क्या आपने कभी सोचा है कि देश की कानून व्यवस्था का जिम्मा संभालने वाले केंद्रीय गृह मंत्री की बेटी का भी अपहरण हो सकता है, और उसके बदले 5 अलगाववादियों को छोड़ना पड़ सकता है? आपको शायद यकीन करने में मुश्किल हो, लेकिन ऐसा वास्तव में हुआ है. आइए, आपको विस्तार से इस पूरे घटनाक्रम से रूबरू करवाते हैं. आज क्यों? क्योंकि आज से 31 साल पहले इसी दिन ये घटना हुई थी.
देश के गृह मंत्री की बेटी का वो अपहरण कांड, जिसने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी
1989 में रूबिया सईद की रिहाई के लिए 5 आतंकवादियों को छोड़ा गया था.

तारीख थी 8 दिसंबर 1989. केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को सत्ता संभाले अभी हफ्ता भी नही बीता था. दोपहर करीब 3 बजे नए गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद नॉर्थ ब्लाॅक यानी गृह मंत्रालय में पहली बार अधिकारियों से रूबरू हो रहे थे. ठीक उसी वक्त उनकी बेटी रूबिया सईद, जो MBBS का कोर्स पूरा करने के बाद श्रीनगर के हॉस्पीटल में इंटर्नशिप कर रही थीं, अपनी ड्यूटी पूरी होने के बाद घर के लिए निकलीं. एक ट्रांजिट वैन नंबर JFK 677 में सवार हो जाती हैं, जो लाल चौक से श्रीनगर के बाहरी इलाके नौगाम की तरफ जा रही थी. वैन जैसे ही चानपूरा चौक के पास पहुंची, उसमें सवार तीन लोगों ने बंदूक के दम पर वैन को रोक लिया. उसमें सवार मेडिकल इंटर्न रूबिया सईद को उतारकर किनारे खड़ी नीले रंग की मारुति कार में बैठा लिया. उसके बाद मारुति वैन कहां गई, किसी को पता नहीं.
इस अपहरण का आरोप लगा अशफाक वानी पर. अशफाक जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी JKLF से जुड़ा था. वह पहले एक एथलीट हुआ करता था, लेकिन बाद में चरमपंथी बन गया था. कहा गया, वही गृहमंत्री की बेटी के अपहरण की योजना का मास्टरमाइंड था. अपहरण से पहले उसने मुफ्ती के घर और अस्पताल की रेकी भी की थी. JKLF के नेता दुविधा में थे कि घाटी के लोग अपनी ही एक बेटी के अपहरण को किस तरह से स्वीकार करेंगे. वैसे इस अपहरण कांड में JKLF के यासीन मलिक के भी शामिल होने के आरोप लगे, उन पर विशेष टाडा अदालत में मुकदमा भी चल रहा है.

रूबिया सईद अपहरण मामले में जेकेएलएफ के यासीन मलिक पर भी मुकदमा चल रहा है.
इस अपहरण के बाद ना तो बस के ड्राइवर और ना ही किसी और ने इसके बारे में पुलिस को कुछ बताया. करीब दो घंटे बाद JKLF के जावेद मीर ने एक लोकल अखबार को फोन करके जानकारी दी कि JKLF ने भारत के गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया है.
खबर सामने आते ही कोहराम मच गया. दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत के लाॅ एंड ऑर्डर की जिम्मेदारी उठाने वाला व्यक्ति अपनी बेटी की सुरक्षा करने में नाकाम रहा था. दिल्ली से श्रीनगर तक, पुलिस से इंटेलिजेंस तक बैठकों का दौर शुरू हो गया. शुरू में JKLF की तरफ से रूबिया को छोड़ने के बदले 20 आतंकवादियों की रिहाई की मांग की गई. लेकिन बाद में इसे कम करके 7 आतंकवादियों की रिहाई की मांग होने लगी.सरकार की तरफ से अंदरखाने कुछ चरमपंथियों को रिहा करने या मिलिट्री एक्शन लेने- दोनों तरह की बातें हवा में तैरने लगी. क्या किया जाए? कैसे सुरक्षित रिहाई हो? सारी कवायद इसी पर चल रही थी. मध्यस्थता के लिए कई चैनल खोले गए. एक चैनल के माध्यम से श्रीनगर के जाने-माने डाक्टर ए.ए. गुरु को लगाया गया. एक दूसरे चैनल पर पत्रकार जफर मिराज, अब्दुल गनी लोन की बेटी शबनम लोन और अब्बास अंसारी को लगाया गया. एक तीसरा चैनल भी खोला गया. इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस मोतीलाल भट और एडवोकेट मियां कयूम को जोड़ा गया.
इस कवायद में 5 दिन बीत गए. 8 दिसंबर से शुरू हुआ बैठकों का दौर 13 दिसंबर तक पहुंच चुका था. उस दिन सियालकोट में भारत और पाकिस्तान के बीच चौथा और अंतिम क्रिकेट टैस्ट मैच चल रहा था. पहले के तीनों टैस्ट मैच ड्रॉ पर खत्म हुए थे. चौथे टैस्ट के चौथे दिन यानी 13 दिसंबर को भारतीय टीम की हालत पतली थी. हार का खतरा मंडराने रहा था. लेकिन उसे टालने की कोशिश में नवजोत सिंह सिद्धू के साथ एक 16 साल का नौजवान (सचिन तेंदुलकर) लगा था. दोनों पूरा दिन निकाल ले गए, और मैच को पाँचवे दिन खींच लिया. क्रिकेट की दुनिया पहली बार सचिन तेंदुलकर के जीवट से रूबरू हो रही थी, लेकिन दूसरी तरफ भारत में वीपी सिंह सरकार के जीवट की परीक्षा हो रही थी क्योंकि अब तक रूबिया सईद अपहरणकर्ताओं के चंगुल में थीं.
13 दिसंबर 1989 की सुबह दिल्ली से 2 केंद्रीय मंत्री, विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल और नागरिक उड्डयन मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को श्रीनगर भेजा गया. एक दिन पहले ही जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूक़ अब्दुल्ला लंदन से श्रीनगर लौटे थे. 13 दिसंबर की सुबह मुख्यमंत्री अब्दुल्ला की मुलाक़ात दोनों केंद्रीय मंत्रियों से हुई. इस बैठक में रूबिया को रिहा कराने के लिए आतंकवादियों को छोड़ने पर बातें शुरू हुई. फारूक़ अब्दुल्ला ने आतंकवादियों को छोड़ने पर असहमति जताई, लेकिन आखिरकार झुकना पड़ा.

