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घर में बुजुर्ग हैं तो निमोनिया का ये सच जरूर जान लें, इलाज में लापरवाही जानलेवा हो सकती है

एक्टर और प्रोड्यूसर धीरज कुमार की 15 जुलाई को मौत हो गई. वो 79 साल के थे और निमोनिया से जूझ रहे थे.

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निमोनिया फेफड़ों का इंफेक्शन है (फोटो: Freepik)

अपने ज़माने के जाने-माने एक्टर और प्रोड्यूसर धीरज कुमार की 15 जुलाई को मौत हो गई. वे 79 साल के थे और निमोनिया से जूझ रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, धीरज कुमार को सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी. जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें ICU में वेंटिलेटर पर रखा गया था. तमाम कोशिशों के बाद भी धीरज कुमार को बचाया नहीं जा सका.

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अब बात उस निमोनिया की, जिसकी वजह से धीरज कुमार की मौत हो गई. निमोनिया फेफड़ों का एक इंफेक्शन है. भारत में इसके मामले बहुत ही आम हैं. लोगों को लगता है कि निमोनिया सिर्फ बच्चों को होता है, लेकिन ऐसा नहीं है. ये किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है. खासकर बुज़ुर्गों को.

इससे जुड़ी एक रिसर्च साल 2024 में Plos One नाम के जर्नल में भी छपी है. इसके मुताबिक, दिसंबर 2018 से मार्च 2020 के बीच, निमोनिया के हर 10 में से 4 बुज़ुर्ग मरीज़ों को ICU में भर्ती करना पड़ा. इनमें से करीब 15% मरीज़ों की अस्पताल में या फिर डिस्चार्ज के एक महीने के अंदर मौत हो गई. यानी निमोनिया बुज़ुर्गों के लिए एक बड़ा ख़तरा है.

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इसलिए, आज बात होगी निमोनिया की. डॉक्टर से जानेंगे कि निमोनिया क्या है. ये क्यों होता है. इसके लक्षण क्या हैं. निमोनिया का पता करने के लिए कौन-से टेस्ट किए जाते हैं. और, इससे बचाव और इलाज का तरीका क्या है. 

निमोनिया क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर पंकज छाबड़ा ने. 

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डॉ. पंकज छाबड़ा, क्लीनिकल डायरेक्टर, पल्मोनोलॉजी, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद

निमोनिया का मतलब है फेफड़ों में इंफेक्शन हो जाना. हवा के साथ सांस की नली के ज़रिए ये इंफेक्शन फेफड़ों तक पहुंचता है. वहां जाकर बलगम (कफ) बना देता है और फिर इस हिस्से में निमोनिया का इंफेक्शन हो जाता है. आमतौर पर फेफड़ों के अंदर हवा और खून का बहाव होता रहता है. अगर फेफड़ों के किसी हिस्से में इंफेक्शन हो जाए और वहां बलगम भर जाए, तो उस हिस्से में निमोनिया हो जाता है.

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निमोनिया होने के कारण

निमोनिया तब होता है, जब फेफड़ों में इंफेक्शन हो जाता है. ये इंफेक्शन आमतौर पर सांस के रास्ते फेफड़ों तक पहुंचता है. जैसे संक्रमित हवा में सांस लेने से. कई बार फेफड़ों में खून के ज़रिए भी निमोनिया हो जाता है. जैसे अगर किसी मरीज़ को पेशाब का इंफेक्शन है, तो वहां से बैक्टीरिया खून के ज़रिए फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं. यानी निमोनिया दो तरह से फेफड़ों में होता है. या तो हवा के ज़रिए या फिर खून के ज़रिए.

