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चंबल का डाकू ठोकिया, जिसने सालों पहले बिकरू कांड जैसा घिनौना काम किया, मारे गए थे 6 पुलिसकर्मी

ठोकिया गैंग की पूरी कहानी!

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सांकेतिक तस्वीर. (इंडिया टुडे)

बात साल 2002 की है. यूपी के चित्रकूट में एक छोटा-सा गांव है लोखरिया पुरवा. एक लड़की को गांव के ही एक लड़के से प्रेम हो गया. परिवार से छिपकर दोनों का मिलना जुलना था. लड़के का नाम था भुंडी. कुछ दिन बाद वो लड़की प्रेगनेंट हो जाती है. ये बात उसके घरवालों को पता चली तो बवाल मच गया. पहले तो घर में जमकर हंगामा हुआ, फिर लड़की के भाई गांव में पंचायत बुलाई. लड़की के भाई ने कहा भुंडी और उसकी बहन की जल्द से जल्द शादी कराई जाए. लेकिन भुंडी बिदक गया. उसने शादी से साफ मना कर दिया. भुंडी के साथ उसके रिश्तेदार थे जो किसी भी कीमत पर शादी कराने के लिए तैयार नहीं थे. लड़की का भाई भड़क गया. पंचायत में बवाल मच गया. भुंडी के रिश्तेदारों में जो सबसे ज्यादा बोल रहा था उसका चाचा ओमनाथ. लड़की के भाई ने भुंडी और ओमनाथ पर हमला कर दिया. ओमनाथ तो बच गया लेकिन भुंडी की मौत हो गई. ये हत्या एक टर्निंग प्वाइंट था, उस गांव, उस घर और लड़की के उस भाई के लिए जिसका नाम था अंबिका पटेल. जिसे उसके साथियों ने ठोकिया नाम दिया और आगे चलकर इसी ठोकिया गैंग ने यूपी पुलिस की नाम में दम कर दिया.

ठोकिया नाम कैसे पड़ा?

अंबिका का जन्म साल 1972 में हुआ. परिवार सामान्य था लेकिन इस एक घटना ने अंबिका की पूरी जिंदगी बदल दी. बहन के प्रेमी की हत्या के बाद अंबिका फरार हो गया. कहा जाता है इसके बाद अंबिका ने यूपी के कुख्यात ददुआ गैंग में शरण ली. वही ट्रेनिंग ली और वहीं से अपराध की दुनिया में अपना में अपना नाम बनाया. भुंडी की हत्या के बाद अंबिका ने घर छोड़ दिया था. पुलिस उसके पीछे पड़ी थी. पुलिस ने कुछ खबरियों को भी अंबिका के पीछे लगाया. दशहरे का दिन था. अंबिका छुपते-छुपाते घर आया था. लेकिन कलुआ निषाद ने पुलिस ने उसकी मुखबिरी कर दी. पुलिस ने घर घेर लिया. लेकिन अंबिका पुलिस ने हाथ ना आया और भागने में कामयाब हो गया.

अभी तीन दिन नहीं बीते थे. अंबिका को पता चल चुका था कि मुखबिरी किसने थी. अंबिका ने कलुआ निषाद की दिनदहाड़े हत्या कर दी. ये अंबिका की दूसरी हत्या थी. दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक अंबिका ने कहा- "इसने मेरी मुखबिरी की इसलिए मैंने इसे बीच चौराहे पर ठोक दिया." इस घटना के बाद अंबिका के साथियों ने उसे ठोकिया नाम दे दिया.

बगहिया पुरवा नरसंहार

ठोकिया फेमस हो चुका था. ददुआ का साथ भी था. लेकिन मन में अब भी मलाल था, ओमनाथ के बच जाने का. ठोकिया ओमनाथ के पीछे लगा था. 