रूबिया के अपहरण की घटना के समय फारूक़ अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे.
13 दिसंबर की दोपहर होते-होते सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौता हो गया. समझौते के तहत 5 आतंकवादियों को रिहा किया गया. उसके कुछ ही घंटे बाद यानी अपहरण के 122 घंटे बाद लगभग साढ़े सात बजे रूबिया को सोनवर स्थित जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर सुरक्षित पहुँचा दिया गया. वीपी सिंह सरकार को आखिरकार आतंकवादियों के सामने झुकना पड़ा.

रिहाई के बाद रुबिया सईद अपने पिता के साथ.
उसी रात करीब 12 बजे विशेष विमान से रूबिया सईद को दिल्ली लाया गया. हवाई अड्डे पर तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा कि एक पिता के रूप में मै खुश हूं, लेकिन एक नेता के तौर पर मैं समझता हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. किडनैपिंग नहीं होनी चाहिए थी. उनकी आवाज थरथरा रही थी. चेहरे पर तनाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था.
उधर श्रीनगर में काफी गहमा-गहमी थी. लोग उन्माद में सड़कों पर उतर आए थे, लेकिन ये उन्माद रूबिया की रिहाई के लिए नहीं था बल्कि रिहा किए गए चरमपंथियों के लिए था. पूरी घाटी में अलगावाद के नारे गूँजने लगे. 'हम क्या चाहते! आजादी' और 'जो करे खुदा का खौफ, वो उठा ले क्लाश्निकोव' जैसे नारे उस दिन श्रीनगर की सड़कों पर सरेआम लगाए जा रहे थे.

वेद मारवाह के मुताबिक़, पीएम वीपी सिंह के निर्देश पर अरूण नेहरू रूबिया सईद की रिहाई के मामले की मॉनिटरिंग कर रहे थे.
इस घटना के समय नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) के महानिदेशक थे, वेद मारवाह. उन्होंने बाद में इस पर एक किताब लिखी. किताब का नाम था Uncivil Wars: The Pathology of Terrorism in India में इस पर विस्तार से रौशनी डाली है. वेद मारवाह के मुताबिक़, 'इस मामले पर मुफ्ती मोहम्मद सईद उस वक्त ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे थे. प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने इस मामले को देखने की जिम्मेदारी वाणिज्य मंत्री अरूण नेहरू को सौंप रखी थी. नेहरू ही पूरे ऑपरेशन को देख रहे थे. मामले से निबटने में सरकार का एप्रोच भी सही नही था. अपहरणकर्ताओं से बातचीत के एक से ज्यादा चैनल खोल दिए गए थे. सभी चैनल सिर्फ इस कोशिश में लगे थे कि रूबिया सईद की रिहाई उनके चैनल से हो. इसी का फायदा अपहरणकर्ताओं ने उठाया और 5 आतंकवादियों को रिहा कराने में कामयाब रहे.'
आइए, अब इस घटना के मास्टरमाइंड अशफाक वानी और रिहा किए गए आतंकवादियों के बारे में जान लेते हैं-
अशफाक वानी, जो इस पूरे अपहरण कांड का मास्टरमाइंड था, उसे 31 मार्च 1990 को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था.छोड़े गए पांचों चरमपंथियों का हाल :
1- शेख हमीद नवंबर, 1992 में एक मुठभेड़ में मारा गया.
2- शेर खान, पाक अधिकृत कश्मीर (POK) का रहने वाला था. 2008 में उसकी मौत संदिग्ध हालात में हुई.3- जावेद अहमद जरगर, उसे बाद में पकड़ लिया गया. उसे किसी अन्य मामले में 12 साल की सजा हुई.
4- नूर मोहम्मद कलवल, 1991 में पकड़ा गया. उसे किसी अन्य मामले में 12 साल की कैद हुई थी.
5-अल्ताफ बट, कश्मीर में रहता है, अब पूरी तरह अपने व्यवसाय में लग गया है.रूबिया सईद के अपहरण का केस टाडा के सेक्शन 3 के अंतर्गत श्रीनगर के सदर पुलिस थाने में 8 दिसंबर 1989 को दर्ज किया गया. इस केस की तीन दशक बाद अब जाकर फरवरी 2020 में श्रीनगर के विशेष टाडा अदालत में सुनवाई शुरू हुई है. अब देखना ये है कि ये मुक़दमा कब तक अपने अंजाम तक पहुंचता है.