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बिहार वोटर्स लिस्ट रिवीजन: मामला जितना सीधा दिख रहा, उतना है नहीं

Bihar Voters List Revision: मामला सीधा-साफ दिख रहा है, लेकिन है नहीं. एक तो डॉक्यूमेंट का मसला है, जिसने बिहार की राजनीति में सियासी तूफान खड़ा कर दिया है. दूसरा, इस रिवीजन की टाइमिंग को लेकर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं कि जब 22 साल से कोई रिवीजन नहीं किया गया है तो इसी साल ये क्यों किया जा रहा है?

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बिहार में वोटर्स लिस्ट के रिवीजन पर बवाल मचा है (फोटोः India Today)

बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) से पहले ही जबर्दस्त सियासी संग्राम छिड़ा है. यहां चुनाव आयोग (Election Commission Of India) वोटर लिस्ट का गहन रिवीजन कर रहा है और जनता की ‘जान को आफत’ है. आयोग का कहना है कि चुनाव से पहले वोटर्स लिस्ट का ‘शुद्धीकरण’ जरूरी है ताकि योग्य लोगों को मताधिकार मिल सके और जो अयोग्य हैं, उन्हें लिस्ट से बाहर किया जा सके. इसके लिए पूरे बिहार में 25 जून से 25 जुलाई तक स्पेशल इंटेंस रिवीजन (SIR) का कार्यक्रम चलेगा.

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इस दौरान बीएलओ एक फॉर्म (गणना प्रपत्र) लेकर हर नागरिक के घर जाएंगे. उनसे फॉर्म भरवाएंगे. डॉक्यूमेंट मांगेंगे. अंत में भरा हुआ फॉर्म और दस्तावेज लेकर वापस आ जाएंगे. इसके आधार पर एक ड्राफ्ट मतदाता सूची तैयार होगी. उसे ‘दावा-आपत्ति’ के लिए जनता के सामने रखा जाएगा. जरूरी संशोधन के बाद 30 सितंबर को फाइनल वोटर्स लिस्ट जारी कर दी जाएगी. इसमें जिसका नाम होगा, वही बिहार चुनाव में वोट डाल पाएगा. 

मामला सीधा-साफ दिख रहा है, लेकिन है नहीं. एक तो डॉक्यूमेंट का मसला है, जिसने बिहार की राजनीति में सियासी तूफान खड़ा कर दिया है. दूसरा, इस रिवीजन की टाइमिंग को लेकर विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं कि जब 22 साल से कोई रिवीजन नहीं किया गया है तो इसी साल ये क्यों किया जा रहा है?

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डॉक्यूमेंट्स पर संघर्ष

डॉक्यूमेंट को लेकर ‘लड़ाई’ ये है कि बिहार में ज्यादातर लोगों के पास पहचान प्रमाण पत्र के तौर पर आधार कार्ड और राशन कार्ड ही हैं. लेकिन चुनाव आयोग ने इन दोनों को ही दस्तावेजों की लिस्ट से बाहर कर दिया है. जो 11 डॉक्यूमेंट्स मांगे जा रहे हैं, वो बिहार में सभी के पास नहीं हैं. इसे लेकर खूब बवाल मचा है. इतना ज्यादा कि बार-बार चुनाव आयोग को सफाई देनी पड़ रही है.

24 जून को चुनाव आयोग ने जो नोटिफिकेशन जारी किया, उसमें कहा गया कि 11 में से एक दस्तावेज देना अनिवार्य है. जब लोगों ने हल्ला करना शुरू किया तो आयोग ने कहा कि ‘ठीक है, लोग फॉर्म भरकर जमा करें. डॉक्यूमेंट देना जरूरी नहीं है.’ 

विपक्ष ने इसे ‘जबर्दस्त विरोध के बाद आयोग के यू-टर्न’ की तरह प्रचारित करना शुरू किया तो आयोग ने सफाई दी कि 'ये अफवाह है. कोई नियम नहीं बदला है. दस्तावेज तो देने ही पड़ेंगे. हां, अगर अभी नहीं हैं तो सिर्फ फॉर्म भरकर जमा करें और डॉक्यूमेंट्स 25 जुलाई तक कभी भी जमा कर दें. इसके बाद अगर जरूरी हुआ तो 'दावों और आपत्तियों' की अवधि के दौरान भी डॉक्यूमेंट्स दिए जा सकते हैं.'