साल 2003, 16 जुलाई का दिन था. ठोकिया को खबर लगी कि ओमनाथ आज अपने बगहिया पुरवा गांव के घर में रुकने वाला है. अपने 40 आदमियों के साथ ठोकिया ओमनाथ के घर पहुंच गया. रात का वक्त था. ठोकिया ने घर पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. इसके बाद ठोकिया और उसकी गैंग ने घर के दरवाजे बाहर से बंद कर दिए और घर में आग लगा दी. पूरे इलाके में हाहाकार था लेकिन कोई कुछ ना कर सका. घर के लोग झुलस कर मर गए. इस हत्याकांड में ओमनाथ के परिवार के 6 लोगों की मौत हो गई और कई बुरी तरह जल गए. पुलिस रिकॉर्ड में 6 लोगों की मौत हुई लेकिन गांव के कुछ दावा करते हैं कि 8 लोगों की जान गई  थी. हालांकि ओमनाथ इस बार भी बच गया था.

इस हत्याकांड के बाद पूरे चंबल में ठोकिया की अलग पहचान बन गई. इधर ददुआ की छत्रछाया तो थी ही. कहते हैं ठोकिया ने अपराध का ककहरा ददुआ से सीखा लेकिन उसका स्टाइल ददुआ से अलग था. ददुआ कभी पुलिस को सामने से चुनौती नहीं देता था. लेकिन ठोकिया को पुलिस पर हमला करने से भी नहीं कतराता था. आजतक से जुड़े संतोष बंसल की खबर के मुताबिक एक बार चित्रकूट के खोही में ठोकिया ने पुलिस चौकी के अंदर घुस कर दो सिपाहियों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद से यहां पुलिस चौकी ही खत्म हो गई. अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक ठोकिया पर हत्या, लूट और अपहरण के करीब 140 से ज्यादा मामले दर्ज हुए. बताया जाता है कि ठोकिया की गैंग में 40 से ज्यादा सदस्य थे.

2004 में पुलिस पर हमला

फरवरी की सर्दी थी. बांदा के फतेहगंज के थानेदार सतपाल सिंह अपने साथियों के साथ गश्त पर थे. गश्त के दौरान ही सतपाल को पता चला कि उधर ही देव पहाड़ के पास ठोकिया गैंग ने डेरा जमाया है. सतपाल ने तुरंत सूचना दी. फौरन PAC और पुलिस बल की दो टुकड़ियां अतिरिक्त भेजी गईं. अभी पुलिस ने ठोकिया को घेरना शुरू ही किया था कि उसे भनक लग गई. इससे पहले कि पुलिस कुछ करती, ठोकिया गैंग ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. लेकिन खुद को फंसता देख ठोकिया अपने लोगों के लेकर भाग गया. हालांकि इस मामले में पुलिस को कोई नुकसान नहीं हुआ. साल 2013 में बांदा कोर्ट में ठोकिया गैंग के आदमी ने इस वारदात को अपना जुर्म कुबूल किया. कोर्ट ने उसे 3 साल की सजा सुनाई.

इधर ठोकिया को एक बार फिर ओमनाथ के बारे में खबर लगी. चित्रकूट जिले में ही एक जगह है करवी. करवी विधानसभा भी है. ठोकिया को पता चला कि ओमनाथ करवी आ रहा है. उसने ओमनाथ की हत्या की प्लान तैयार किया. इस बार और पुख्ता. ओमनाथ जब करवी पहुंचा तो ठोकिया ने उस पर बम से हमला किया. लेकिन भी वही सबसे घिसी हुई कहावत काम आई- जाको राखे साइयां मार सके ना कोय. ओमनाथ इस बार भी बच गया.

2007 - STF पर हमला 

यूपी में इसी साल मायावती की सरकार बनी थी. बताया जाता है कि नई सरकार ने राज्य से गैंगस्टर्स के सफाए का आदेश दिया था. जुलाई का महीना का IPS अमिताभ यश की टीम ने चंबल के दुर्दांत ददुआ को मार गिराया. इस पूरे ऑपरेशन में यूपी पुलिस का बड़ा पुलिस बल लगा था. 

