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भारत बना रहा है 2 हजार साल पुराना 'सिलाई वाला जहाज', चीन को क्या जवाब देना है?

केंद्र सरकार देश की पुरानी समुद्री विरासत को फिर से जिंदा करना चाहती है. केंद्र सरकार का संस्कृति मंत्रालय, नौसेना और गोवा की कंपनी, होदी इनोवेशन के साथ मिलकर 2000 साल पुरानी तकनीक वाला 'स्टिच्ड शिप' (सिला हुआ जहाज) बना रही है.

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केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी (बाएं) ने इस जहाज का शिलान्यास किया है, पुराने जमाने की एक तरह की सिलाई वाली नाव (दाएं) (फोटो सोर्स- PTI और विकिमीडिया)

केंद्र सरकार, देश की पुरानी समुद्री विरासत को फिर से जिंदा करना चाहती है. केंद्र सरकार का संस्कृति मंत्रालय, नौसेना (Indian Navy) और गोवा की कंपनी, होदी इनोवेशन के साथ मिलकर 2000 साल पुरानी तकनीक वाला 'स्टिच्ड शिप' (सिला हुआ जहाज) बना रही है. ऐसे जहाज भारत में दो हजार साल पहले समुद्री रास्तों से व्यापार के लिए इस्तेमाल होते थे.

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नेवी और सरकार का प्रोजेक्ट

दिसंबर 2022 में गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने इस प्रोजेक्ट को अप्रूव किया था. जहाज बनाने का ये काम, मिनिस्ट्री ऑफ़ कल्चर के प्रोजेक्ट मौसम से जुड़ा है. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य हिंद महासागर के 39 तटीय देशों के बीच कम्युनिकेशन बेहतर करना है, ताकि सांस्कृतिक मूल्यों और उससे जुड़ी चिंताओं को समझा जा सके और सभी देशों के बीच समुद्री रिश्ते बेहतर हों. प्रोजेक्ट मौसम को, चीन के समुद्री सिल्क रोड का जवाब कहा जा रहा है. भारत, इस प्रोजेक्ट को यूनेस्को से अंतर्राष्ट्रीय विरासत का दर्जा दिलाने की कोशिश में है.

प्रोजेक्ट की लागत 9 करोड़ रुपये तय की गई है. ये सारा खर्च संस्कृति मंत्रालय के जिम्मे है. सरकार के कई मंत्रालय और विभाग भी इसमें सहयोग कर रहे हैं. जहाज की डिज़ाइन और इसे बनाने का काम नेवी देख रही है. फिलहाल गोवा में इस जहाज की Kneel Laying Ceremony (शिलान्यास) हुई है. अभी जहाज की डिज़ाइन तैयार की जा रही है. इसके बाद इसके मॉडल की कड़ी टेस्टिंग होगी. फिर जहाज की असली मैन्यूफैक्चरिंग शुरू होगी. जहाज को पूरी तरह तैयार होने में अभी 22 महीने का वक़्त लग सकता है. उसके बाद ये समुद्री रास्तों पर सफ़र करेगा. सफ़र में सही दिशा बताने के लिए पुराने समय की नेवीगेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इरादा ये दिखाने का होगा कि जहाजी सफ़र के शुरुआती दौर में भी भारत कितना क्षमतावान था. जहाजरानी (शिपिंग) मंत्रालय और विदेश मंत्रालय इसकी एग्जीक्यूशन स्टेज (कार्यान्वयन चरण) में मदद करेंगे.