निमोनिया के लक्षण

निमोनिया का सबसे पहला लक्षण खांसी है. इसके बाद बलगम बनने लगता है. सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. कई बार निमोनिया की वजह से फेफड़ों में पानी भर जाता है. ऐसे मरीज़ों को छाती में काफी तेज़ दर्द होता है. अगर इंफेक्शन बहुत ज़्यादा बढ़ जाए, तो ये फेफड़ों से पूरे शरीर में फैल सकता है. इसे सेप्टिसीमिया या सेप्टिक शॉक कहते हैं. इसमें ऑक्सीज़न की भी कमी हो जाती है. ऐसे मरीज़ों को कई बार वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है. इसके लक्षण अक्सर बहुत सामान्य होते हैं. बहुत हल्के लक्षण भी हो सकते हैं, जैसे हल्का बुखार और खांसी. कुछ मरीज़ एंटीबायोटिक लेकर ठीक हो जाते हैं. लेकिन कुछ मामलों में निमोनिया जानलेवा भी हो सकता है.

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निमोनिया का पता लगाने के लिए एक्स-रे किया जाता है 

निमोनिया का टेस्ट

निमोनिया की जांच में सबसे ज़रूरी है शारीरिक जांच. जिन मरीज़ों को बुखार, खांसी, सांस लेने में दिक्कत या छाती में दर्द होता है. उनकी शारीरिक जांच से पता चल जाता है निमोनिया है या नहीं. दूसरा और सबसे आम टेस्ट है एक्स-रे. इससे निमोनिया के अलावा फेफड़ों में पानी भरा है या नहीं, ये भी पता चल जाता है. अगर निमोनिया बहुत शुरुआती स्टेज में है, तो कई बार एक्स-रे में नहीं दिखता. ऐसे में सीटी स्कैन या अल्ट्रासाउंड की मदद ली जाती है.

निमोनिया से बचाव और इलाज

निमोनिया का इलाज इसके लक्षणों और गंभीरता को देखकर किया जाता है. इलाज में एंटीबायोटिक दी जाती हैं. शुरुआती स्टेज में एंटीबायोटिक देना बहुत फायदेमंद होता है. कौन सी एंटीबायोटिक देनी है, ये निमोनिया की गंभीरता पर निर्भर करता है. अगर निमोनिया शुरुआती स्टेज में है, तो ओरल एंटीबायोटिक्स से ही ठीक हो जाता है. अगर निमोनिया बहुत ज़्यादा फैल गया है, तो मरीज़ को अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है. तब इंजेक्शन के ज़रिए एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं. अगर शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो, तो ऑक्सीजन सपोर्ट देना पड़ता है. बीमारी बहुत ज़्यादा बढ़ जाए, तो मरीज़ को वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है.

लिहाज़ा, निमोनिया से बचाव सबसे ज़रूरी है. जब शरीर में कोई इंफेक्शन पहुंच जाता है, तो इम्यूनिटी उससे लड़ती है. जिन लोगों की इम्यूनिटी कमज़ोर है. जैसे डायबिटीज़ के मरीज़ों या शराब-सिगरेट पीने वाले लोगों की. तब निमोनिया होने का चांस 5 गुना बढ़ जाता है. इससे बचाव के लिए शरीर की इम्यूनिटी मज़बूत रखें. रोज़ एक्सरसाइज़ करें. अच्छा और पौष्टिक खाना खाएं. डायबिटीज़ कंट्रोल में रखें. शराब-सिगरेट न पिएं.

निमोनिया से बचाने के लिए वैक्सीन भी मौजूद है. ये वैक्सीन बच्चों, एडल्ट्स और 50 साल से ऊपर के लोगों को भी लगती है. कुछ वैक्सीन साल में एक बार लगती हैं. कुछ 5 साल में एक बार, और कुछ ज़िंदगी में सिर्फ एक बार लगती हैं. इसलिए, डॉक्टर की सलाह लेकर ज़रूर वैक्सीन लगवाएं, ताकि निमोनिया से बचाव हो सके.

निमोनिया के शुरुआती लक्षण सामान्य फ्लू जैसे होते हैं. इसलिए अक्सर लोग इलाज कराने में देर कर देते हैं और निमोनिया का इंफेक्शन गंभीर हो जाता है. अगर आपको निमोनिया के लक्षण हैं, जैसा डॉक्टर साहब ने बताया, तो अपनी जांच ज़रूर करवाएं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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