पिछले कुछ सालों से फ़िल्म देखते वक्त मैं ये बात भी गौर करता हूं कि ये फ़िल्म, ये गीत, ये दृश्य सेंसर बोर्ड की नज़रों से कैसे बच निकला?
फन्ने खां के गीत ‘अच्छे दिन कब आएंगे’ के ‘अच्छे दिन अब आए रे’ होने की पीछे की राजनीति
दो रोटी और एक लंगोटी. एक लंगोटी और वो भी छोटी! इसमें क्या बदन छुपाएंगे? मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?
Advertisement

फोटो - thelallantop
Advertisement
अब मैं उन निर्माता-निर्देशकों की भी तारीफ़ करता हूं जो सेंसर बोर्ड से ‘ड्रिब्लिंग’ करते हुए ‘रिलीज़’ नाम का गोल कर देते हैं. मतलब स्क्रिप्ट में एक पैरामीटर (और शायद सबसे बड़ा) ‘सेंसर बोर्ड’ भी हो गया है. अपनी बात को बिना कंट्रोवर्सी के कह देना भी ‘जीनियस स्क्रिप्ट’ का एक हिस्सा हो गई है. पहले नहीं होता था लेकिन अब राजकपूर के भाग्य को देखकर आश्चर्य होता है जो अपनी हर फ़िल्म को पास करवा ले जाते थे. अब मैं नेटफ्लिक्स और अमेज़न जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म के ऑरिजनल्स देखना ज़्यादा पसंद करता हूं. क्यूंकि वहां पर ‘जीओटी’, ‘सेंस 8’, ‘गंदी बात’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसे अन्यथा बैन हो जाने वाले कंटेट भी अवेलेबल हैं. लेकिन बेशक सेंसर बोर्ड गोलकीपर तो है मगर वो अकेला ही डिफेन्स नहीं कर रहा. लोगों का ऑफेंड हो जाना, संस्कृति पर खतरा हो जाना, जैसे कई कारक है जिसके चलते फ़िल्म, गीत या कोई भी इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी गोल पोस्ट में पहुंचने से पहले ही डाइवर्ट हो जाती है. 'पद्मावत', 'थ्री इडियट्स', 'ए दिल है मुश्किल',.... और अब ये हो रहा है, या होता लग रहा है 'फन्ने खां' के एक गीत के साथ. आइए पहले इसके गीत ‘अच्छे दिन कब आएंगे’ गीत को सुनते हैं और पढ़ते हैं उसकी लिरिक्स, फ़िर आगे बात करेंगे मित्रों -
ख़ुदा तुम्हें प्रणाम है सादर पर तूने दी बस एक ही चादर क्या ओढ़ें क्या बिछाएंगे मेरे अच्छे दिन कब आएंगे? दो रोटी और एक लंगोटी एक लंगोटी और वो भी छोटी इसमें क्या बदन छुपाएंगे मेरे अच्छे दिन कब आएंगे? मैं ख़ाली-ख़ाली था मैं ख़ाली-ख़ाली हूं मैं ख़ाली-ख़ाली, खोया-खोया सा मेरे अच्छे दिन कब आएंगे? हो, गीत नहीं ये मेरा दर्द है कैसे ये रोज़ाना ही गाता जाऊं मैं ख़ाली-ख़ाली जेबों में ख़्वाब हैं ख़्वाब हैं, पूरे जो होते नहीं वक़्त हुआ नाख़ून के जैसा बेदर्दी से जिसको मैं काटूं रोज़ ज़रूरत और ख़्वाहिश के बीच में खुद को कैसे मैं बाटूं मेरे टुकड़े हो जाएंगे मेरे अच्छे दिन कब आएंगे? मैं ख़ाली-ख़ाली था मैं ख़ाली-ख़ाली हूं मैं ख़ाली-ख़ाली, खोया-खोया सा जो चाहा था, हो ही गया वो अब न कोई खुशियां रोको सपनों ने पंख फैलाए रे मेरे अच्छे दिन हैं आए रे अच्छे दिन, अच्छे दिन...(गीत - मेरे अच्छे दिन कब आएंगे | फ़िल्म - फन्ने खां | लिरिक्स - इरशाद कामिल | संगीत - अमित त्रिवेदी | गायक - अमित त्रिवेदी | निर्देशक - अतुल मांजरेकर)
ये लोग, संस्था या पार्टियां ऐसा क्यूं कर रहीं थीं? क्यूंकि सत्तारूढ़ दल के सर्वोपरी और वर्तमान में भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव से जस्ट पहले लोगों से कहा था कि – मित्रों! अच्छे दिन आने वाले हैं.