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चुनाव आयोग ने ये भी साफ किया कि ये दस्तावेज सिर्फ सांकेतिक (indicative) हैं, संपूर्ण (exhaustive) नहीं. यानी कि ERO को कानून के तहत ये अधिकार है कि वह जरूरत पड़ने पर कोई दूसरा दस्तावेज मांगे या स्थानीय जांच के जरिए तय कर सकता है कि कोई व्यक्ति वोटर बनने लायक है या नहीं. हालांकि, अगर किसी को शामिल या बाहर करना है तो उसे इसका लिखित कारण (speaking order) देना होगा. 

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चुनाव आयोग ने कहा दस्तावेज देने होंगे (ECI)

समाधान सुझाते चुनाव आयोग के तमाम निर्देश लोगों का ‘कन्फ्यूजन’ और बढ़ा रहे हैं. इस सबके बीच एक बात जो साफ है वो ये कि डॉक्यूमेंट्स जमा करने पड़ेंगे. अगर अभी हैं तो अभी जमा कर सकते हैं. नहीं हैं तो 25 जुलाई तक कभी भी या फिर ‘दावों-आपत्तियों’ की अवधि में जमा कर सकते हैं. 

स्पेशल इंटेंस रिवीजन का एलान

चलिए शुरू से मामला समझते हैं. 24 जून का दिन था, जब चुनाव आयोग ने बिहार में गहन मतदाता पुनरीक्षण का एलान किया था. मतलब बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की गहन परीक्षा होगी. जो मकसद चुनाव आयोग ने बताया है, वो इस प्रकार हैः

- मतदाता सूची (Electoral Roll) की शुद्धता बनाए रखना बहुत जरूरी है, ताकि चुनाव निष्पक्ष और सही तरीके से हो सके.

- मतलब यह पक्का करना कि सभी योग्य (eligible) मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में शामिल हों और किसी भी योग्य व्यक्ति का नाम छूटे नहीं.

- यह भी देखना कि कोई भी अपात्र (Ineligible) व्यक्ति वोटर लिस्ट में शामिल न हो.

- यह भी ध्यान रखना कि जो लोग मर चुके हैं या कहीं और चले गए हैं या जो कभी वोट डालने नहीं आते, उनके नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएं.

चुनाव आयोग ने इसके बाद ये भी बताया कि ये रिवीजन कैसे होगा. इसका क्या प्रोसेस है. इसमें चुनाव आयोग क्या-क्या करेगा और जनता को क्या-क्या करना है? आयोग के मुताबिक,

- ERO यानी Electoral Registration Officer सभी मौजूदा वोटरों के लिए पहले से भरे हुए फॉर्म (Enumeration Form) छपवाएगा और उन्हें BLO (Booth Level Officer) को देगा.

- BLO घर-घर जाकर ये फॉर्म सभी वोटरों तक पहुंचाएगा.

- BLA (Booth Level Agent) जो सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, पूरी प्रक्रिया में शामिल रहेंगे.

- BLO लोगों को फॉर्म भरने में मदद करेंगे और समझाएंगे. लोगों से भरे हुए फॉर्म और जरूरी दस्तावेज इकट्ठा करेंगे.

- Draft Electoral Roll (अस्थायी मतदाता सूची) उन सभी लोगों के नाम से तैयार की जाएगी जिनके फॉर्म जमा हो चुके हैं.

- अगर किसी को कोई जोड़ने या हटाने को लेकर आपत्ति या दावा है, तो वह खुद या किसी राजनीतिक दल के माध्यम से दर्ज करा सकता है.

- सभी दावों और आपत्तियों पर फैसला होने के बाद Final Electoral Roll (अंतिम वोटर लिस्ट) जारी की जाएगी.