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अब थोड़ी बात इतिहास की 

अंग्रेज, फ़्रांसीसी और डच. इसी क्रम में थोड़ा और पीछे चलें तो पुर्तगाली नाविक वास्को-डी-गामा, सभी समुद्री रास्ते से भारत आए. लेकिन ये बहुत पुराने वक़्त की बात नहीं है. भारत के प्राचीन साहित्य को ऐतिहासिक दस्तावेज मानने वाले कहते हैं कि 8 वीं शताब्दी में अरबों के आगमन के पहले ही भारत की अपनी समृद्ध समुद्री विरासत रही है. 2000 ईसा पूर्व से लेकर, वैदिक काल, नंद और मौर्य वंश, सातवाहन वंश, गुप्त वंश, दक्षिण के चोल, चेर और पांड्य वंश और विजय नगर साम्राज्य तक. इन सभी दौरों में समुद्री यात्रा, पानी के जहाज और कुशल नाविकों का जिक्र है. 
देश की मौजूदा नौसेना सेना भी इस समुद्री विरासत को रेकॉग्नाइज करती है. विस्तार से यहां पढ़ सकते हैं.

सिलाई वाले जहाज़ों का इतिहास

इस तरह का सबसे पहला जहाज, 2500 ईसा पूर्व. यानी आज से साढ़े चार हजार साल पहले मिस्र में बना था. ये 40 मीटर से ज्यादा लंबी सिली हुई नाव थी. इसके बाद कुछ और शुरुआती ग्रीक जहाज इसी तरह लकड़ी की पतली जड़ों या रस्सी वगैरह से सिलाई करके बनाए जाते थे. फ़िनलैंड, रूस और एस्टोनिया जैसे देशों में साल 1920 तक इसी तरह के छोटे जहाज बनाए जाते थे. स्क्रू, बोल्ट जैसे मेटल फ़ास्टनर्स की इजाद जब तक नहीं हुई, तब तक दुनिया भर के कई हिस्सों में सिलाई वाली नावें और जहाज ही बनाए जाते रहे. मेटल फ़ास्टनर्स के इस्तेमाल से बढ़ने वाली लागत से बचने के लिए भी कई देशों में इसी तरह की छोटी नावें बनाई जाती रहीं. 

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'स्टिच्ड शिप' कैसे बनता है?

'स्टिच्ड शिप' तकनीक में लकड़ी के तख्तों को, स्टीमिंग मेथड का इस्तेमाल करके मन मुताबिक आकार दिया जाता है. इसी विधि से जहाज की पतवारें बनाई जाती हैं. इसके बाद सभी तख्तों को रस्सी और डोरियों की मदद से एक-दूसरे के साथ बांध दिया जाता है और नारियल के फाइबर, मछली के तेल वगैरह से एक-दूसरे के साथ मजबूत से सील किया जाता है. हजारों साल पहले भी इसी तरह से जहाज़ों को मजबूती से बनाया जाता था. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक खबर के मुताबिक, इस जहाज में लकड़ी के तख्तों की सिलाई का काम बारी शंकरन और उनकी टीम करेगी. शंकरन, स्टिच्ड शिप तकनीक के एक्सपर्ट माने जाते हैं. शंकरण ने हाल ही में खाड़ी देशों में स्टिचिंग तकनीक का इस्तेमाल करके कई बड़े जहाज बनाए हैं. इन जहाज़ों में सबसे मशहूर जहाज है- ज्वेल ऑफ मस्कट. इसे ओमान के लिए बनाया गया था. बनने के बाद इसे ओमान से सिंगापुर के सफ़र पर भेजा गया था.

भारतीय नौसेना की निगरानी में एक बार ये जहाज तैयार हो जाने के बाद इसे नवंबर, 2025 में इंडोनेशिया के बाली भेजा जाएगा. इस दौरान इस पर नेवी का 13 सदस्यों का क्रू सवार होगा. अधिकारियों का कहना है कि ये देश के पुराने समुद्री मार्गों को पुनर्जीवित करने की पहल है. उनके मुताबिक, अंग्रेजों के भारत आने के बाद जहाज बनाने की ये पुरानी सिलाई वाली तकनीक कहीं विलुप्त हो गई थी.

वीडियो: रखवाले: P8I - वो जहाज़, जिसपर भारतीय नेवी सबसे ज़्यादा भरोसा करती है

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