दो रोटी और एक लंगोटी, एक लंगोटी और वो भी छोटी. इसमें क्या बदन छुपाएंगे, मेरे अच्छे दिन कब आएंगे?लेकिन आ रही खबरों की माने तो इस गाने को 'बदल' दिया गया है. और ये गाना हो गया है – 'अच्छे दिन अब आए रे'. सुनिए –
गीत के पहले संस्करण के बाहर आने के बाद बहुत से लोगों ने इसे केंद्र सरकार पर हमला करने और मोदी के ‘अच्छे दिन’ वाले वादे पर सवाल करने के लिए इस्तेमाल किया. गीत का अनावश्यक राजनीतिकरण हो रहा था. निर्माताओं को ‘ऊपर के लोगों’ से कुछ कॉल्स भी आईं जिसके बाद उन्होंने नया संस्करण रिलीज़ करने का फैसला किया. वे मूल गीत को हटाने पर भी विचार कर रहे हैं.होने को, जैसा आपको पहले भी बताया कि, अभी तक ऑरिजनल गीत को किसी भी प्लेटफॉर्म से हटाया नहीं गया है. साथ ही कई प्लेटफॉर्मस पर तो अभी केवल पहला वर्ज़न (जिसे मैंने कई जगह ऑरिजनल गीत लिखा है) ही उपलब्ध है. एक बानगी तो ऐसा लग रहा है कि दोनों ही (‘अच्छे दिन कब आएंगे’, ‘अच्छे दिन आब आए रे’) गीत फ़िल्म के हिस्से हैं और एक ही गीत के हैप्पी और सेड वर्ज़न हैं. और अंततः एक और बात, अब चाहे पहले वर्ज़न को हटा भी दिया जाए तो भी इसे व्हाट्सऐप से लेकर फेसबुक तक में वायरल होने से शायद ही कोई रोक पाए. साभार: डाउनलोड!
कुछ और गीतों की इंट्रेस्टिंग कहानियां –
‘आज फ़िर जीने की तमन्ना है’, एक गीत, सात लोग और नौ किस्से
सच्ची ख़ुशी सिर्फ तीन चीज़ों से मिलती है: समय पर सैलरी, फ्री वाई-फाई और माधुरी का ये डांस
Advertisement
उस गीत की कहानी जिसे लिखने में जावेद अख्तर के पसीने छूट गए थे
जब शाहरुख़-मलाइका ट्रेन की छत पर नाचे तो सारा हिंदुस्तान छैयां-छैयां करने लगा
एक दो तीन गाना जावेद अख्तर ने लिखा है कि लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने?
Advertisement
पत्रकार सीमा साहनी ने कैद होने से ठीक पहले इतिहास रच दिया था
हट जा ताऊ: इस सदी का सबसे क्रांतिकारी गाना है
हिंदी की अकेली कविता जिस पर अनुराग कश्यप ने आइटम सॉन्ग बना दिया है
सलमान भाई का नया गाना ‘दिल दियां गल्लां’ कैसे बना, जानते हैं?
वीडियो देखें:
ये हैं इंडिया की बेस्ट यूनिवर्सिटी जानिए किस चीज़ की पढ़ाई के लिए कहां दाखिला लें