खबरों के मुताबिक, उस दिन यूपी पुलिस के निशाने पर चंबल के कई गैंग थे. पुलिस से मुठभेड़ में ठोकिया गैंग का मइयादीन भी मारा गया. लेकिन ददुआ के मारे जाने से ठोकिया बौखला गया. पुलिस बल की गाड़ियां अलग-अलग रास्तों से लौट रही थीं. और तभी ठोकिया ने STF की एक टुकड़ी पर हमला बोल दिया. कहा जाता है कि पुलिस की टीम को फंसाने की पूरी प्लैनिंग ठोकिया ने पहले से कर ली थी. ठोकिया अपने साथियों के साथ ऊपर टीले में बैठा था. नीचे से STF की गाड़ी निकल रही थीं. और ठोकिया ने हमला बोल दिया. STF की गाड़ी पर ठोकिया गैंग ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं. कुछ लोग ये दावा भी करते हैं कि ठोकिया ने पुलिस की गांड़ी पर बम से भी हमला किया था. दो गाड़ियों ने 20 से ज्यादा जवान थे. इस वारदात में STF के 6 जवान की मौत हो गई और 9 घायल हो गए. ठोकिया को लगा कि पुलिस के उस दस्ते में मौजूद सारे जवान मारे गए हैं इसलिए वो चला गया. इस घटना ने पूरे यूपी में हाहाकार मचा दिया था.

बीते 30 जून को बांदा की कोर्ट ने इस मामले में ठोकिया गैंग के 13 सदस्यों को उम्रकैद की सजा सुनाई. इसके अलावा सभी दोषियों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया.

ठोकिया का पॉलिटिकल कनेक्शन

कहते हैं जैसे बाकी गैंस्टर्स को राजनीतिक दलों का समर्थन होता है वैसे ही ठोकिया के पीछे भी पॉलिटिकल बैकिंग थी. यूपी में 2007 विधानसभा चुनाव में चित्रकूट की नरैनी सीट से ठोकिया की मां पियरिया देवी ने RLD के टिकट से चुनाव लड़ा था. हालांकि वो हार गई थीं. इसके अलावा ठोकिया की चाची सरिता भी ब्लॉक प्रमुख के पद पर रह चुकी है. लेकिन यूपी में मायावती की सरकार आने के बाद ठोकिया के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई थी.

ठोकिया का खात्मा

ददुआ की मौत के बाद चंबल में ठोकिया ही सरपंच था. सब कुछ ठोकिया की छत्रछाया में चल रहा था. 2007 के STF पर हमले के बाद उसका दबदबा और भी बढ़ गया था. लेकिन तब से ही यूपी पुलिस ठोकिया के पीछे लग चुकी थी. सरकार ने ठोकिया पर 6 लाख का इनाम भी घोषित कर दिया था. दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक, यूपी के उस वक्त के पुलिस महानिदेशक (DGP) विक्रम सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था- 

"ठोकिया को पकड़ना ददुआ से भी ज्यादा मुश्किल है. वजह ये है कि ददुआ 60 साल का था और ठोकिया 36 साल का जवान डाकू है. ददुआ अनपढ़ था और ठोकिया ग्रेजुएट है. सर्विलांस से बचने के लिए उसने फोन पर बात करनी भी बंद कर दी है."

कई महीनों की जासूसी, पड़ताल और लिंक भिड़ाने के बाद अगस्त 2008 में पुलिस को ठोकिया की पुख्ता खबर मिली. मौत से एक हफ्ते पहले ही ठोकिया ने पुलिस के 6 जवानों की हत्या कर दी थी. कहा जाता है कि उस दिन भी ठोकिया किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए रुका था. STF को टिप मिली थी कि ठोकिया चित्रकूट के सिखलोही गांव में छिपा था. शाम के 7 बजे रहे थे. पुलिस और ठोकिया के बीच मुठभेड़ शुरू हुई. ठोकिया के 20 साथी भागने में कामयाब हो गए. पुलिस बल के आला अधिकारियों को मैदान में उतरना पड़ा था. 7 घंटे से ज्यादा तक मुठभेड़ चली. रात ढाई बजे ठोकिया मारा गया. हालांकि कुछ लोग ये भी दावा करते हैं कि ठोकिया पुलिस की गोली से नहीं मरा बल्कि उसकी की गैंग के ज्ञान सिंह ने गोली मारी थी और फरार हो गया.

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