि आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी हो जाती है. 3. वागले की दुनिया - डीडी वन पर 1988 में आने लगे इस कार्यक्रम में एक मिडिल क्लास फैमिली की रोज़मर्रा की दुश्वारियों को बहुत ही सकारात्मक और स्वस्थ तरीके से पेश किया गया. एंटरटेनमेंट कोशंट में भी सदाबहार. इसमें अंजन श्रीवास्तव, शाहरुख खान और भारती आचरेकर जैसे एक्टर थे. 4. हसरतें - 1990 के मध्य में आने ले इस शो में एक महिला को दिखाया गया जो अपने शादीशुदा बॉस के साथ नया रिश्ता शुरू करने के लिए पति को छोड़ देती है. इस चीज को दर्शकों ने सकारात्मक रूप से स्वीकार किया. अपने समय के हिसाब से ये नई बात थी. 5. देख भाई देख - 1993 में आने लगे इस फनी शो की स्क्रिप्ट, कॉमेडी, एक्टिंग, कास्ट आज भी जबरदस्त लगती है. शो एकदम ताजा, खुला, आधुनिक और कुंठाओं से आज़ाद करने वाला था. परफेक्ट टीवी एंटरटेनमेंट.
6. अस्तित्व - 2002 में शुरू हुए अस्तित्व-एक प्रेम कहानी में एक औरत है जो अपने करियर को लेकर फोकस्ड है और खुद से करीब 10 साल छोटे आदमी से शादी करती है. 7. हिप हिप हुर्रे - 1998 में शुरू हुई ये सीरीज याज भी यादगार है. आज के सीरियल्स से बच्चे जहां गायब हो रहे हैं और टीनएजर्स को लेकर भी कुछ उल्लेखनीय नहीं बन रहा, वहां ये शो ताजी हवा के झोंके जैसा था. इसमें हाई स्कूल के कुछ युवाओं की कहानी औऱ उनकी चुनौतियों को बढ़िया तरीके से दिखाया गया था. 8. अल्पविराम - 1998 में शुरू हुए इस कार्यक्रम में टीवी पर वर्जित माने जाने वाले विषयों पर बात की गई. जैसे, रेप को लेकर. इसमें बताया गया कि क्यों जिसके साथ ये अपराध हुआ है उसे पीड़ित बनाकर कमजोर नहीं करना चाहिए.
इनके अलावा भी बहुत सारे कार्यक्रम थे जो आज भी देखने लायक हैं जैसे - अंताक्षरी, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, बुनियाद, हम लोग, तारा, जंगल बुक, हम पांच, ये जो है जिंदगी, ब्योमकेश बक्शी, तहकीकात, करमचंद और ज़बान संभाल के.

तो, जीवन बहुत छोटा है. अपना एंटरटेनमेंट संभाल के चुनिए.