- अगर किसी को ERO के फैसले से आपत्ति है, तो वह पहले ज़िलाधिकारी (District Magistrate) के पास अपील कर सकता है और फिर दूसरी अपील मुख्य निर्वाचन अधिकारी (Chief Electoral Officer) के पास की जा सकती है.

कहां फंस रहा है पेच?

चुनाव आयोग के निर्देश के मुताबिक, बीएलओ ने काम शुरू कर दिया है. 25 जून से 25 जुलाई तक का समय बिहार के नागरिकों के पास है. उन्हें इस दौरान फॉर्म जमा भी करना है और दस्तावेज भी देने हैं. लेकिन मामला तब फंस रहा है जब बीएलओ लोगों के घर जाते हैं. दस्तावेज मांगते हैं और उन्हें जवाब मिलता है कि वो तो नहीं है. लोग राशन कार्ड या आधार कार्ड पकड़ा देते हैं. बीएलओ कहते हैं कि ये नहीं चलेगा. जो कागज मांगा जा रहा है वही देना होगा नहीं तो वोटर्स लिस्ट से नाम कट जाएगा. जवाब मिलता है, ‘काट दो नाम. लेकिन हमारे पास यही कागज है.’

मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि कई बीएलओ ने मजबूरी में राशन कार्ड और आधार कार्ड की कॉपी लेना शुरू कर दिया है. हालांकि ये गाइडलाइंस के खिलाफ है.

विपक्षी दलों को डर सता रहा है कि ऐसे लोगों का नाम वोटर्स लिस्ट से काट दिया जाएगा. विपक्ष के नेताओं का कहना है कि बिहार के कई इलाके बाढ़ प्रभावित हैं. लोगों का पूरा घर-बार बाढ़ के पानी में डूब जाता है. ऐसे लोग 1987 से पहले का दस्तावेज कहां से लेकर आएंगे. ज्यादातर गरीब, दलित और महादलित समुदाय के लोगों के पास न तो मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट है और न ही जन्म प्रमाण पत्र.

क्या दस्तावेज आयोग ने मांगे हैं?

पहले तो जिन लोगों का नाम 2003 की वोटर लिस्ट में है, उन्हें कोई दस्तावेज नहीं देना है. उन्हें सिर्फ गणना प्रपत्र भरकर दे देना है. लेकिन जिनका नाम 2003 के वोटर्स लिस्ट में नहीं है, उन्हें प्रपत्र के साथ 11 निर्धारित डॉक्यूमेंट्स में से एक दस्तावेज देना होगा. मुश्किल ये है कि आयोग ने आधार, पैन और डीएल को ऐसे दस्तावेजों की सूची से हटा दिया है. उनको जो 11 डॉक्यूमेंट्स चाहिए वो ये हैंः 

  1. पासपोर्ट, जो हर किसी के पास नहीं होता. इसे बनवाने में भी समय लगेगा.
  2. जन्म प्रमाण पत्र, जिसे बिहार जैसे राज्य में बनवा पाना थोड़ा मुश्किल काम है.
  3. जाति प्रमाण पत्र
  4. वन अधिकार प्रमाण पत्र
  5. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) 
  6. किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड/यूनिवर्सिटी की ओर से जारी किया गया एजुकेशनल सर्टिफिकेट.
  7. स्थायी निवास प्रमाण पत्र.
  8. बैंक, पोस्ट ऑफिस, LIC आदि की ओर से 1 जुलाई 1987 से पहले जारी किया गया कोई भी सर्टिफिकेट.
  9. सरकार की कोई भी भूमि या मकान आवंटन का सर्टिफिकेट.
  10. राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकार द्वारा तैयार पारिवारिक रजिस्टर.
  11. नियमित कर्मचारी या पेंशनभोगी कर्मियों के ID कार्ड..
ये तारीखें अहम

25 जून से 25 जुलाई की अवधि तक दस्तावेजों के साथ फॉर्म जमा करने के बाद चुनाव आयोग 1 अगस्त को वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट जारी करेगा. इस पर 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावा या आपत्ति की जा सकेगी. 1 से 25 सितंबर तक दस्तावेजों का फीजिकल वेरिफिरेशन होगा और अंत में 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची जारी की जाएगी.

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